लौह व्यक्तित्व के भीतर
धड़कता एक कवि ह्रदय
जयराम शुक्ल की विशेष प्रस्तुति
संवेदना, कला-संस्कृति व साहित्य प्रेम के संदर्भ में भी नरेन्द्र मोदी अटल बिहारी वाजपेई के वैचारिक वंशधर हैं।
उनका कवि पक्ष बहुत कम प्रकाश में आया है..जबकि उन्होंने गुजराती में एक से एक भावप्रवण कविताएं रचीं।
गुजराती से हिन्दी में उनकी कई कविताओं का अनुवाद किया है रवि मंथा ने। रवि मोदीजी के निकट सहयोगी रहे हैं। इन कविताओं का एक संग्रह अँग्रेजी में ‘ए जर्नी’ नाम से रूपा पब्लिकेशन ने प्रकाशित किया है।
नरेन्द्र मोदी का पहला काव्यसंग्रह ‘आँख आ धन्य छे’ नाम से 2007 में प्रकाशित हुआ। सात वर्ष बाद हिन्दी में ‘आँख ये धन्य है’ के नाम से काव्य संग्रह दिल्ली के विकल्प प्रकाशन ने छापा।
गुजराती से हिन्दी में अनुवाद किया अंजना मंधीर ने। 67 कविताओं के इस काव्य संग्रह में श्री मोदी का कवि रूप समग्रता के साथ प्रगट होता है। प्रायः कविताएं काव्य कला की कसौटी में खरी उतरती हैं।
विगत वर्ष मोदीजी के जन्मदिन दिन पर प्रभात प्रकाशन नई दिल्ली ने गुजराती में लिखी उनकी सभी कविताओं का एक महत्वपूर्ण संकलन प्रकाशित किया है।
यहां मोदीजी की दो कविताएं प्रस्तुत कर रहे हैं…
तस्वीर के उसपार
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तुम मुझे तस्वीर या पोस्टर में
ढूंढने की व्यर्थ कोशिश मत करो
मैं तो पद्मासन की मुद्रा में बैठा हूँ
अपने आत्मविश्वास में
अपनी वाणी और कर्मक्षेत्र में
तुम मुझे मेरे काम से ही जानो
तुम मुझे मेरी छवि में नहीं
लेकिन पसीने की महक में पाओ
योजना की विस्तार की महक में ठहरो
मेरी आवाज की गूँज से पहचानो
मेरी आँख में तुम्हारा ही प्रतिबिम्ब है।
प्रेम
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जल की जंजीर जैसा मेरा ये प्रेम
कभी बाँधने से बँधा नहीं
धूप तो किसी दिन मुट्ठी में
आएगी नहीं
बहती पवन को पिंजरा भी
रास नहीं
बहुरूपी बादल सा फिरता यह प्रेम कभी स्वीकारने से स्वीकृत
हुआ नहीं।