MP BJP:चुनौती बुझे दीपक नहीं, असंतोष की अनगिनत चिंगारियां हैं
इन दिनों मध्यप्रदेश के राजनीतिक फलक पर भाजपा के पूर्व मंत्री दीपक जोशी के कांग्रेस प्रवेश का खूब शोर है। चर्चा सत्यनारायण सत्तन और पूर्व विधायक भंवरसिंह शेखावत की भी है। कांग्रेस तो दम भर रही है कि ये तो अंगड़ाई है, आगे और लड़ाई है। कांग्रेस को हक है कि वह खुशियां मनायें और भाजपा को चुनौती है कि वह अपने घऱ् के दरवाजे-खिड़कियां-रोशनदान को चाक-चौबंद रखे। उनकी नियमित साफ-सफाई करे। आने-जाने वालों का लेखा-जोखा रखे। दीपक का कांग्रेस प्रवेश खबर संसार में हलचल तो पैदा कर सकता है, लेकिन किसी को यह गलतफहमी पालना हो तो पालता रहे कि वे कोई तूफान लाने का माद्दा रखते हैं। दरअसल, वे भाजपा के मद्दम होते चिराग थे, जो किसी भी सूरत में कांग्रेस का घऱ रोशन नहीं कर पायेंगे। श्री सत्तन और शेखावत जी कहीं जाने वालों में से नहीं हैं। हां,उनका शोर मचाना जायज भी है और सामयिक भी।वैसे आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर भाजपा की दिक्कत या परेशानी कोई दीपक जोशी,सत्तन,शेखावत का हो-हल्ला नहीं,वे सांगठनिक कमजोरियां हैं, जो बीते तीन बरस से बरकरार हैं और बढ़ती जा रही हैं।
इन घटनाओं का हालिया निष्कर्ष यही निकलता है कि भाजपा में असंतोष और बगावती तेवर बढ़ते जा रहे हैं। प्राथमिक तौर पर यह सही है। शिवराज सिंह चौहान की बतौर मुख्यमंत्री चौथी पारी बेदाग नहीं रही। उनके नेतृत्व में 2018 का चुनाव हारने के बावजूद ज्योतिरादित्य सिंधिया के आगमन से सरकार में वापसी के अवसर पर उनकी ताजपोशी अनेक दिग्गज भाजपाई पचा तो नहीं पाये, किंतु आलाकमान के उस फैसले को स्वीकार कर लिया गया। सिंधिया के समर्थकों ने उप चुनाव में खुद को साबित किया, पुराने लोगों को दरकिनार किया गया, ये सब अब इतिहास है। उसके बाद संगठन और सरकार के स्तर पर जो गलतियां होती गईं और शिवराज सिंह चौहान अपरिहार्य होते गये,उसके प्रभाव अब सामने आ रहे हैं। जानकारों का मानना है कि दीपक जोशी का जाना और चंद पुराने,समर्पित नेताओं की बयानबाजी भाजपा को उतना नुकसान नहीं कर पायेगी, जितना सांगठनिक कमियों से होगा।
मप्र में भाजपा के पुराने,मूल जनसंघ और संघ पृष्ठभूमि के कतारबद्ध कार्यकर्ताओं के बीच इन तीन साल में पनपी और बलवती होती गई नाराजी अनायास नहीं है और अतार्किक तो बिलकुल नहीं है। एक ओर जहां सिंधिया के समर्थकों को समायोजित करने से जो खुन्नस पनपी, वह अपनी जगह, किंतु खुद भाजपा ने संगठन के ढांचे को कमजोर करने वाले जो फैसले लिये, वे ज्यादा नुकसानदायक और प्रभावी बनकर सामने आ रहे हैं। दरअसल,मार्च 2020 में नई सरकार के गठन के बाद संगठन ने भी कुछ नई व्यवस्थायें लागू कीं। जिनमें प्रमुख है, 40 वर्ष से ऊपर का मंडल अध्यक्ष न बनाना और 50 वर्ष से ऊपर की उम्र वाले को जिला अध्यक्ष न बनाने का फैसला। इस फैसले ने एक झटके में पूरे मध्यप्रदेश से पुराने,कर्मठ,समर्पित कार्यकर्तआओं की बड़ी फौज को बाहर का रास्ता दिखा दिया। संगठन के प्रमुख इसके दुष्प्रभाव को समझ ही नहीं पाये, जो अब चुनावी वर्ष में सैलाब की तरह सतह पर दौड़ता नजर आ रहा है। सत्तनजी व शेखावतजी सरीखे पुराने चावलों की खदबदाहट इसी का नतीजा है।
मप्र भाजपा के संगठन की यही कमजोर क़डी नहीं है। कुछ और कारण इसमें जुड़ते चले गये,जिसने कभी उसे चर्चाओं में तो कभी विवादों में डाला। पहला,कारण तो यह कि राष्ट्रीय संगठन की ओर से जिन मुरलीधर राव को प्रदेश का प्रभारी बनाकर भेजा गया और जिन हितानंद शर्मा को प्रदेश महामंत्री बनाया गया,वे यहां कार्यकर्ताओं-नेताओं के बीच एकता-समन्वय में नाकाम रहे। वे प्रदेश की नब्ज को ही नहीं पहचान पाये। यहां तक कि अनेक मौकों पर वे खुद अपनी बयानबाजी की वजह से चर्चा और विवाद में घिरते रहे। कृष्ण मुरारी मोघे,कप्तान सिंह सोलंकी या सुहास भगत के दौर में भारतीय जनता पार्टी ने जो संगठन खड़ा किया, अनुशासन कायम किया, दल को मजबूती प्रदान की, उसका अब सर्वथा अभाव दिखाई दे रहा है।
मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी के बीच पनपे असंतोष के लिये दूसरा कारण शिवराज सिंह चौहान को चौथी बार मुख्यमंत्री बनाना भी माना जा रहा है। बताया जाता है कि अनेक वरिष्ठ नेता ऊपर तक अपनी बात पहुंचाते रहे हैं, लेकिन सुनी-अनसुनी होती रही और शिवराज बरकरार हैं। ऐसा माना जाता है कि जिस तरह से प्रदेश की जनता के बीच वही चेहरा बार-बार देखकर उकताने लगने का खतरा लग रहा है, कमोबेश वैसा ही अहसास कार्यकर्ताओं के बीच भी होता जा रहा है। संभवत इसीलिये पिछले एक साल से लगातार नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें-अफवाहें चलती रहीं, किंतु बदलाव नहीं हो पाया। अब इस मामले में काफी देर हो चुकी बाताया जाता है। वैसे उनके विरोधियों के बीच चर्चा तो यह भी है कि यदि कर्नाटक विधानसभा के चुनाव भाजपा के प्रतिकूल रहे तो एकबारगी मप्र में भी बदलाव के आसार बन सकते हैं। बहरहाल।
एक बात तो तय मानिये कि मप्र में भाजपा के सामने चुनौतियां जबरदस्त हो चली हैं। मौजूदा प्रकट असंतोष चाहे कितना ही तात्कालिक हो, लेकिन उस पर सद्भाव,समझदारी का मल्हम नहीं लगाया गया तो जख्म के नासूर बन जाने में देर नहीं लगेगी। सजग दुश्मन ऐसे ही किसी अनुकूल अवसर की तलाश में रहता है।
रमण रावल
संपादक - वीकेंड पोस्ट
स्थानीय संपादक - पीपुल्स समाचार,इंदौर
संपादक - चौथासंसार, इंदौर
प्रधान संपादक - भास्कर टीवी(बीटीवी), इंदौर
शहर संपादक - नईदुनिया, इंदौर
समाचार संपादक - दैनिक भास्कर, इंदौर
कार्यकारी संपादक - चौथा संसार, इंदौर
उप संपादक - नवभारत, इंदौर
साहित्य संपादक - चौथासंसार, इंदौर
समाचार संपादक - प्रभातकिरण, इंदौर
1979 से 1981 तक साप्ताहिक अखबार युग प्रभात,स्पूतनिक और दैनिक अखबार इंदौर समाचार में उप संपादक और नगर प्रतिनिधि के दायित्व का निर्वाह किया ।
शिक्षा - वाणिज्य स्नातक (1976), विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन
उल्लेखनीय-
० 1990 में दैनिक नवभारत के लिये इंदौर के 50 से अधिक उद्योगपतियों , कारोबारियों से साक्षात्कार लेकर उनके उत्थान की दास्तान का प्रकाशन । इंदौर के इतिहास में पहली बार कॉर्पोरेट प्रोफाइल दिया गया।
० अनेक विख्यात हस्तियों का साक्षात्कार-बाबा आमटे,अटल बिहारी वाजपेयी,चंद्रशेखर,चौधरी चरणसिंह,संत लोंगोवाल,हरिवंश राय बच्चन,गुलाम अली,श्रीराम लागू,सदाशिवराव अमरापुरकर,सुनील दत्त,जगदगुरु शंकाराचार्य,दिग्विजयसिंह,कैलाश जोशी,वीरेंद्र कुमार सखलेचा,सुब्रमण्यम स्वामी, लोकमान्य टिळक के प्रपोत्र दीपक टिळक।
० 1984 के आम चुनाव का कवरेज करने उ.प्र. का दौरा,जहां अमेठी,रायबरेली,इलाहाबाद के राजनीतिक समीकरण का जायजा लिया।
० अमिताभ बच्चन से साक्षात्कार, 1985।
० 2011 से नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना वाले अनेक लेखों का विभिन्न अखबारों में प्रकाशन, जिसके संकलन की किताब मोदी युग का विमोचन जुलाई 2014 में किया गया। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को भी किताब भेंट की गयी। 2019 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के एक माह के भीतर किताब युग-युग मोदी का प्रकाशन 23 जून 2019 को।
सम्मान- मध्यप्रदेश शासन के जनसंपर्क विभाग द्वारा स्थापित राहुल बारपुते आंचलिक पत्रकारिता सम्मान-2016 से सम्मानित।
विशेष- भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा 18 से 20 अगस्त तक मॉरीशस में आयोजित 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन में सरकारी प्रतिनिधिमंडल में बतौर सदस्य शरीक।
मनोनयन- म.प्र. शासन के जनसंपर्क विभाग की राज्य स्तरीय पत्रकार अधिमान्यता समिति के दो बार सदस्य मनोनीत।
किताबें-इंदौर के सितारे(2014),इंदौर के सितारे भाग-2(2015),इंदौर के सितारे भाग 3(2018), मोदी युग(2014), अंगदान(2016) , युग-युग मोदी(2019) सहित 8 किताबें प्रकाशित ।
भाषा-हिंदी,मराठी,गुजराती,सामान्य अंग्रेजी।
रुचि-मानवीय,सामाजिक,राजनीतिक मुद्दों पर लेखन,साक्षात्कार ।
संप्रति- 2014 से बतौर स्वतंत्र पत्रकार भास्कर, नईदुनिया,प्रभातकिरण,अग्निबाण, चौथा संसार,दबंग दुनिया,पीपुल्स समाचार,आचरण , लोकमत समाचार , राज एक्सप्रेस, वेबदुनिया , मीडियावाला डॉट इन आदि में लेखन।