आइये पढ़ते हैं ,इंदौर लेखिका संघ ,इंदौर से कुछ कथाएं
गुठलियों के दाम
वे सभी अड़ौसी- पड़ौसी प्रकृति प्रेमी होने के साथ ही घनिष्ट मित्र भी हैं। वर्षों का साथ है, सारे त्यौहार या सभी विशेष अवसर साथ मिलकर ही मनाते हैं। अब उम्र का वह दौर है जबकि सब के बच्चे पढ़ लिख कर अच्छी तरह सेटल हो गए हैं। किसी की भी, उन्हें किसी तरह की कोई चिंता नहीं है।
पर्यावरण संरक्षक, उन सभी ने अपने घर के पीछे खाली पड़ी, बहुत बड़ी जमीन खरीद ली है और प्रकृति का सानिध्य मिलता रहे इस लालसा से वहां बहुत सारे आम के पेड़ लगा दिए हैं। सब जुट गए साल संभाल करने के लिए। घरों का सब्जी का कचरा आदि इकट्ठा करना, खाद बनाना आदि। यानि एक तरह से पेड़ पौधों की देखभाल ही उनकी दिनचर्या का मुख्य कार्य हो गया।साथ ही यह विचार भी है कि यह पेड़ निरंतर संख्या में भी बढ़ते रहें।
सभी पेड़ फलों से लदे हुए हैं ।राहगीरों के आकर्षण का केंद्र भी। वहां एक बोर्ड लगाया गया है, “गुठलियों के दाम”
लोग उस बाग में आते हैं और आम खरीदते हैं। किसने कितने आम खरीदे,यह सारी जानकारी वहां रजिस्टर में नोट की जाती है। निर्धारित भाव से रुपए लेकर उनको आम दे दिए जाते हैं। बस शर्त यही होती है कि आम की गुठलियों को वापस ला कर दें, निश्चित स्थान पर उन्हें गाड़ दें और उस हिसाब से अपने रुपए भी वापस ले जाएं।
गुठलियों में अंकुरण होने के बाद जब पौधे तैयार होते हैं तो उन्हें निर्धारित किस्म वाले हिस्से में रोपित कर दिया जाता है।
इस तरह एक बहुत बड़ा आम्र वन तैयार हो गया । वहां यह भी ध्यान रखा कि कोयल की कूक और पक्षियों की चहचहाहट बनी रहे, इसलिए पेड़ों के बीच छोटी-छोटी मटकियां टांग दी गई, जिनमें पंछी सुरक्षित घौंसला बना सकें। उस खूबसूरत बाग की देखभाल के लिए अपने घर के सहायकों को उन्होंने सवैतनिक काम पर रख लिया है ।इस तरह वे सब भी परिवार का हिस्सा हो गए और वह बाग उनकी रोजी-रोटी का साधन भी।
सब खूब आनंद से रहते हैं। इस प्रकार जहां लोगों को स्वादिष्ट रसीले आम फल तो मुफ्त में मिलते ही हैं। बाग में आम के पेड़ भी बढ़ते रहते हैं।
कहानीकार -मंजुला भूतड़ा
उड़ान
“पापा मेरा एडमिशन इंडियन आर्मी में हो गया है | ”
कनिका ने खनकती आवाज़ में अति उत्साहित होकर रौनक जी से कहा |
आज वह बहुत खुश थी| उसका सपना था कि वह देश की सेवा करे और इसके लिए उसने बारहवीं क्लास में पढ़ने के साथ ही एनडीए की तैयारी शुरू कर दी थी |
” मैं तुम्हें पहले ही कह चुका हूं कि मैं तुम्हें बाहर कहीं नहीं भेजूंगा| तुम्हें जितना पढ़ना है यही रह कर पढ़ो और शादी करके अगले घर जाओ | ”
रोनक जी के गुस्से से भरी आवाज का आज कनिका पर कोई असर नहीं हुआ |
वह बचपन से ही डरपोक लड़की थी हमेशा डरी – सहमी रहती| जरा कोई ऊंची आवाज में कुछ कहता तो उसकी तो घिग्घी ही बंध जाती थी| वह हकलाने लग जाती| उसकी जुबान तालू से चिपक जाती | इस डर की वजह से वह हमेशा क्लास में सबसे पीछे रहती |उसे सब कुछ आता और जब टीचर प्रश्न पूछती तो वह डर से थर – थर कांपने लग जाती|
मुझसे जवाब नहीं दिया जाता , क्लास के बाकी बच्चे कितने तेज तर्राट हैं| वह हमेशा सोचती ..यहां तक कि उसके छोटे भाई भी तो कैसे टर्र – टर्र बोलते रहते हैं | बस उसी की जुबान को ब्रेक लगे पड़े हैं | उसकी मां रेवती ने उसका हौसला बढ़ाने और हिम्मत बंधवाने की कई बार कोशिश की, लेकिन उसके पापा और दादी जी के हर समय डांटने – फटकारने की आदत की वजह से वह अपने दिल की बात कभी किसी से नहीं कह पाई|
जब कनिका नौंवी क्लास पास करके दसवीं क्लास में गई ,तब उसकी स्कूल की तरफ से एक कैरियर काउंसलिंग कैंप का आयोजन किया गया था | करियर काउंसलिंग यह जानने के लिए कि बच्चे किस स्ट्रीम में जा सकते हैं | अन्य बच्चों के साथ कनिका ने भी करियर काउंसलिंग की क्लास ज्वाइन की|
वहां उन्हें कई सारे गेम्स खिलवाए , ड्राइंग बनवाई और पजल्स गेम खेले | फिर सभी बच्चों से काउंसलर ने लंबी बातचीत की | कनिका की तरह ही और भी बच्चों को विभिन्न समस्याएं थी| किसी को एग्जाम से डर लगता था तो किसी को सब कुछ भूल जाने की समस्या थी | उन सब के पेरेंट्स को बुलाकर समस्या डिस्कस करने के बाद कुछ सिटिंग्स की गई जिससे बच्चों के मन से डर -भय ,अवसाद बाहर निकल गया|
और अब ये बच्चे नव नभ को नापने के लिए तैयार थे |
कनिका के दिमाग के बंद कपाट खोलने में काउंसलर और कनिका की मम्मी दोनों की मेहनत रंग लाई | इस दौरान रेवती ने अपनी बेटी का बहुत सपोर्ट किया | कनिका पढ़ने में एवरेज थी| लेकिन उसके मन की उड़ान बहुत ऊंची थी | वह इंडियन आर्मी में जाना चाहती थी | काउंसलिंग के दौरान काउंसलर ने भी इस बात को बड़ी शिद्दत से नोटिस किया था कि इस बच्ची में आग है | बस इसके दिल के ऊपर जमी गर्द उतारने की देर है | रेवती ने कनिका के खाने ,एक्सरसाइज पढ़ाई ,डाइट सब का जिम्मा अपने कंधे पर लिया | अलार्म लगा कर 5:00 बजे कनिका को उठाकर साथ में दौड़ाने के लिए ले जाती , उसे दूध – बादाम खिलाती |मैथ्स और साइंस उन्होंने यू ट्यूब से पढ़ पढ़ कर नोट्स बनाए और कनिका को रटवाए |
आखिर मां की मेहनत रंग लाई और कनिका की आंखों में पल रहा स्वप्न साकार होने जा रहा था | कनिका सधे कदमों के साथ रौनक जी के कमरे में गई |
आधे घंटे तक उसकी अपने पिता से लंबी बात चली |
रोनक जी बच्चों को घर के अनुशासित वातावरण में पढ़ाना चाहते थे | उनका मानना था कि घर से दूर स्वछंद माहौल में बच्चे बिगड़ जाते हैं | नशे का सेवन करने लगते हैं | और आजकल लड़कियों के लिए घर से बाहर कदम रखना वैसे ही असुरक्षित है| जब छोटी -छोटी बच्चियां अपने घरों में ही सुरक्षित नहीं है , तो बाहर उनकी सुरक्षा कैसे हो सकती है |
कनिका ने अपना पक्ष रखते हुए समझाया कि पापा हर बच्चा एक जैसा नहीं होता | यदि एक क्लास में 60 बच्चे पढ़ते हैं उनमें से यदि 10 बच्चे फेल हो गए या कुछ बच्चों को सप्लीमेंट्री आ गई, इसका यह मतलब तो नहीं ना कि बच्चे पढ़ना ही बंद कर देंगे , या स्कूल बंद हो जाएंगे |
हमेशा से अच्छाई और बुराई सिक्के के दो पहलुओं की तरह समाज में रही है , और रहेगी | आप मुझ पर यकीन रखो , मैं अपनी तरफ से ऐसा कोई भी कार्य नहीं करूंगी जिससे आपकी नजरें नीची हो|
मैं सेना में जाना चाहती हूं | अपने देश की रक्षा करना चाहती हूं |
लेकिन.. लेकिन, कनिका बेटा|
पापा मैं आपकी ही तरह हर पिता की चिंता मिटा देना चाहती हूं | एक ऐसे देश का निर्माण करना चाहती हूं जहां किसी पिता को अपनी बेटी की अस्मत की चिंता ना हो |
हम करेंगे पापा …एक ऐसे देश का निर्माण|
” मिलकर”
बेटी के चेहरे से टपकते आत्मविश्वास को देखकर रौनक जी के दिल ने गवाही दी कि जो बेटी अपने देश की रक्षा करने के लिए दृढ़ संकल्प है, उसकी रक्षा स्वयं महाकाल करेंगे |अब उन्हें उसकी फिक्र करने की जरूरत नहीं है |
उन्होंने उसे मन की गहराइयों से ढेरों आशीर्वाद दिए और उसे भेजने की तैयारी में जुट गए|
कहानीकार-डॉ. दविंदर कौर होरा