One Country-One Election : देश में एक साथ चुनाव के विचार को लेकर समिति गठित!  

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को अध्यक्ष बनाया, कांग्रेस ने विरोध किया! 

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One Country-One Election : देश में एक साथ चुनाव के विचार को लेकर समिति गठित!  

New Delhi : केंद्र सरकार ने ‘एक देश, एक चुनाव’ की दिशा में पहला कदम उठाया। सरकार ने इस संभावनाओं पर विचार के लिए एक कमेटी का गठन किया है। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को इसका अध्यक्ष बनाया गया। हालांकि, अभी इसका नोटिफिकेशन होना बाकी है। सरकार के इस फैसले पर आपत्ति उठाई है। कांग्रेस का कहना है कि अभी ऐसे किसी विचार की जरूरत नहीं है! पहले महंगाई, बेरोजगारी जैसे मुद्दों का निवारण होना चाहिए।    चुनाव कराने की वित्तीय लागत, बार-बार प्रशासनिक स्थिरता, सुरक्षा बलों की तैनाती में होने वाली परेशानी और राजनीतिक दलों की वित्तीय लागत को देखते हुए मौजूदा सरकार ‘एक देश, एक चुनाव’ की योजना पर विचार कर रही है। इसके तहत सरकार लोकसभा और सभी राज्यों के विधानसभा चुनाव एक साथ कराना चाहती है।     साल 1951-52 में लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे। इसके बाद 1957, 1962 और 1967 में भी लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए। लेकिन, बाद में 1968, 1969 में कुछ विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने और 1970 में लोकसभा को समय से पहले भंग होने से यह साथ चुनाव कराने का चक्र बाधित हो गया।     यही वजह है कि अब स्थिति ये हो गई है कि हर साल कहीं न कहीं चुनाव हो रहे होते हैं। ऐसे में सरकार फिर से लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने की संभावनाओं पर विचार कर रही है। अब इस दिशा में कमेटी का गठन एक बड़ा कदम है।

सबसे ज्यादा नुकसान क्षेत्रीय दलों को 

राजनीति के जानकारों का मानना है कि यही ‘एक देश, एक चुनाव’ देश में लागू हो जाता है, तो इसका सबसे ज्यादा नुकसान क्षेत्रीय दलों को होगा। लोकसभा चुनाव में आमतौर पर मतदाता राष्ट्रीय मुद्दों के आधार पर और राष्ट्रीय पार्टी को वोट देना पसंद करते हैं। ऐसे में अगर लोकसभा चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव होंगे तो हो सकता है कि क्षेत्रीय दलों को इसका नुकसान झेलना पड़ेगा।

आसान नहीं है यह फैसला

भले ही सरकार ने ‘एक देश, एक चुनाव’ की संभावनाओं पर विचार के लिए कमेटी का गठन कर दिया। लेकिन, सरकार के लिए भी इस फैसले को लागू करना और ऐसा कोई कानून बनाना आसान नहीं होगा। एक साथ चुनाव कराने के लिए कई विधानसभाओं के कार्यकाल में मनमाने ढंग से कटौती करनी पड़ेगी। जिसका विरोध होना तय है।