Yoga Science : योग में उंगलियों और हस्त मुद्राओं की बड़ी भूमिका!
– कर्मयोगी
भारतीय पौराणिक ग्रंथों में मान्यता रही है कि युगों पहले आदियोगी शिव ने योग के आसनों, प्राणायाम, ध्यान के लाभों के साथ ही मुद्राओं का ज्ञान मानव कल्याण हेतु दिया। इसी कड़ी में मुद्रा साधना से हम पंचमहाभूतों के नियमन से स्वास्थ्य लाभ पा सकते हैं। मुद्रा विज्ञान के जरिये स्वास्थ्य चेतना का विकास संभव है। ये बेहद उपयोगी हो सकती हैं क्योंकि मुद्राओं को सरलता से समझा और सहजता से इनका अभ्यास किया जा सकता है।
दरअसल, मुद्रा विज्ञान का गहरा वैज्ञानिक आधार है। हमारी प्रणाम की मुद्रा इसका जीवंत उदाहरण है। दरअसल, हमारी उंगलियों के पोर व्यक्ति की ऊर्जाओं के संचरण के केंद्र होते हैं। जिन्हें हम हस्त मुद्राओं के जरिये नियंत्रित करके सेहत सुख हासिल कर सकते हैं। हिमालय सिद्ध अक्षर बताते हैं कि शरीर की ऊर्जाओं का संचरण हमारे हाथ की उंगलियों के शीर्ष में होता है।
ऐसे में विभिन्न उंगलियों के पोर मिलने से ऊर्जाओं का नियमन होता है। हमारे पंचमहाभूत तत्वों का प्रतिनिधित्व हमारी उंगलियां करती हैं। हमारा अंगूठा अग्नि तत्व, तर्जनी वायु तत्व, मध्यमा आकाश तत्व, अनामिका पृथ्वी तथा कनिष्ठा जल तत्व का प्रतिनिधित्व करती हैं।जिसमें अग्नि तत्व सभी अन्य तत्वों का नियंत्रण कर सकता है। हम इनकी स्थितियों के नियमन से शरीर में विभिन्न तत्वों में सामंजस्य स्थापित कर स्वास्थ्य लाभ पा सकते हैं। निस्संदेह, विषय विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में मुद्राओं का अभ्यास लाभकारी हो सकता है।
हाल ही में प्रकाशित चर्चित पुस्तक ‘द साइंस ऑफ मुद्राज़ : द टीचिंग ऑफ़ हिमालयाज़’ के पहले संस्करण में चर्चित योगी हिमालय सिद्ध अक्षर 51 मुद्राओं का विस्तृत उल्लेख करते हैं। उनका मानना है कि हमारी उंगलियों के शीर्ष के यौगिक उपयोग से हम स्वास्थ्य लाभ, मन की शांति और आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं। दरअसल, सदियों से ऋषियों व सिद्धों ने स्वास्थ्य के वैज्ञानिक रहस्यों को अपने अवचेतन की प्रयोगशाला तथा अनुभवों से जांच जीवन के गूढ़ ज्ञान से परतें हटाई। जीवन सत्य का अनावरण किया। कई वैज्ञानिक गुत्थियों को सुलझाकर उन्होंने ज्ञान गुरु-शिष्य परंपरा के जरिये हम तक पहुंचाया। जिसमें स्वस्थ जीवन के सिद्धांतों-पद्धतियों का ज्ञान भी शामिल है। जो हमारे शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य, भावात्मक स्थिरता तथा आध्यात्मिक शांति में सहायक है।
बताते हैं कि यह ज्ञान हजारों वर्ष पूर्व हिमालय में भगवान शिव ने पार्वती जी को सप्तऋषियों की उपस्थिति में मनुष्य के लौकिक-पारलौकिक उत्थान के लिये योग व मुद्राओं के रूप में दिया। यह ज्ञान हमें आसन, प्राणायाम, ध्यान व मुद्राओं के रूप में शिव संहिता, हठयोग प्रदीपिका, घेरंड संहिता और पतंजलि योग सूत्र जैसे ग्रंथों में मिला। कृति हमें 51 हस्त-मुद्राओं के बारे में बताती है कि कैसे हम शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य पाएं। योगिक विज्ञान में शरीर की संरचना पंचमहाभूतों यानी आकाश, वायु, अग्नि,जल और पृथ्वी तत्व से संचालित होती है। ये तत्व ही हमारे ब्रह्मांड का भी निर्माण करते हैं। जिनका ज्ञान हमारे वेदों व उपनिषदों में उल्लेखित है।
दरअसल, हमारा स्थूल शरीर पृथ्वी, शरीर में द्रव्य-फ्लूड आदि जल, ऊष्मा अग्नि, शरीर में गतिशीलता वायु तथा शरीर में रिक्तता आकाश तत्व के रूप में विद्यमान है। इसी तरह शरीर को संचालित करने वाले पंच-प्राण यानी उदान, प्राण, समान, अपान व्यान शरीर में विभिन्न शक्ति रूप में सक्रिय रहते हैं। लेकिन यहां एक बात निश्चित रूप से उल्लेखनीय है कि इन मुद्राओं का अभ्यास किसी योग्य योग गुरु या प्रशिक्षक की देखरेख में ही किया जाना चाहिए।