उज्जैन से सुदर्शन सोनी की रिपोर्ट
उज्जैन । शारदीय नवरात्रि में उज्जैन में नगर पूजा की परंपरा हजारों साल पुरानी है। मान्यता है कि उज्जयिनी के महान सम्राट विक्रमादित्य लोक कल्याण और राज्य की प्रजा की सुख, शांति और समृद्धि के लिये नगर पूजा करते थे। इस विशेष पूजन में देवियों को भोजन के साथ मदिरा का भोग भी लगाया जाता था । तभी से नगर की सीमाओं पर स्थित इन देवी मंदिरों में भोग पूजा की ये परंपरा चली आ रही है। अब इस प्रसिद्ध मंदिर में जिले के कलेक्टर भोग लगाते हैं।
यहां उज्जैन स्टेट के समय से चली आ रही परंपराओं को प्रशासनिक अधिकारी बदस्तूर निभातें आ रहे है । महाकाल वन के मुख्य प्रवेश द्वार पर स्थित प्रसिद्ध दैवीय स्थल गुदरी बाजार स्थित चौबीस खंबा माता के मंदिर में नवरात्रि की महाअष्टमी पर्व पर देवी को भोजन के साथ मदिरा का भोग भी लगाया जाता है एवं महाआरती सम्पन्न की जाती है। इसके पश्चात ढोल मंजीरों के साथ नगर पूजन परिक्रमा प्रारम्भ होती है।
खास बात यह कि कलेक्टर स्वयं मदिरा के कलश को लेकर मंदिर से प्रस्थान कर कोटवारो को सौपते है। इस भोग में चढ़ने वाली मदिरा की धारा को नगर के चारो दिशाओं में स्थित भैरव मंदिर की पूजन परिक्रमा करने के बाद ही समाप्त किया जाता है । इस पूजन प्रक्रिया को शासन के कोटवार सालों से संपन्न करते आये है।
किवंदती है एक दैविय वचन के अनुसार इस मन्दिर में नगर के प्रमुख अधिकारी द्वारा विधि विधान से पूजन प्रक्रिया को संपन्न करने से नगर जिले में कोई विपदा/आपदा प्रवेश नहीं कर सकेगी एवं अकाल मृत्यु की संभावना शून्य होगी ।
परंपरा को निभाते हुए सरकारी अधिकारी एवं कोटवारों द्वारा ढोल-ढमाकों के साथ नगर के 40 देवी-देवताओं और भैरव मंदिरों में शराब की धार चढ़ाकर नगर पुजन यात्रा सम्पन्न की जाती है। इस “भोग चल समारोह” में सबसे आगे तांबे के कलश में मदिरा को लेकर एक सेवक पैदल चलता है कलश में बने छेद से मदिरा की धार लगातार बहती रहती है। अन्य कर्मचारीगण कलश को मदिरा से भरते रहते है, “नगर पूजा” के दौरान 27 किलोमीटर की मदिरा की धार लगाई जाती है । यह मदिरा सरकार द्वारा उपलब्ध करवाई जाती है, इसके लिए विशेष कोटा निर्धारित होता है। माता के इस मंदिर में सुबह से ही पूजा शुरू हो जाती है और बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। दिनभर चलने वाले नगर पूजन के बाद रात करीब 8 बजे गढ़कालिका मंदिर पर अंतिम देवी के रूप में पूजा के पश्चात अंकपात के समीप हांडी फोड भैरव मंदिर में इस विशेष नगर पूजा का समापन होता है । पूजन के बाद प्रसाद के रूप में उपस्थित जनों को मदिरा भी दी जाती है ।