3 IAS अधिकारियों पर लोकायुक्त FIR से जुड़े अनुत्तरित सवाल!
भोपाल: हाल ही में राज्य के तीन IAS अधिकारियों के खिलाफ लोकायुक्त ने आदिवासियों की जमीन की कथित बिक्री से संबंधित मामले में एफआईआर दर्ज की। ये अधिकारी हैं: ग्वालियर कमिश्नर दीपक सिंह, एक्साइज कमिश्नर ओपी श्रीवास्तव और अपर सचिव बसंत कुर्रे।
यह मामला 2007 और 2012 के बीच जबलपुर में इन तीनों के एडिशनल कलेक्टर के कार्यकाल का है।
बताया जाता है कि जब ये अधिकारी जबलपुर में एडिशनल कलेक्टर थे, तब कलेक्टर द्वारा डेलीगेट पावर का उपयोग कर इन्होंने लैंड रिवेन्यू कोड के प्रावधान अनुसार यह अनुमति दी थी। इस तरह की अनुमति पूरे प्रदेश में समय-समय पर अधिकांश जिलों में कलेक्टर द्वारा पावर डेलीगेट करने के बाद कई एडिशनल कलेक्टर द्वारा दी गई है। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिम है कि आखिर इन तीन अधिकारियों को उनके पुराने कार्यकाल को लेकर ही क्यों टारगेट किया गया?
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सूत्रों से मिली जानकारी पर अगर भरोसा किया जाए तो इस सारे मामले में विभाग से जानकारी लेने पर उसका जवाब कुछ इस तरह से इंगित कर रहा था मानो यह पावर तो केवल कलेक्टर को ही है। बता दे कि 1959 से , जबसे लैंड रिवेन्यू कोड लागू हुआ है, तब से अधिकांश ज़िलों में एडिशनल कलेक्टर द्वारा इस तरह की अनुमति दी गई है।
बताया गया है कि इस मामले में शिकायत तो कई डायरेक्ट आईएएस अधिकारियों के खिलाफ भी हुई थी लेकिन ये तीनों अधिकारी लपेटे में आ गए।
आश्चर्य की बात यह है कि इस मामले में तीनों अधिकारियों को कहीं से भी किसी प्रकार की भनक तक नहीं लगी। उन्हें तो तब पता चला जब एफ आई आर दर्ज हो चुकी थी। तो क्या नेचुरल जस्टिस के तहत उनसे इस मामले में कोई जवाब तलब भी नहीं किया गया?
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आधिकारिक हलकों में यह भी चर्चा है, कि कहीं ये प्रमोटी और डायरेक्ट आईएएस अधिकारियों के बीच पुरातन काल से चले आ रहे आंतरिक मामलों का नतीजा तो नहीं है? क्योंकि, यह मामला एक दशक से ज्यादा पुराना है और सूत्रों से मिली जानकारी पर अगर विश्वास किया जाए तो कुछ साल पहले यह फाइल बंद भी कर दी गई थी! फिर ये क्यों खुली, किसने खोली और इसके पीछे किसका इंटरेस्ट था! इन सवालों के जवाब अभी अनुत्तरित हैं।
निश्चित माना जा रहा है कि अब ये अधिकारी एफआईआर निरस्त कराने के लिए हाईकोर्ट की शरण लेंगे।
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