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राम दिव्यता, संस्कृति और विरासत के सूत्र….
राम नाम का महत्व और उसके अंदर निहित शक्ति और उसके द्विगुणित स्वरूप का प्रभावकिसी से छुपा नहीं है।
राम शब्द संस्कृत के दो धातुओं, “रम्” और “घम” से बना है। रम् का अर्थ है रमना या निहित होना और घम का अर्थ है ब्रह्मांड का खाली स्थान। इस प्रकार राम का अर्थ सकल ब्रह्मांड में निहित या रमा हुआ तत्व यानी चराचर में विराजमान स्वयं ब्रह्मशास्त्रों में लिखा है,  “रमन्तेयोगिनःअस्मिन रामंउच्यते” अर्थात, योगी ध्यान में जिस शून्य में रमते हैं उसे राम कहते हैं। सामान्यतया अभिवादन के समय राम हम नाम दो बार बोलते हैं, भारतीय संस्कृति में यह विरासत में मिला है
‘राम-राम’ शब्द जब भी अभिवादन करते समय बोल जाता है तो हमेशा दो बार बोला जाता है। इसके पीछे एक वैदिक दृष्टिकोण माना जाता है। वैदिक दृष्टिकोण के अनुसार पूर्ण ब्रह्म का मात्रिक गुणांक 108 है।हम सब जानते जाप करने हेतु उपयोग में ली जाने वाली जाप माला में 108 मनके होते हैं।कोई भी नाम 108बार लेकर या जप कर जो फल प्राप्त होता है वह राम-राम शब्द दो बार कहने से पूरा हो जाता है,क्योंकि हिंदी वर्णमाला में ” र ” 27वां अक्षर है ।’आ’ की मात्रा दूसरा अक्षर और ‘म’ 25 वां अक्षर, इसलिए सब मिलाकर जो योग बनता है वो है 27 + 2 + 25 = 54, अर्थात एक “राम” का योग 54 हुआ। और दो बार राम -राम कहने से 108 हो जाता है जो सम्पूर्ण ब्रह्म का द्योतक है। जब भी हम कोई जाप करते हैं तो हमे 108 बार जाप करने के लिए कहा जाता है। लेकिन सिर्फ “राम-राम” कह देने से ही पूरी माला का जाप हो जाता है।
‘राम’ शब्द के संदर्भ में स्वयं गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा:–
करऊँ कहा लगि नाम बड़ाई।
राम न सकहि नाम गुण गाई।।
स्वयं राम भी ‘राम’ शब्द की व्याख्या नहीं कर सकते,ऐसा राम नाम है।
‘राम’ विश्व संस्कृति के अप्रतिम नायक है। वे सभी सद्गुणों से युक्त है। वे मानवीय मर्यादाओं के पालक और संवाहक है। अगर सामाजिक जीवन में देखें तो- राम आदर्श पुत्र, आदर्श भाई, आदर्श मित्र, आदर्श पति, आदर्श शिष्य के रूप में प्रस्तुत किए गए हैं। अर्थात् समस्त आदर्शों के एक मात्र न्यायादर्श ‘राम’ है। भारतीय संस्कृति में राम-राम अभिवादन स्वरूप कहा जाता है जो हमें आपस में भावनात्मक रूप से तो जोड़ता ही है,साथ ही बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के सकल ब्रम्हांड की उर्जा स्वत:ही हमारे अंदर स्थानांतरित हो जाती है।
इसलिए
राम रामेति रामेति रमे रामे मनोरमे ।
सह्स्रनाम तत्तुल्यं राम नाम वरानने ।।”
शिव पुराण में कहा गया है कि शिवजी ने माँ गौरा जी से कहा, हे पार्वती..! राम जी का नाम एकबार लेना भगवान विष्णु के सहस्रनाम के बराबर है। इसलिए मैं सदैव राम जी के नाम का ध्यान करता हूँ।
– जय श्री राम
ममता सक्सेना