अगर हम जिम्मेदार हो जाएं तो ऐसे हादसे दर्द न दे पाएं…
इंदौर के ह्रदय क्षेत्र में स्थित स्नेह नगर के मंदिर में रामनवमी के दिन हुआ ह्रदय विदारक हादसा दिलों को दर्द से भर गया। यहां श्रद्धालु रामनवमी पर धार्मिक आयोजन में शामिल होने आए थे और बावड़ी में गिरकर प्राण त्यागने पड़े। जिन परिवारों के सदस्य काल कवलित हुए, उनके घरों में मातम छा गया। पूरा प्रदेश शोकमय हो गया। सरकार ने जांच के आदेश दे दिए और शाम तक वह सारी नस्तियां भी सार्वजनिक हो गईं, जिसमें रोकने के बाद भी मंदिर प्रबंधन निर्माण करने पर आमादा रहा। धर्म का हवाला दिया और धर्मावलंबियों की भावना को आहत करने के लांछन भी लगाए। और अंत में प्रबंधन का लापरवाही भरा और गैर जिम्मेदाराना यह व्यवहार धर्मावलंबियों की जान पर बन गया। बावड़ी पर जाल डालकर स्लैब डालकर निर्माण किया गया था। ज्यादा वजन होने से स्लैब ढह गया और इसके ऊपर बैठे लोग बावड़ी में समा गए। रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया गया, 13 धर्मावलंबी जान गंवा बैठे और 19 लोगों को बचा लिया गया।
इस इंदौर मंदिर हादसे में निजी मंदिर प्रबंधन की लापरवाही सामने आई है। निजी मंदिर में निर्माण को लेकर एक साल पहले नगर निगम इंदौर ने आपत्ति जताई थी। बावड़ी पर निर्माण को लेकर भी प्रशासन ने आपत्ति जताई थी। तब निजी मंदिर ने निर्माण कार्य रोकने के स्थान पर जीर्णोद्धार बताया था। और सरकार की आपत्ति के बाद भी मंदिर में निर्माण किया जा रहा था। बिना स्वीकृति निर्माण ही हादसे का कारण बना।
चेतावनी के बाद भी मंदिर प्रबंधन ने प्रशासन की अनदेखी कर जो गैर जिम्मेदाराना और लापरवाहीपूर्ण कार्य किया, उसका परिणाम धर्मप्रेमियों को प्राण देकर चुकाना पड़ा। जब निर्माण के लिए रोका जा रहा था तब मंदिर प्रबंधन उल्टा प्रशासन पर हिंदू धर्म की भावना आहत करने का आरोप लगा रहा था। इंदौर नगर पालिका निगम ने दो महीने पहले भी अतिक्रमण हटाने के लिए मंदिर को नोटिस जारी किया था। मंदिर के पास अतिक्रमण किया गया था। मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष शिवराम गलानी को नोटिस जारी किया गया था। पर मंदिर प्रबंधन नहीं माना और यह दुर्घटना घटित हो गई जिसमें निर्दोष धर्मप्रेमियों को काल लील गया।
यह दुर्घटना मंदिर में हुई तो यहां चर्चा मंदिर के नाम पर हो रही है। पर गैर जिम्मेदाराना और लापरवाही भरे व्यवहार के सैकड़ों उदाहरण सामने आते हैं और जब दुर्घटना हो जाती है और निर्दोष जानें दम तोड़ देतीं हैं, तब उनके परिजन छाती पीटते रहते हैं और प्रशासन जांच करने और लापरवाही तय करने में जुट जाता है। बारिश का मौसम आता है और कई घटनाएं अक्सर ही सामने आती रहती हैं कि उफनते नाले या पुल पर बस या निजी वाहन निकालने का दुस्साहस किया जाता है और लोग बेवजह ही काल के गाल में समा जाते हैं। तब फिर वही जांचों का दौर शुरू हो जाता है। जांच में गलती करने वाला बस या निजी वाहन का चालक ही होता है। पर अक्सर पुलिस और प्रशासन की तरफ उंगली उठाकर हम अपने लापरवाही भरे गैर जिम्मेदाराना व्यवहार पर परदा डालने का काम करने की कोशिश करते हैं। साथ ही फिर ऐसी गलतियों को दोहराने का काम करते रहते हैं।
सबसे बड़ी बात यह है कि हर जगह सरकार और सरकारी अफसर-कर्मचारी नियम विरुद्ध कार्यों को दबावपूर्वक रोकने में सफल नहीं हो सकते। और बहुत जगह लोग प्रशासन, पुलिस, नगर निगम या सरकारी एजेंसियों पर दबाव-प्रभाव डालने या धर्म और अन्य वजहों की आड़ लेकर आंख दिखाने से बाज नहीं आते। सीट बेल्ट और हेलमेट लगाने की बात हो या फिर शराब पीकर वाहन न चलाने की बात, लोग इन नियमों को तोड़ने में ही शेखी बघारते नजर आते हैं और दुर्घटना होने पर अपनी जान गंवा देते हैं या अपने परिजनों, मित्रों, परिचितों की जान के दुश्मन साबित होते हैं। वहीं जब कार्यवाही होती है तो जुर्माना से बचने के लिए सारे शक्तिशाली संबंधों की आजमाइश से पीछे नहीं रहते।
यही लापरवाही और चोरी-सीनाजोरी बाद में उन्हीं की और उनके अपनों की जान पर बन आती है। एक बार गलती की सजा ही भुगतने का भाव हो, तब भी दूसरी बार गलती न करने का मन बन जाए। पर लोग अपने खाते में नियमों को तोड़ने का जखीरा इकट्ठा करने के आदी हैं और लापरवाही, गैर जिम्मेदाराना व्यवहार से अपनों के दिलों को दर्द से भरकर विदा हो जाते हैं। पर अब इक्कीसवीं सदी के भारतीय नागरिकों को समझ लेना चाहिए कि हम नियमों का पालन करें और परिजनों की आंखों में आंसू आने देने से बचें। नियम तोड़कर खुश होने के फेर में दुखों की दिशा में मुंह न मोड़ें, तभी इक्कीसवीं सदी के भारत का निर्माण संभव है। तभी हम भारत को विश्व गुरू बनने का सपना पूरा होता देखने की उम्मीद कर सकते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि अगर हम जिम्मेदार हो जाएंगे तो ऐसे हादसे हमें दर्द नहीं दे पाएंगे…।