Mp Assembly Election 2023: मप्र में कांग्रेस जनता (भगवान) भरोसे

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Mp Assembly Election 2023:

मप्र में कांग्रेस जनता (भगवान) भरोसे

बमुश्किल दस दिन बाद मध्यप्रदेश में विधानसभा के चुनाव हैं और प्रमुख राजनीतिक दल कांग्रेस की ओर से किसी तरह का हल्ला बोल अभियान नजर ही नहीं आ रहा। नेता निष्क्रिय,कार्यकर्ता निराश,आलाकमान बेपरवाह और क्षेत्रीय क्षत्रप जनता से उम्मीद लगाये बैठे हैं कि वे उन्हें भोपाल का सिंहासन सौंप दे। टिकट वितरण से लेकर प्रचार अभियान तक वो जोशो खरोश नदारद है, जिसकी आवश्यकता चुनाव में होती है।भाजपा को चारों तरफ से घेर लेने का जतन भी नहीं हो पाया। इस तरह की मानसिकता निश्चित हार के पूर्व बनती है। तो क्या कांग्रेस सत्ता की चाबी भाजपा से छीनने का वीरोचित प्रयास नहीं कर रही? ऐसा लगता तो है।

अलग-अलग स्तर पर कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं की चर्चा से यह निष्कर्ष सामने आ रहा है कि कांग्रस को चुनाव तो जनता जितायेगी। प्रक्रियागत रूप से तो यह सौ फीसदी सही है कि लोकतंत्र में फैसला तो जनता को ही करना है, लेकिन उसके मन मष्तिष्क में गहरे तक यह बात कौन और कैसे दर्ज करायेगा कि उसे भाजपा को बाजू में बैठाकर कांग्रेस को राजपाट सौंपना है? इस पहल की खासी कमी नजर आ रही है। हां, यदि बात चंद सभाओं की हो, कुछेक राष्ट्रीय नेताओं की रैलियों की हो, प्रादेशिक नेताओं के कहीं-कहीं दौरों का जिक्र कर लिया जाये तो कांग्रेस मैदान में नजर आती है, लेकिन क्या मतदाता इतने भर से संतुष्ट हो सकता है?

kamalnath

दरअसल, मार्च 2020 में जिस तरह से कमलनाथ को श्यामला हिल्स का मुख्यमंत्री निवास छोड़ना पड़ा था, उसका हिसाब चुकता करने के लिये चाणक्य की तरह गांठ बांधने का संकल्प कांग्रेस में कोई नहीं ले पाया। तब से अब तक दलबदल करने वालों को, ज्योतिरादित्य सिंधिया को कोसा जाता रहा बस। इससे जनता की सहानुभूति थोड़ी बहुत मिल सकती है, लेकिन वह व्यापक जन समर्थन में बदल जाये,ऐसा तो बिल्कुल भी नहीं है।

कांग्रेस ऐसा राजनीतिक दल है, जो देश के बदले हालात से कुछ भी सीखना ही नहीं चाहता। वह पारंपरिक तौर-तरीकों पर ही टिका हुआ है और गांधी परिवार और जनता के भरोसे नैया पार लग जाने की बाट जोह रहा है। आज के दौर में यह संभव नहीं । वो समय और था जब कांग्रेस के प्रत्याशी स्वतंत्रता संग्राम काल की पुण्याई के भरोसे घर बैठकर चुनाव जीत जाया करते थे। इक्कीसवीं सदी में चुनाव भी प्रबंधन,चतुराई,मतदाता को व्यक्तिश: लाभान्वित-प्रभावित करने,सत्तारूढ़ दल की विफलता और कमजोरी को बखूबी उजागर करने और खुद की विकास की अ‌वधारणा को सामान्य जन के बीच स्पष्ट करने के बाद ही अपेक्षित नतीजे पाये जा सकते हैं। मप्र कांग्रेस इस मामले में बुरी तरह से पिछड़ चुकी है।

कांग्रेस की चंद प्रमुख कमजोरियों में से एक है, समय से पहले या ससमय प्रत्याशी के नामों की घोषणा न कर पाना । इस बार भी जब भाजपा की दो सूचियां जाहिर हो गई, तब तक उसका मंथन ही चलता रहा। कारण रहा,वही पारंपरिक गुटबंदी, जिसके दुष्परिणाम वह भुगतती आई है। एक समय था, जब लग रहा था कि मप्र में कांग्रेस कमलनाथ को खुलकर काम करने का मौका देगी। चुनाव की प्रक्रिया प्रारंभ होते ही ये मुगालते दूर होने लगे। पहले रणदीप सिंह सुरजेवाला को चुनाव संयोजक बनाकर भेजा गया। फिर चंद दिन बाद ही उन्हें मप्र का प्रभारी महासिचव बना दिया गया। इसके बाद चुनाव संचालन समिति बनाई गई, जिसमें परस्पर विरोधी गुटों का संतुलन बिठाने के लिये उन नेताओं को भी समाहित कर लिया गया, जो पूरी तरह से जनाधार खो चुके हैं। फिर स्क्रीनिंग समिति बनाई गई, ,जिसमें राजस्थान के नेता,राहुल गांधी के मित्र और कांग्रेस में कमलनाथ के विरोधी कुंवर जितेंद्र सिंह को प्रभारी बनाया गया। अजय कुमार लल्लू व सत्पगिरी उल्का दोनों सदस्य बनये गये। इस तरह से कमलनाथ के वर्चस्व को समाप्त कर दिया गया। सुरजेवाला और जितेंद्र सिंह दोनों सीधे राहुल को रिपोर्ट करते हैं। कमलनाथ व राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकाजुर्न खरगे की इसमें कोई भूमिका नहीं है।

तब से ही कांग्रेस के मैदानी काम में ढिलाई दिखने लगी। इस गुटबाजी या गुटीय संतुलन बनाने के चक्कर में पहला गड्‌ढा तो यह हुआ कि टिकट वितरण टलने लगा। फिर सभी नेताओं के समर्थकों को समायोजित करने के फेर में वे जरूरी परिवर्तन भी नहीं कर पाये, जो कि हर हाल में चुनाव जीतने के मद्देनजर आवश्यक था। इसके बाद जब सूचियां आ भी गई तो बागियों ने नाक में दम कर दिया। जब थोड़ी गाड़ी आगे बढ़ी तो जिस धुंआधार तरीके से प्रचार,सभायें होनी थी, वह नहीं कर पा रहे हैं। इस बीच आ गई दिवाली, जिसका माहौल 10 नवंबर से शुरू हो जायेगा। इसका सीधा मतलब है कि इस बीच रस्मी प्रचार भले ही चलता रहे, सीधे बात मतदान पर ही जायेगी, जो 17 नवंबर को है।

इन परस्थितियों में मप्र में कांग्रेस काफी कमजोर नजर आ रही है। अब उसका भाग्य तो वाकई भगवान याने जनता के भरोसे हैं। जहां तक बात जनता के मन में क्या है,उसकी है तो ऐसा कोई प्रबल कारण तो नही दिख रहा, जिससे वह कांग्रेस को भर पल्ले समर्थन दे और उसकी सरकार बनवा दे।