कानून और न्याय: उम्मीदवार की पृष्ठभूमि जानने का मतदाता को पूरा अधिकार!
इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि निर्वाचक या मतदाता को उम्मीदवार की पूरी पृष्ठभूमि के बारे में जानने का अधिकार अदालती फैसलों के माध्यम से विकसित हुआ है। हमारे संवैधानिक न्यायशास्त्र की समृद्ध टेपेस्ट्री में एक अतिरिक्त आयाम है। सर्वोच्च न्यायालय इस मामले तेलंगाना हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने पर विचार कर रही थी। इसमें अपीलकर्ता एक विजयी विधायक के खिलाफ दायर चुनाव याचिका को खारिज करने की मांग करने वाले एक आवेदन को खारिज कर दिया था। उनके खिलाफ कुछ लंबित मामलों का खुलासा नहीं करने को लेकर यह चुनाव याचिका दायर की गई थी। अपीलकर्ता ने तर्क दिया था कि चुनाव याचिका में कार्रवाई के किसी भी कारण का खुलासा नहीं किया गया है। इस कारण व्यवहार प्रक्रिया संहिता के आदेश सात नियम ग्यारह के तहत याचिका को खारिज किया जाना चाहिए।
अपील को खारिज करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश की पुष्टि करते हुए कहा कि सूचित विकल्प के आधार पर वोट देने का अधिकार, लोकतंत्र के सार का एक महत्वपूर्ण घटक है। यह अधिकार बहुमूल्य है। यह स्वतंत्रता और स्वराज के लिए एक लंबी और कठिन लड़ाई का परिणाम है, जहां नागरिक को अपने मताधिकार का प्रयोग करने का अपरिहार्य अधिकार है।
संविधान के अनुच्छेद 326 में इसे व्यक्त किया गया है। यह अधिनियमित कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति जो भारत का नागरिक है और जो तय की गई तारीख पर 21 वर्ष से कम आयु का नहीं है। इस संविधान या उपयुक्त विधानमंडल द्वारा बनाए गए किसी भी कानून के तहत, यदि गैर-निवास, मानसिक अस्वस्थता, अपराध या भ्रष्ट या अवैध आचरण के आधार पर अयोग्य नहीं है, ऐसे किसी भी चुनाव में मतदाता के रूप में पंजीकृत होने का हकदार होगा। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि हालांकि लोकतंत्र संविधान की एक अनिवार्य विशेषता है, लेकिन विडंबना यह है कि वोट देने का अधिकार को अभी भी मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता नहीं दी गई है। लोकतंत्र को संविधान की आवश्यक विशेषताओं में से एक माना गया है। फिर भी, कुछ हद तक विरोधाभासी रूप से, वोट देने का अधिकार को अभी तक मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता नहीं दी गई है। इसे मात्र वैधानिक अधिकार करार दिया गया है।
इस मामले में अपीलकर्ता 2019 में जहीराबाद से चुना गया था। उसके खिलाफ लंबित मामलों का खुलासा न करने के आधार पर लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 प्रावधानों के तहत उनके चुनाव को चुनौती देते हुए एक चुनाव याचिका दायर की गई थी। इसके बाद अपीलकर्ता ने चुनाव याचिका को खारिज करने के लिए एक आवेदन प्रस्तुत किया, जिसे उच्च न्यायालय ने खारिज कर दिया। उच्च न्यायालय का विचार था कि रिकॉर्ड पर मौजूद तथ्यों के आधार पर चुनाव याचिका को खारिज करने का कोई कारण नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने यह पाया कि अपीलकर्ता ने पिछली सजाओं के आरोपों से इनकार नहीं किया। लेकिन यह तर्क दिया है कि आवेदन को खारिज कर दिया जाना चाहिए क्योंकि इस तरह के किसी खुलासे की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि, वे प्रावधानों के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं आते हैं।
सर्वोच्च न्यायालय ने बताया कि धारा 8 निर्वाचित उम्मीदवारों को अयोग्य ठहराने के लिए है, जब उन्हें विशिष्ट अपराधों के लिए दोषी ठहराया जाता है। धारा 33 ए के तहत उम्मीदवारों को अपने आपराधिक इतिहास के बारे में जानकारी का खुलासा करने के लिए बाध्य है। इस प्रावधान के पीछे का विचार पारदर्शिता सुनिश्चित करना और मतदाताओं को मतदान करते समय सूचित विकल्प चुनने में सक्षम बनाना है। धारा 33-बी, को जन प्रतिनिधित्व (तीसरा संशोधन) अधिनियम, 2002 द्वारा शामिल किया गया था। इसमें यह प्रावधान था कि कोई भी उम्मीदवार अपने चुनाव के संबंध में ऐसी किसी भी जानकारी का खुलासा करने या प्रस्तुत करने के लिए उत्तरदायी नहीं होगा, जिसे इस अधिनियम या उसके तहत बनाए गए नियमों के तहत प्रकट करने या प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं है।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि, बाद में पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में इसे अमान्य और असंवैधानिक माना गया। सर्वोच्च न्यायालय ने सन् 1918 में चुनाव आयोग द्वारा जारी दिषा निर्देषों का उल्लेख भी किया। इसमें लंबित आपराधिक मामलों और उन मामलों का खुलासा करने की आवश्यकता थी जिनमें उम्मीदवार को दोषी ठहराया गया था।
यह पहली बार नहीं है जब उच्चतम न्यायालय ने इस बात पर टिप्पणी की हो। एक अन्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि किसी चुनावी उम्मीदवार द्वारा योग्यता के संबंध में भ्रामक जानकारी प्रदान करना जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के तहत भ्रष्ट आचरण नहीं है। न्यायालय ने एक अन्य मामले में यह भी कहा है कि भारत में कोई व्यक्ति उम्मीदवार की शैक्षणिक पृष्ठभूमि के आधार पर प्रतिनिधियों का चयन नहीं करता है। वर्ष 2017 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक फैसला दिया था। इसमें कहा गया था कि शैक्षणिक योग्यता से संबंधित झूठी जानकारी की घोषणा मतदाताओं के चुनावी अधिकारों के मूलभूत नियमों में हस्तक्षेप नहीं करती है।
इस संबंध में फैसले को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय द्वारा की जानी थी। याचिका में कहा गया है कि चुनावी उम्मीदवार 123 (2) के तहत भ्रष्ट आचरण के तहत दोषी है, क्योंकि अपनी उत्तरदायित्व तथा नामांकन के अपने हलफनामे में शैक्षिक योग्यता सही न होने का खुलासा न करना चुनावी अधिकारों के मूलभूत नियमों में हस्तक्षेप माना जाएगा। इसमें यह भी तर्क दिया कि धारा 123 (4) के तहत एक भ्रष्ट आचरण किया गया जिसमें उम्मीदवार द्वारा अपने चरित्र के बारे में तथ्यों का झूठा बयान प्रकाषित करने और अपने चुनाव के परिणाम को प्रभावित करने के लिये जान-बूझकर इसका उपयोग किया गया था। सर्वोच्च न्यायालय ने याचिका को यह कहते हुए अमान्य घोषित कर दिया कि एक उम्मीदवार की योग्यता के बारे में गलत जानकारी प्रदान करना लोक प्रतिनिधित्व कानून में भ्रष्ट आचरण नहीं माना जा सकता है।
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 123 के अनुसार भ्रष्ट आचरण वह है जिसमें एक उम्मीदवार चुनाव जीतने की अपनी संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिये कुछ इस प्रकार की गतिविधियों में शामिल हो जाते हैं, जिसके अंतर्गत रिष्वत, अनुचित प्रभाव, झूठी जानकारी और धर्म, नस्ल, जाति, समुदाय या भाषा के आधार पर भारतीय नागरिकों को विभिन्न वर्गों के बीच घृणा, दुष्मनी की भावनाओं को बढ़ावा देना अथवा ऐसा प्रयास करना शामिल है। यह धारा अनुचित प्रभाव से संबंधित है, जिसे किसी भी चुनावी अधिकार के मूलभूत नियमों के साथ उम्मीदवार (किसी परिस्थिति में उम्मीदवार द्वारा स्वयं अथवा कभी भी उसके प्रतिनिधित्व करता या संबद्ध व्यक्तियों) द्वारा किसी भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप के रूप में परिभाषित किया गया है। इसमें चोटिल करने/हानि पहुंचाने, सामाजिक अस्थिरता और किसी भी जाति अथवा समुदाय से निष्कासन की धमकी भी शामिल हो सकती है। यह चुनाव परिणामों को प्रभावित करने वाली भ्रामक जानकारी के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगाने के लिए भ्रष्ट आचरण की परिभाषा को और व्यापक बनाता है। अधिनियम के प्रावधानों के तहत एक निर्वाचित प्रतिनिधि को कुछ अपराधों हेतु जैसे भ्रष्ट आचरण के आधार पर, चुनाव खर्च घोषित करने में विफल रहने पर और सरकारी अनुबंधों या कार्यों में संलग्न होने का दोषी ठहराए जाने पर अयोग्य घोषित किया जा सकता है।