Worshiping Mahalaxmi: ज्येष्ठा गौरी पूजन और16 प्रकार की सब्जियों और चटनियों के साथ 56 भोग प्रसाद

171
Worshiping Mahalaxmi

Worshiping Mahalaxmi:ज्येष्ठा गौरी पूजन और16 प्रकार की सब्जियों और चटनियों के साथ 56 भोग प्रसाद

डॉ. विकास शर्मा   
यह महाराष्ट्र का तथा मध्य प्रदेश के महाराष्ट्रीयन कल्चर वाला मराठी भाषी जिलापांढुर्ना का सबसे प्रमुख त्यौहार है।
 महाराष्‍ट्र समाज में भाद्र मास का विशेष महत्‍व है। इस मास में विशेष रूप से गौरी पूजन किया जाता है। पूजन के लिए अनुराधा नक्षत्र में महालक्ष्मी का आगमन होता है। महालक्ष्मी का श्रृंगार नयी नववारी, पैठणी और सुंदर सी साडी पहनाकर आभूषणों से सुसज्जित कर स्‍थापना की जाती है। महालक्ष्मी 3 दिवस का पूजन पर्व है। जिसका समापन गणपति विसर्जन के 2 दिन पहले होता है। यह मध्य प्रदेश के हिंदी भाषी क्षेत्रो में मनाये जाने वाले हथिया /महालक्ष्मी से पूरी तरह अलग है।
हम भारत के किसी भी कोने में चले जायें, यहाँ के तीज- त्यौहार, खान- पान और रीति- रिवाजों से प्रभावित हुए बिना नही रह सकते। मेरी जीवन यात्रा जे अल्प समय मे ही मुझे अधिक स्थानों पर घूमने या समय बिताने का अवसर प्राप्त होता रहा है। मैंने जो कुछ देखा या सीखा वह उओ सभी लोगो से साझा करते रहता हैं।
459306774 26657948690486205 4018020277826466210 n
इस समूह में इस पोस्ट को साझा करने का एक खास कारण यह भी है कि यहाँ भोग के लिए बनाये और परोसे जाने वाले सभी 56 भोग या पकवान बहुत खास हैं। जिसमे से सबसे प्रमुख अम्बाड़ी की भाजी और ज्वार की बनी आम्बिल हैं। आम्बिल ही इसका प्रमुख प्रसाद भी है। इसके अलावा अम्बाडी की खट्टी चटनी भी मन मोह लेती है। सजावट और सुंदरता तो देखते ही बनती है। लेकिन खास बात यह है कि सजावट के लिये भी गूझे, पपड़ी आदि व्यंजनो और फल फूलों का भरपूर और बेहतरीन उपयोग किया गया है।साथ ही 56 भोग में सबसे महत्वपूर्ण भी है, इसके बिना यह पूजन और भोग अधूरा माना जाता है।
मेरे क्षेत्रीय मित्रो के घर के यह दृष्य कितने मनोरम है। आप सभी पकवानो की गिनती लगाएं और स्वाद की अनुभूति करें। 2 वर्ष पूर्व मेरी पोस्टिंग पांढुर्ना में थी, तो सभी के यहाँ प्रसाद लेंने अवश्य जाता था। इस बार अधिक दूरी और व्यक्तिगत व्यस्तताओं ने मजबूर कर दिया, तो दूर से ही आशीर्वाद ले लिया। हालांकि मेरा महाविद्यालय वहाँ संचालित हो रहा है तो, मेरा जाना आना लगा ही रहता है। लेकिन इस बार न जा पाने का दुख है।
डॉ. विकास शर्मा