5 कविताएं :दीपावली पर इस बार दीप पर कम, उस चीज़ पर ज़्यादा, जिस पर हैं आमादा कुछ एजेन्डे
कविता-१
आर्यभट्ट रोहिणी से लेकर
चंद्रयान तक
और और और
आकाश में जलाये हैं
हमने भी अपने दीप
जिन्होंने आसमानी संदेश यहाँ भेजे
उनसे बहुत पहले
हमारे गाँव वालों ने
क्योंकि
भूला न था
कभी
आकाश को अपना संदेश भेजना
कविता-२
छोटा-सा बच्चा कोई
जब भारत का
पूँछ में रॉकेट्स की
आग लगाता है
तो वे ऊपर जाते हैं
पर उनकी खुशी देखकर
जिनके दिल में आग लगी है
वे इतनी भागदौड़ करते हैं
कि वह जैसे लगी है
उनकी पूँछ में
तब वे ऊपर जाने की जगह
इतना नीचे क्यों गिर जाते हैं
कविता-३
पर्व करते कभी गुमराह नहीं
वे कविता हैं
उन पितरों की जो स्वयं तारा बन गये
उनके आकाश में
उल्काएँ हैं
बहुत-सी
उनसे होते हुए जब वे
उतरे पृथ्वी पर
उनके प्रति
श्रद्धा का अर्पण हुआ
तर्पण हुआ
उनकी वापसी का पथ
फिर करने प्रकाशित
यह है मनुष्य का मनोरथ
कि अपनी भी उल्काएँ
करता है प्रक्षेपित
वे उल्काएँ
जिन्हें आप आतिशबाजी कहते हो
अग्नि हैं
धुआँ नहीं हैं
प्रक्षिप्ति नहीं हैं
अफ़वाह नहीं
कविता-४
आकाश से स्पर्धा
पर्व है
यदि उसके पास तारे हैं
तो हमारे दीप हैं
और चूँकि वे हमारे इतने समीप हैं
कि हमारे लिए
उतने ही तारे
कि उनसे ही शक्ति है
सामीप्य और सान्निध्य भी
भक्ति है
कविता-५
सब खेल ख़त्म हो जायेगा
यदि उल्का कोई गिरी
पृथ्वी पर
उल्का निपातन के डर में
हर पल
कुछ देखें
रहने वाले भी
जिनने घर पर दीप बाले
हुए उनके हवाले
ही
ये उल्का प्रक्षेपण
क्यों
अनुवार्षिक
खेल की तरह
मुक्ति
मनोज श्रीवास्तव
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