शहर के विकास की राह में रोड़ा न बन जाए गोल्ड कॉम्प्लेक्स

पढ़ें राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने क्या कहा।

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शहर के विकास की राह में रोड़ा न बन जाए गोल्ड कॉम्प्लेक्स

गोल्ड कांप्लेक्स की जमीन शासकीय होने के दस्तावेज नहीं

Ratlam : रतलाम में बन रहे गोल्ड कॉम्प्लेक्स में प्रतिदिन पेंच फंस रहे हैं। सैकड़ों पक्षियों की मौत का मामला अभी ठंडा नहीं पड़ा और विधानसभा में सैलाना विधायक हर्षविजय गहलोत के उठाए सवाल पर इस निर्मित होने वाले गोल्ड कॉम्प्लेक्स में नया पेंच फंस गया है। गोल्ड कांप्लेक्स के लिए आरक्षित जमीन सर्वे नंबर 105 तथा 106/2 बंदोबस्त 1956-57 के समय निजी नाम पर दर्ज थी।राजस्व अभिलेखों में 1962 में इसे शासन के नाम दिखाया गया था। लेकिन इस संबंध में रतलाम कार्यालय में कोई दस्तावेज उपलब्ध नहीं होने पर आयुक्त भू अभिलेख ग्वालियर को पत्र क्रमांक 166/भूअ/2023/ 5-मई-2023 को लिखा गया, जिसका आज तक कोई जवाब नहीं आया‌। यह जानकारी सैलाना विधायक हर्षविजय गहलोत के प्रश्न के उत्तर में राजस्व मंत्री गोविंद सिंह राजपूत ने दी।

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न्यायालय कलेक्टर रतलाम के प्रकरण क्रमांक 57/अ-20(3)/2014-15 आदेश दिनांक 17/5/2015 में भी इस बात को नजरअंदाज किया गया कि गोल्ड कांप्लेक्स के लिए जो जमीन आरक्षित की जा रही है। वह 1956-57 के बंदोबस्त में निजी नाम पर दर्ज है। जबकि वर्तमान में जमीनों के विक्रय के समय 1956-57 के रिकॉर्ड को मांगा जाता है। ऐसे में 1956-57 के बंदोबस्त के रिकॉर्ड को देखे बिना, जमीन को आरक्षित क्यों किया गया? विधायक हर्षविजय गहलोत ने कहा कि कलेक्टर रतलाम ने आदेश क्रमांक 474/नजूल/70/रतलाम दिनांक 12/8/1970 से उक्त जमीन को शासकीय घोषित किया है। यह जानकारी पूर्व में दिए गए उत्तर में छिपाई गई है। गहलोत ने कहा कि जमीन के मालिक को सुनवाई का मौका दिए बिना किसी जमीन को शासकीय घोषित करना कलेक्टर की अधिकारिता के बाहर है।क्योंकि जमीन का अधिकार संविधान के द्वारा दिया गया व्यक्ति का मौलिक अधिकार है।

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गहलोत ने कहा कि उत्तर में यह असत्य उल्लेख किया गया है कि 1970 के बाद से यह जमीन राजस्व अभिलेखों में शासन के अधिपत्य की बताई गई है। जबकि पूर्व के उत्तर में इस जमीन को 1962 से राजस्व अभिलेखों में शासन की बताया गया है। गहलोत ने कहा कि कलेक्टर इस बिंदु पर कानूनी पहलु का अध्ययन करने के बाद गोल्ड कांप्लेक्स का कार्य प्रारंभ करें, वरना राजीव गांधी सिविक सेंटर तथा सुभाष मार्केट महू रोड की तरह यह प्रोजेक्ट उलझ जाएगा और शासन को डेढ़ सौ करोड़ रुपए की हानि होगी तथा शहर का विकास अवरुद्ध होगा।