कर्नाटक में धर्मांतरण विरोधी कानून रद्द होना और मध्यप्रदेश…

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कर्नाटक में धर्मांतरण विरोधी कानून रद्द होना और मध्यप्रदेश…

 कर्नाटक में धर्मांतरण विरोधी कानून रद्द होगा और हेडगेवार-सावरकर से जुड़े चैप्टर किताबों से हटेंगे। कर्नाटक कैबिनेट की बैठक में सर्वसम्मति से कक्षा छह से दस तक की कक्षाओं में कन्नड़ और सामाजिक विज्ञान की टेक्स्टबुक में संशोधन को मंजूरी दी है। मौजूदा अकादमिक सत्र में आरएसएस संस्थापक हेडगेवार और हिंदूवादी नेता सावरकर के अध्यायों को हटाया जाएगा। कर्नाटक में कांग्रेस सरकार का यह फैसला मध्यप्रदेश में भाजपा का चुनावी मुद्दा बनने की पूरी संभावना समेटे है। कर्नाटक सरकार का धर्मांतरण कानून रद्द करने का फैसला मध्यप्रदेश में कांग्रेस के हिंदुत्व विरोधी चेहरे पर चुनावी बहस का विषय तो मानो बन ही चुका है। इस विषय पर सभी चुनावी राज्यों सहित राष्ट्रीय स्तर पर मंथन कर अमृत निकालने का प्रयास होता रहेगा। तो दूसरी तरफ यह परिपाटी भी लगातार जारी रहने वाली है कि भाजपा की सरकार बनेगी तो आरएसएस के डॉ. हेडगेवार, सावरकर, पंडित दीनदयाल उपाध्याय के पाठ स्कूलों के पाठ्यक्रम में जोड़कर उन्हें प्रेम और सम्मान देने की पुरजोर कोशिश होगी, तो कांग्रेस सरकार बनने पर इनके पाठों को पाठ्यक्रम से हटाकर इनका अपमान करने का काम नफरत के माहौल में होता रहेगा। आज कर्नाटक इसकी बानगी है, तो कल दूसरे राज्यों में भी ऐसी ही कवायद नजर आएगी। मतदाताओं की राय केवल चुनाव में मतदान तक सीमित है, बाद के फैसलों से मतदाता इत्तेफाक रखता है या नहीं इसके मायने अब मर चुके हैं।
मुख्य खबर यही है कि कर्नाटक कैबिनेट ने धर्मांतरण रोधी कानून को रद्द करने का फैसला किया है। क्यों किया है, वह वजह साफ है कि इस कानून को राज्य की पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार ने लागू किया था। अब इस कानून को रद्द करने के लिए कर्नाटक की कांग्रेस सरकार विधानसभा के आगामी सत्र में प्रस्ताव लेकर आएगी। और कर्नाटक विधानसभा सत्र तीन जुलाई से शुरू हो रहा है। कर्नाटक में कानून एवं संसदीय मामलों के मंत्री एचके पाटिल ने कैबिनेट बैठक के बाद इस बात पर मुहर लगाई है कि कैबिनेट में धर्मांतरण विरोधी कानून पर चर्चा हुई। हमने 2022 में बीजेपी सरकार द्वारा लाए गए इस बिल को रद्द करने का फैसला किया है। कांग्रेस का मत पहले से ही साफ था। कर्नाटक धर्मांतरण विरोधी कानून 2022 को कांग्रेस के विरोध के बावजूद बीजेपी सरकार ने लागू किया था।‌ सो उसका यह हश्र तो होना ही था। हालांकि अनुमान के मुताबिक यहाँ की कुल जनसंख्या का करीब 80% हिन्दू हैं और 15% मुस्लिम, 4% ईसाई, 0.78% जैन, 0.73% बौद्ध और शेष लोग अन्य धर्मावलंबी हैं।
देखते हैं कि कानून से इतनी नफ़रत की वजह क्या है? दरअसल इस कानून के तहत  एक धर्म से दूसरे धर्म में जबरन, किसी के प्रभाव में या बहकाकर धर्म परिवर्तन कराना गैरकानूनी बताया गया है। इसके तहत तीन से पांच साल की कैद और 25000 रुपये जुर्माने का प्रावधान है। इस कानून के तहत धर्म परिवर्तन कराने वाले शख्स पर पांच लाख रुपये का जुर्माना लगाने का भी प्रावधान है। सामूहिक तौर पर धर्म परिवर्तन के लिए तीन से दस साल तक की कैद और एक लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान है। यह भी कहा गया कि कोई भी शादी जो धर्म परिवर्तन के इरादे से ही की गई है, उसे फैमिली कोर्ट द्वारा अवैध मान जाएगा। इसे गैरजमानती अपराध बताया गया है। अगर कानून की बात करें तो शायद इसमें कोई आपत्तिजनक प्रावधान नहीं है। खास तौर से तब जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार ही सत्तासीन हो। लेकिन मामला विचारधारा का है और समर्थक मतदाताओं के भरोसे का है। ऐसे में लोकतंत्र में चुनी हुई सरकार के फैसले सर्वमान्य हैं। पर कर्नाटक में धर्मांतरण विरोधी कानून रद्द होने का सर्वाधिक असर मध्यप्रदेश में देखने को मिलने वाला है, जहां हर चुनावी मंच पर कर्नाटक में बजरंगबली को आइना दिखाने के भयावह परिणाम के तौर पर इसकी चर्चा होना तय है। साल के अंत में अन्य चुनावी राज्यों छत्तीसगढ़, तेलंगाना, राजस्थान और मिजोरम में आगामी विधानसभा चुनाव के मुद्दों में इसे जगह मिले या फिर न भी मिले…।