Death Penalty by Testimony of Minor : 12 साल के बच्चे की गवाही ने फांसी की सजा दिलाई!

स्पेशल कोर्ट ने फैसले में इस घटना को विरलतम श्रेणी का अपराध माना

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Death Penalty by Testimony of Minor : 12 साल के बच्चे की गवाही ने फांसी की सजा दिलाई!

Indore : सात साल की मासूम बच्ची की हत्या करने वाले सद्दाम को स्पेशल कोर्ट ने सोमवार मृत्युदंड दिया। कोर्ट ने पांच महीने में फैसला सुना दिया। हत्या करने वाले सद्दाम उर्फ वाहिद को सजा दिलाने में 12 साल के बच्चे की गवाही को आधार बनाया गया। इस बच्चे को कोर्ट ने प्रत्यक्षदर्शी माना और सजा सुनाई।

विशेष लोक अभियोजक ने बताया कि विशेष न्यायाधीश सुरेखा मिश्रा की अदालत ने 7 वर्षीय मासूम के हत्याकांड के आरोपी सद्दाम को दोषी करार देते हुए धारा 302 आईपीसी में मृत्युदंड एवं धारा 364 आईपीसी में आजीवन कारावास तथा 363 आईपीसी एवं 9एम/10 पॉक्सो एक्ट में 7-7 वर्ष की जेल तथा 342 भादवि में 1 वर्ष का सश्रम कारावास तथा 9000 रुपए के अर्थदंड से दंडित किया है। अदालत के समक्ष अभियोजन ने 23 गवाहों को पेश किया था। इस केस में अदालत ने 12 वर्षीय बालक की गवाह को महत्वपूर्ण माना। वह बालिका की फूफी का लड़का है और तब वह उसके साथ था। उसने सद्दाम को बालिका की हत्या करते हुए देखा था।

हत्यारे ने मासूम बच्ची के शरीर पर 15 वार किए और हाथों की नस भी काट दी थी। कोर्ट में इस केस की सुनवाई के दौरान बचाव पक्ष आरोपी सद्दाम को मानसिक विक्षिप्त बताकर कड़ी सजा नहीं देने की गुहार लगा रहा था। लेकिन, कोर्ट ने गंभीर अपराध मानकर फांसी की सजा सुनाई। हत्या करने से पहले आरोपी ने बच्ची के हाथ की नस भी काट दी थी। आरोपी ने दुष्कर्म के इरादे से बच्ची को ले जाना और हत्या करना कबूला था। इस घटना के बाद क्षेत्र में काफी आक्रोश छा गया था और लोगों ने आरोपी सद्दाम के घर पर पथराव किया था। आरोपी का अवैध निर्माण नगर निगम ने गिरफ्तारी के बाद तोड़ दिया था।

अदालत ने फैसले में ये कहा
जिस प्रकार बालिका की बर्बरतापूर्वक, जघन्य तरीके से हत्या की गई वह उसकी (आरोपी) क्रूर, बर्बर मानसिकता, संवेदनहीनता, पाशविक प्रकृति को दर्शित करता है। ऐसा अपराधी किसी भी प्रकार की दया, संवेदना का पात्र नहीं है। यह तल्ख़ टिप्पणी फास्ट ट्रैक कोर्ट ने 7 साल की बच्ची के हत्यारे सद्दाम को मृत्युदंड की सजा सुनाते हुए की।

कोर्ट ने आगे कहा कि उसके द्वारा भविष्य में किसी अन्य बालिका के साथ इस प्रकार के अपराध की पुनरावृत्ति किए जाने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता। अभियुक्त द्वारा मृतक मासूम बालिका के साथ बर्बरतापूर्वक इस तरह का अपराध किया जाना किसी भी सामान्य मस्तिष्क की चेतना में आक्रोश व घृणा उत्पन्न कर सकता है। अभियुक्त द्वारा जिस बर्बर तरीके से अमानवीयता की हदों को पार करके यह अपराध किया गया है, वह स्पष्ट करता है कि अभियुक्त पूरे समाज के लिए खतरनाक है, समाज के लिए नासूर है, उसका पुनर्वास होना संभव नहीं है। अत: इस मामले में अभियुक्त द्वारा किया गया अपराध विरल से विरलतम की श्रेणी में आता है।

मेडिकल जांच में बिल्कुल फिट
बच्ची की हत्या के बाद पुलिस ने आरोपी सद्दाम को गिरफ्तार किया था। तब डॉ पुरुषोत्तम ने आरोपी सद्दाम का मेडिकल परीक्षण किया था। डॉक्टर ने बयान दिए कि सद्दाम मानसिक रूप से बिल्कुल फिट है। मैंने उससे बात की तो उसने सभी सवालों के सही जवाब दिए। बच्ची जिस स्कूल में पढ़ती थी, वहां की प्रिंसिपल के भी बयान हुए थे।

खुद को मानसिक रोगी बताया
कोर्ट में सुनवाई के दौरान आरोपी सद्दाम ने खुद को मानसिक रोगी बताते हुए बचने की कोशिश भी की थी। उसके वकील ने इस संबंध में आवेदन भी दिया था। जिसमें कहा गया था कि सद्दाम मानसिक चिकित्सालय में भर्ती भी रहा है, लेकिन ये दांव-पेच न्यायालय में काम नहीं आए। अभियोजन ने कोर्ट को बताया कि मानसिक चिकित्सालय ने पूरी तरह से स्वस्थ होने के बाद ही सद्दाम को डिस्चार्ज किया था। आखिरकार कोर्ट ने उसे दोषी माना।

यह था हत्या का मामला
पिछले साल 23 सितंबर को आरोपी सद्दाम बच्ची को उठाकर ले गया। बच्ची बस्ती में खेल रही थी। बच्ची जिस घर में रहती थी। उसके मकान माालिक की पत्नी भी आरोपी के पीछे दौड़ी लेकिन आरोपी बच्ची को कमरे के भीतर ले गया और भीतर से दरवाजा बंद कर लिया। जब तक लोग बच्ची को बचाने आते। तब तक आरोपी सद्दाम बच्ची को चाकूओं के वार कर मौत के घाट उतार चुका था। रहवासियों ने दरवाजा तोड़ा तो भीतर बच्ची का शव था और आरोपी चाकू लहराते हुए वहां से भाग गया था। गिरफ्तारी के बाद मामला कोर्ट में पहुंचा तो यह तर्क दिया गया कि सद्दाम मानसिक रोगी है और वह मानसिक अस्पताल में भी भर्ती रह चुका है, लेकिन कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई।