98th birthday : Lal Krishna Advani- एक युग, एक विचार, एक विरासत

760

98th birthday : Lal Krishna Advani- एक युग, एक विचार, एक विरासत

राजेश जयंत की विशेष प्रस्तुति

8 नवंबर 1927 को कराची (अब पाकिस्तान) में जन्मे और आज अपने जीवन के 98वें वर्ष में प्रवेश कर रहे लाल कृष्ण आडवाणी भारतीय राजनीति के उन व्यक्तित्वों में से हैं जिन्होंने अपनी वैचारिक स्पष्टता, संगठनात्मक क्षमता और राष्ट्रभक्ति से एक युग को दिशा दी। वे ऐसे नेता हैं जिन्होंने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को न केवल खड़ा किया, बल्कि उसे राष्ट्रीय राजनीति की मुख्यधारा में स्थापित किया। विभाजन के दर्द से लेकर भारत रत्न सम्मान तक का उनका सफर केवल एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि एक विचार की यात्रा है। आडवाणी का जीवन भारतीय लोकतंत्र की उस धारा का प्रतीक है जिसमें सिद्धांत और संयम, विचार और कर्म, दोनों समान रूप से साथ चलते हैं। उन्होंने राजनीति को सत्ता प्राप्ति का माध्यम नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण का यज्ञ माना। चाहे विपक्ष में रहे हों या सत्ता में, उन्होंने अपने दृष्टिकोण की दृढ़ता कभी नहीं छोड़ी। यही कारण है कि आज वे भारतीय राजनीति के “विचारधारा के पुरोधा” के रूप में सम्मानित हैं।

1. पारिवारिक पृष्ठभूमि और बचपन

लाल कृष्ण आडवाणी का जन्म एक पारंपरिक सिंधी हिंदू परिवार में हुआ। उनके पिता किशनचंद डी. आडवाणी एक सम्मानित व्यापारी थे और माता ज्ञानी देवी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। बचपन कराची में बीता, जहां का वातावरण सांस्कृतिक और धार्मिक विविधता से भरा था। बचपन से ही वे अनुशासित और अध्ययनशील रहे। उनका परिवार उस दौर में भारत की उभरती शहरी मध्यमवर्गीय संस्कृति का प्रतिनिधि था, जहां परंपरा और आधुनिकता दोनों का संतुलन था।

WhatsApp Image 2025 11 08 at 13.25.24

कराची के उस समय के सामाजिक जीवन में धार्मिक सह-अस्तित्व और समुदायों के बीच अपनत्व की भावना थी, जिसका प्रभाव युवा लाल कृष्ण के व्यक्तित्व पर गहराई से पड़ा। विभाजन के समय जब लाखों लोग अपने घरों से उजड़ गए, तब आडवाणी परिवार को भी सब कुछ पीछे छोड़कर भारत आना पड़ा। कराची से भारत का यह प्रवास केवल भौगोलिक परिवर्तन नहीं था, बल्कि भावनात्मक और सांस्कृतिक झटका भी था। इस विस्थापन ने युवा आडवाणी के भीतर राष्ट्र और पहचान के प्रश्नों को जन्म दिया, जिसने आगे चलकर उनके विचार और राजनीति की दिशा तय की।

2. शिक्षा और बौद्धिक विकास

आडवाणी ने कराची के सेंट पैट्रिक्स हाई स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। वे बचपन से ही तेजस्वी और आत्मानुशासित छात्र रहे। विभाजन के बाद वे भारत आए और मुंबई के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से विधि स्नातक की उपाधि प्राप्त की। विधि अध्ययन के दौरान उन्होंने राजनीतिक दर्शन, संविधान और शासन तंत्र की गहरी समझ विकसित की। 14 वर्ष की उम्र में उनका झुकाव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की ओर हुआ। उस समय वे शायद नहीं जानते थे कि यह निर्णय उनके पूरे जीवन की दिशा तय करेगा।

WhatsApp Image 2025 11 08 at 13.27.29

आरएसएस के स्वयंसेवक के रूप में उन्होंने संघ की शाखाओं से अनुशासन, राष्ट्रनिष्ठा, त्याग और सामूहिकता के संस्कार ग्रहण किए। राजस्थान में प्रचारक के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने ग्रामीण समाज की वास्तविकता को नजदीक से जाना। यह अनुभव बाद में उनके संगठनात्मक नेतृत्व की नींव बना। उनका व्यक्तित्व आरएसएस के अनुशासन और पश्चिमी शिक्षण प्रणाली दोनों का मिश्रण था—जहां विचारों में स्पष्टता थी, वहीं कार्य में व्यवस्था और सूक्ष्मता का भाव भी था। यही संतुलन आगे चलकर उन्हें अन्य नेताओं से अलग पहचान दिलाता गया।

3. राजनीति में पदार्पण

1951 में जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीनदयाल उपाध्याय ने भारतीय जनसंघ की स्थापना की, तब युवा आडवाणी उस वैचारिक आंदोलन के साथ जुड़ गए। उस समय जनसंघ का संगठन सीमित था, लेकिन उसमें राष्ट्रवादी चेतना की गहराई थी। आडवाणी ने राजस्थान, दिल्ली और गुजरात में संगठन विस्तार का जिम्मा संभाला और अल्प साधनों में भी कार्यकर्ताओं का मजबूत नेटवर्क तैयार किया। उनकी गहन अध्ययनशीलता, सटीक वक्तृत्व कला और प्रबंधन क्षमता ने उन्हें जल्द ही संगठन के अग्रणी नेताओं में ला खड़ा किया। वे अपने भाषणों में तथ्यों, इतिहास और वैचारिक तर्कों का ऐसा संयोजन करते थे कि विरोधी भी प्रभावित हुए बिना नहीं रहते थे।

WhatsApp Image 2025 11 08 at 13.39.35

1967 में वे दिल्ली मेट्रोपॉलिटन काउंसिल के अध्यक्ष बने, जिसने उन्हें शहरी प्रशासन का अनुभव दिया। 1970 में वे राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए और राष्ट्रीय स्तर की राजनीति में उनका प्रवेश हुआ। 1973 में वे जनसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने—उस समय वे युवा, ऊर्जावान और वैचारिक रूप से परिपक्व नेता के रूप में उभर रहे थे। उन्होंने राजनीति को केवल भाषणों या चुनावों तक सीमित नहीं माना, बल्कि उसे “राष्ट्रीय चरित्र निर्माण” का माध्यम समझा। यही दृष्टिकोण उन्हें अपने समकालीन नेताओं से अलग करता था।

4. जनसंघ से भाजपा तक का सफर

1975 में जब देश पर आपातकाल लगा, तो आडवाणी उन नेताओं में थे जिन्होंने लोकतंत्र की रक्षा के लिए खुलकर आवाज उठाई। जेल जाने के बावजूद उन्होंने अपने विचार नहीं बदले। उन्होंने कहा था, “जब झुकने का समय आता है, तब खड़ा रहना ही सबसे बड़ा संघर्ष होता है।”

आपातकाल के उस अंधेरे दौर में वे भारतीय लोकतंत्र के प्रखर प्रहरी के रूप में पहचाने गए।

WhatsApp Image 2025 11 08 at 13.40.08

1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी, तो उन्हें सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाया गया। उस दौर में उन्होंने सरकारी मीडिया संस्थानों में संतुलन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को पुनर्स्थापित किया—जो आपातकाल के दौरान बुरी तरह प्रभावित हुई थी। उनका काम शांत और व्यवस्थित था, लेकिन उसका असर दूरगामी हुआ। 1980 में जनता पार्टी टूटने के बाद जब भारतीय जनता पार्टी का गठन हुआ, तब आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी ने मिलकर उसकी वैचारिक और संगठनात्मक नींव रखी।

शुरुआती दौर में भाजपा को सीमित समर्थन मिला, लेकिन आडवाणी ने पार्टी को “राष्ट्रवाद, सांस्कृतिक एकता और सुशासन” की विचारधारा पर पुनर्गठित किया। 1986 में अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने संगठन को मजबूत करने के लिए कार्यकर्ताओं को नया आत्मविश्वास दिया। उन्होंने कहा—“हमारा संघर्ष केवल सत्ता का नहीं, संस्कारों का है।” यह वाक्य भाजपा के हर कार्यकर्ता के लिए मार्गदर्शन बन गया।

5. रथ यात्रा और राष्ट्रीय राजनीति का विस्तार

1990 में लाल कृष्ण आडवाणी ने राम जन्मभूमि आंदोलन के समर्थन में ‘राम रथ यात्रा’ शुरू की। यह यात्रा 25 सितंबर 1990 को गुजरात के सोमनाथ से आरंभ होकर अयोध्या तक पहुंचने वाली थी। उस समय देश की राजनीति पूरी तरह बदल रही थी और आडवाणी इस परिवर्तन के केंद्र में थे।

WhatsApp Image 2025 11 08 at 13.40.45

उनकी रथ यात्रा केवल धार्मिक अभियान नहीं थी, बल्कि राजनीतिक चेतना का विस्फोट थी। गांव-गांव में लोग इस यात्रा के प्रतीक के रूप में राष्ट्रीय एकता और सांस्कृतिक गौरव को देखने लगे। उनके भाषणों में एक ओर धार्मिक भावनाएं थीं, तो दूसरी ओर राष्ट्रीय एकता और संविधान के प्रति निष्ठा का आह्वान भी।

इस यात्रा ने भाजपा को गांवों, कस्बों और छोटे शहरों तक पहुंचा दिया। राम मंदिर आंदोलन के बाद भाजपा पहली बार एक बड़े वैचारिक जनाधार वाली पार्टी बनकर उभरी। 1996 में वह सबसे बड़ी पार्टी बनी और 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में केंद्र की सत्ता तक पहुंची। इस परिवर्तन के पीछे आडवाणी की दूरदृष्टि, वैचारिक स्पष्टता और संगठनात्मक दृष्टिकोण का बड़ा योगदान था।

6. सत्ता में भूमिका और प्रशासनिक योगदान

1998 से 2004 तक एनडीए सरकार के दौरान लाल कृष्ण आडवाणी ने गृह मंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में कार्य किया। उन्होंने देश की आंतरिक सुरक्षा को मजबूत करने के लिए पुलिस सुधार, आतंकवाद निरोधक नीति और सीमाओं की सुरक्षा पर ठोस कदम उठाए। कारगिल युद्ध के बाद उन्होंने गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय के बीच समन्वय बढ़ाया।

उन्होंने आतंकवाद के खिलाफ सख्त रुख अपनाया और सुरक्षा एजेंसियों को अधिक स्वायत्तता दी। उनके नेतृत्व में केंद्रीय जांच एजेंसियों में पारदर्शिता और जवाबदेही का ढांचा मजबूत हुआ।

WhatsApp Image 2025 11 08 at 13.41.44

लालकृष्ण आडवाणी का कार्यकाल एक ऐसे प्रशासक का उदाहरण है जो राजनीतिक से अधिक संस्थागत दृष्टि रखता था। वे मानते थे कि—“कानून का शासन ही लोकतंत्र का असली प्रहरी है।” उन्होंने अपने पद का कभी दुरुपयोग नहीं किया, बल्कि उसे जिम्मेदारी और संतुलन के साथ निभाया।

7. विचारक और लेखक के रूप में आडवाणी

राजनीति के अलावा आडवाणी का एक और गहरा पक्ष है—विचारक और लेखक का। उनकी आत्मकथा “My Country, My Life” केवल एक जीवनवृत्त नहीं, बल्कि आधुनिक भारत की राजनीतिक यात्रा का इतिहास है। उन्होंने अपने लेखन में जनसंघ, आपातकाल, भाजपा के उदय और वैचारिक संघर्षों को विस्तार से दर्ज किया है।

WhatsApp Image 2025 11 08 at 13.43.23

उन्हें सिनेमा, मीडिया और इतिहास से गहरा लगाव रहा है। वे अक्सर कहते हैं कि फिल्मों और पुस्तकों से समाज की आत्मा को समझा जा सकता है। उनका अध्ययन व्यापक है—वे अंतरराष्ट्रीय राजनीति, धर्म, दर्शन और पत्रकारिता सभी पर गहरी पकड़ रखते हैं।

उनकी लेखनी में संयम और दृष्टि दोनों हैं—शायद यही कारण है कि वे न केवल नेता, बल्कि विचारक के रूप में भी सम्मानित हैं।

8. चुनौतियां, विवाद और विनम्रता

राजनीतिक जीवन में विवादों से कोई नहीं बचता और आडवाणी भी नहीं बचे। अयोध्या आंदोलन और पाकिस्तान यात्रा के दौरान जिन्ना पर उनके बयान ने तीखी प्रतिक्रियाएं पैदा कीं। लेकिन उन्होंने हर बार कहा कि संवाद ही समाधान है। भाजपा के भीतर जब नई पीढ़ी का नेतृत्व उभरा, तब उन्होंने उसे खुले मन से स्वीकारा।

WhatsApp Image 2025 11 08 at 13.44.39

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व के दौर में उन्होंने खुद को सलाहकार और मार्गदर्शक की भूमिका में सीमित किया। सत्ता की दौड़ से पीछे हटना, उनके विनम्र स्वभाव और संगठन के प्रति समर्पण का प्रमाण है।

उनकी राजनीति कभी कटुता की नहीं रही—वे विरोधियों का सम्मान करते थे और असहमति को लोकतंत्र का आवश्यक तत्व मानते थे।

9. सम्मान और पहचान

लाल कृष्ण आडवाणी को 2024 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया—यह उनके सात दशक लंबे सार्वजनिक जीवन की सार्थक परिणति थी। इससे पहले उन्हें पद्म विभूषण (1998), सर्वश्रेष्ठ सांसद पुरस्कार और अनेक अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित किया गया।

WhatsApp Image 2025 11 08 at 13.45.26

भारत रत्न उनके लिए केवल व्यक्तिगत सम्मान नहीं, बल्कि उस वैचारिक यात्रा की मान्यता भी है, जो उन्होंने 1950 के दशक में आरंभ की थी। उनकी पहचान एक ऐसे नेता की है जिसने लोकतंत्र, संगठन और राष्ट्रवाद को सशक्त किया।

10. वर्तमान और विरासत

आज लाल कृष्ण आडवाणी सक्रिय राजनीति से दूर हैं, लेकिन उनका प्रभाव हर स्तर पर विद्यमान है। वे भाजपा के मार्गदर्शक मंडल का हिस्सा हैं और पार्टी के वैचारिक स्तंभ के रूप में माने जाते हैं। उनकी सादगी, अनुशासन और दृढ़ता नई पीढ़ी के नेताओं के लिए प्रेरणा है।

WhatsApp Image 2025 11 08 at 13.46.06

उनका जीवन इस बात का साक्ष्य है कि राजनीति में भी मूल्यों की नींव पर एक विरासत रची जा सकती है। वे उस पीढ़ी के अंतिम प्रतिनिधि हैं जिन्होंने स्वतंत्रता के बाद राष्ट्र निर्माण की राजनीति को अपने जीवन का धर्म माना।

लाल कृष्ण आडवाणी भारतीय राजनीति के उस युग के प्रतीक हैं जिसमें सिद्धांत और सेवा सत्ता से ऊपर थे। उन्होंने संगठन को शक्ति दी, विपक्ष को स्वर दिया और सत्ता को नैतिकता का पाठ पढ़ाया।

कराची से दिल्ली तक का उनका सफर केवल भौगोलिक नहीं, बल्कि वैचारिक यात्रा है—एक ऐसा जीवन जो दिखाता है कि राजनीति तब सार्थक होती है जब उसमें धैर्य, त्याग और राष्ट्रसेवा का भाव साथ हो। वे अब सक्रिय राजनीति से दूर हैं, लेकिन भारत के लोकतंत्र में उनकी विचारधारा, कार्यशैली और मूल्यों की छाया आज भी जीवंत है।

लाल कृष्ण आडवाणी केवल एक नाम नहीं, बल्कि भारतीय राजनीति का वह अध्याय हैं जिसने विचार को कर्म और कर्म को विरासत में बदला।