मध्यप्रदेश में चुनाव का रुख किधर! इसे मेरे साथ ऐसे समझिए…
पत्रकारिता और ज्योतिष में एक साम्य गजब का है। ज्योतिषी ग्रह-नक्षत्रों की चाल के हिसाब से भविष्यवाणी करते हैं और हम पत्रकार नेताओं, मतदाताओं के रुआब देखकर। यह तुक्का कभी सटीक बैठता है तो कभी गलत।
वैसे अच्छा पत्रकार वह है जो घटना घटित होने के पूर्व उसके होने की घोषणा कर दे और जब सही न निकले तो अपने तर्कों से यह साबित कर दे कि वह क्यों नहीं हुई। ज्योतिषी भी यही करते हैं। ऐसे तीर-तुक्के पत्रकारिता और ज्योतिष दोनों के धंधे के लिए फलदायी होते हैं।
मध्यप्रदेश में 230 विधानसभा सीटों के लिए हुए मतदान के बाद 3 दिसंबर तक सब अपने-अपने हिसाब से गुणा भाग लगाते रहेंगे। जब तक परिणाम न आ जाए भाँग की तरंग की भाँति अनुमानों की पतंग चंग पर चढ़ती उतरती रहेगी..। चलिए आपके साथ अपन भी इस उपचुनाव को लेकर कुछ बुद्धिविलास कर लें।
चर्चाओं की वरीयता में पहली बात वोटिंग के ट्रेंड और टर्नआउट को लेकर है। इस बार रिकार्ड तोड़ 77.15 प्रतिशत वोट पड़े हैं, पिछली बार से 1.42 प्रतिशत ज्यादा। वोटिंग का ट्रेंड असमान है। कहीं 60 प्रतिशत हैं तो कहीं 85 प्रतिशत से ज्यादा। बहरहाल वोट का प्रतिशत दोनों प्रमुख दलों को उत्साहित करने वाला है। बंपर वोटिंग को कांग्रेस परिवर्तन लहर मानकर चल रही है तो भाजपा को लाड़ली बहन की अन्तर्धारा पर भरोसा है। यदि 1990, 93, 2003, जब सत्ता परिवर्तन हुआ का दृष्टांत लेकर चलें तो वोटिंग ट्रेन्ड 3 से 5 प्रतिशत तक के उछाल का रहा है। इस बार यह करीब डेढ़ प्रतिशत है, सो यकीनी तौर पर कोई नहीं कह सकता कि वोटिंग ट्रेन्ड परिवर्तन के किसी बड़े संकेत को व्यक्त करता है।
प्रदेश की 34 सीटें ऐसी हैं जहां महिलाओं के वोट पुरुषों के मुकाबले ज्यादा पड़े। पिछली बार 52 सीटें ऐसी थीं जहां महिलाएं आगे थीं। इन 52 सीटों में भाजपा को 32 सीटों में विजय मिली थी।
2018 में जोड़-तोड़ करके कांग्रेस ने सरकार बनाई थी तब भी विन्ध्य में एक तरह से क्लीन स्वीप हुई। यहां भाजपा को 30 में से 24 सीटें मिलीं थीं। इस बार बड़े कमाल की बात यह कि इन 30 सीटों में से 24 सीटों में महिलाओं का वोट प्रतिशत पुरुषों से ज्यादा है। यानी कि पूरे प्रदेश में विन्ध्य की महिलाओं ने बढ़-चढ़कर वोटिंग की। आप मान सकते हैं कि सरकार बनाने और बिगाड़ने में इस बार भी विन्ध्य की प्रमुख भूमिका रहने वाली है। विन्ध्य का परिणाम 2018 की स्थिति की पुनरावृत्ति कर सकता है, यानी कि भाजपा को 30 में से 24 सीटें। न कहें एक दो आगे पीछे हों।
निर्जीव आंकड़े कभी पक्षपात नहीं करते। सबसे पिछड़े कहें जाने वाले सीधी में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं ने साढ़े सात प्रतिशत ज्यादा मत दिए। हालात यह कि सिंहावल से मैदान पर उतरे सीडब्ल्यूसी के सदस्य कांग्रेस के पूर्व मंत्री कमलेश्वर पटेल की सीट पर महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले रिकॉर्ड तेरह प्रतिशत वोट डाले। कमलेश्वर के प्रतिद्वंद्वी भाजपा विश्वामित्र पाठक को बधाइयां मिलना भी शुरू हो गई हैं, अब क्या कहे इसे। इस बार जिन 24 सीटों में महिला वोट बढ़े हैं उनमें से 19 सीटें भाजपा जीती थी।
अब इस चुनाव में वोटरों के मूड़ की बात कर लें। मेरे रीवा के घर में किराए से एक युवा रहकर नौकरी के लिए तैयारी करता है। वह सिंगरौली में अपना वोट डालकर आज लौटा। मैंने पूछा किसे वोट दिया..? जवाब था मैंने भाजपा के खिलाफ दिया। मेरी मां, भाभी और बहनों ने भाजपा को दिया, वे लाडली बहनें थी। युवा ने कैफियत दी पांच साल में नौकरी के लिए दस परीक्षाएं दीं, बमुश्किल पटवारी में चयन हुआ तो उसकी भी नियुक्ति रुकी पड़ी है। इस युवा के गुस्से को समझा जा सकता है। लेकिन इस एक वाकयात से मध्यप्रदेश में वोटर्स के मूड की अभिव्यक्ति होती है।
चुनाव में एक स्वर सुनाई पड़ा- ‘परिवर्तन’ यह बेरोजगार और नौकरी के लिए कश्मकश कर रहे युवाओं का था। दूसरा कर्मचारियों का, जो ओल्ड पेंशन स्कीम की बात करते हुए सत्ता की मुखालफत कर रहे थे। दूसरी ओर लाड़ली बहना, लाड़ली लक्ष्मी,आवास योजना, मुफ्त के राशन, किसान सम्मान पाने वाला बड़ा लाभार्थी वर्ग था जो अपेक्षाकृत मौन ही रहा। उसके स्वर फूटे जरूर लेकिन वोट देने के बाद।
इस चुनाव को आप रस्साकसी के दिलचस्प रोमांचक खेल से समझ सकते हैं। एक छोर पर विशाल लाभार्थी वर्ग था तो दूसरी ओर बेरोजगार युवाओं और कर्मचारियों का वंचित वर्ग। यह रस्साकसी घर के भीतर थी और बाहर भी। इसे अब दूसरे अंदाज में समझिए। जैसे नदी की दो धाराएं समानांतर चलती हैं, एक सतह पर दूसरी सतह से कई फुट नीचे। यानी कि एक धारा और दूसरी अंतर्धारा। इस चुनाव में सतह पर परिवर्तन के स्वर और कर्मचारियों के गुस्से का इजहार था तो अन्तर्धारा में लाड़ली बहनों और विशाल लाभार्थी वर्ग का आवेग। जो इस आवेग को महसूस नहीं करेगा वह चुनाव के परिणाम का आंकलन कर भी नहीं पाएगा।
जिन चौतीस सीटों में महिलाओं के वोट पुरुषों से ज्यादा वोट पड़े उसे ‘लाड़ली बहना’ फैक्टर के आवेग का प्रकटीकरण कह सकते हैं। लेकिन अन्य सीटों में इस फैक्टर ने असर नहीं डाला ऐसा नहीं है। महिलाओं के बढ़े वोट प्रतिशत को एक तरह से दीवाली का बोनस कह सकते हैं। मूल असर तो मतदान की समग्रता के साथ ही है।
मोटे तौर पर एक बार गुणा-भाग फिर लगा ही लेते हैं। कुल वोट हुए 5 करोड़ 71 लाख, इसमें महिलाओं के वोट 2 लाख 75 के आसपास हैं। लाभार्थी लाड़ली बहनों की संख्या 1 करोड़ 31 लाख है। 45 लाख लाड़ली लक्ष्मियां हैं। इसमें 85 लाख उन्हें भी जोड़ दीजिए जिन्हें किसान सम्मान निधि मिलती है जो कि इस बार 15 नवम्बर को उनके खातों में पहुंची। चुनाव अभियान के बीच ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गरीबी रेखा से नीचे वालों को पांच साल और मुफ्त के राशन की घोषणा कर दी। राममंदिर के शुभारंभ की तैय्यार की भक्तिमयी गूंज भी चुनाव के बीच प्रबल रही, तो मोदी की वैश्विक लौह छवि भी। अब इन तमाम कारणों को चुनाव के साथ जोड़कर कर देखें तो परिणाम कोरे स्लेट में लिखी हुई इबारत की तरह स्पष्ट दिखता है।
इस चुनाव में शिवराज सिंह चौहान अभी से ‘मैन आफ द मैच’ नजर आने लगे हैं। चुनाव के प्रथम दौर में ऐसा लग रहा था कि प्रदेश उनकी मुट्ठी से छिटकता जा रहा है। लेकिन वाकई वे फीनिक्स पक्षी की भांति अपनी राख से उठ खड़े हुए और पूरे प्रदेश में भाजपा के पक्ष में एक हवा खड़ी कर दी।
लाड़ली बहना इस चुनाव में क्या गुल खिलाने जा रही हैं इसकी धमक पीएमओ तक भी अच्छे से पहुंची है। रतलाम की आमसभा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने खुले मन से इसे स्वीकार किया और इसके बाद से श्री चौहान फिर से मेनस्ट्रीम पर आ खड़े हुए।
मैं अभी भी इस मत पर दृढ़ हूं कि ‘लाड़ली बहनों’ की वजह से पांच से सात प्रतिशत ज्यादा वोट भाजपा के साथ जुड़ने जा रहे हैं जो अबतक नहीं मिलते रहे। तीन प्रतिशत वोटों में किसान सम्मान, मोदी और राममंदिर इफेक्ट को जोड़ लें तो यह सब आठ से दस प्रतिशत होता है। भाजपा व कांग्रेस के वोटों में महज आधे प्रतिशत का अंतर रहा है। यानी कि भाजपा 40.5 और कांग्रेस 40 प्रतिशत। युवाओं और कर्मचारियों के परिवर्तन स्वर की वजह से भाजपा के स्थिर वोट(2018 की स्थिति) में तीन प्रतिशत घटा दें तो यह साढ़े सैंतीस प्रतिशत बैठता है। इस साढ़े सैंतीस प्रतिशत में सात प्रतिशत (लाड़ली बहना न अन्य फैक्टर) जोड़ दें तो भाजपा के वोट का अनुमानित प्रतिशत बढ़कर साढ़े पैंतालीस हो जाता है। अब यदि इस फंसे हुए( जैसा कि ज्यादातर मानते हैं) चुनाव में भाजपा को साढ़े पैंतालीस प्रतिशत मत मिलते हैं तो किसी भी सेफोलाजिस्ट का उत्तर होगा- 125 प्लस।
और अंत में..। आप जानना चाहेंगे कि मेरा अनुमान क्या है..? सो मेरी गणित कहती है कि भाजपा सुरक्षित बहुमत के साथ सरकार बनाने जा रही है।
खुदा न खास्ता यदि मेरा अनुमान गलत साबित हुआ तो फिर मेरे विचारों की तरकश में तर्कों के तीरों की कमी नहीं, कि जो मैंने भविष्यवाणी की वह क्यों गलत साबित हुई।