Bhopal gas Tragedy:भारत को कटघरे में लाने से पहले अमेरिका को अपने घोर पापों का हिसाब देना होगा
आलोक मेहता
भारत सरकार और भारतीयों की उदारता और मित्रता का कई देश लाभ उठा लेते हैं | अमेरिका यह काम वर्षों से करता रहा है | लेकिन दुनिया पर दादागिरी की नीति के कारण अनुचित मुद्दों और गंभीर संकट की स्थितियों में भारत को परेशानी में डाल देता है | भारत विरोधी आतंकवादी संगठनों और नेताओं को पनाह डेटा रहा है \ पाकिस्तान से जुड़े तालिबानी या खालिस्तानी आतंकी आरोपियों को अमेरिकी मानव अधिकार या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर बचने के अवसर देता है | अब एक खालिस्तानी आतंकी आरोपी पन्नू की हत्या के षड्यंत्र में कुछ भारतीयों का संदिग्ध हाथ होने के मामले को उछाल दिया है | जबकि अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर वह आतंकवाद से निपटने के लिए सबसे अधिक भारत का सहयोग मांगता है | जहाँ तक कानून की बात है , इस सदी के सबसे भयावह त्रासदी भोपाल गैस कांड के लिए जिम्मेदार अमेरिकी कंपनी के अमेरिकी अपराधियों को सजा देने और पर्याप्त मुआवजा देने के मामले अब भी लटकाए हुए है | इस 3 दिसम्बर को भोपाल गैस कांड के करीब 40 वर्ष होने वाले हैं | 1984 में अमेरिकी कंपनी यूनियन कार्बाइड कंपनी के गैस रिसाव से सैकड़ों लोग मारे गए और हजारों आज तक शारीरिक कष्ट झेल रहे हैं | अमेरिकी सरकार ने तब भारतीय नेताओं और अधिकारियों पर दबाव डालकर कम्पनी के मुख्य आरोपी अधिकारी वारेन एंडरसन को रातोरात भारत से निकाल लिया और उसे हजारों की हत्या के आरोप में फांसी की सजा से पूरी तरह जीवन पर्यन्त बचाए रखा | इस तरह के कितने ही गंभीर पापों का रिकॉर्ड दुनिया के सामने है |
अमेरिका में एक खालिस्तानी आतंकी की कथित तौर पर हत्या की साजिश में भारतीय नागरिक के शामिल होने के आरोपों पर भारत के विदेश मंत्रालय ने चिंता जताई है | विदेश मंत्रालय ने कहा है कि ऐसे मामलों को हम गंभीरता से लेते हैं | जांच समिति पहले से ही बनाई गई है | विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने कहा कि भारत ने मामले के सभी प्रासंगिक पहलुओं पर गौर करने के लिए 18 नवंबर को एक उच्च स्तरीय जांच समिति का गठन किया गया है | अमेरिकी अख़बार वाशिंगटन पोस्ट ने लिखा अलगाववादी नेता की हत्या की साजिश का पता चलने के बाद बाइडन प्रशासन इतना चिंतित था कि उसने सीआईए निदेशक विलियम जे बर्न्स और राष्ट्रीय खुफिया निदेशक एवरिल हेन्स को क्रमशः अगस्त और अक्टूबर में जांच की मांग करने और इसमें संलिप्त लोगों की जवाबदेही तय करने के लिए भारत भेजा | अमेरिका की ओर से इस तरह के दावे किए जाने के बाद कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो ने एक बार फिर भारत को घेरा है | उन्होंने कहा है कि जिस तरह का दावा अमेरिका ने किया है| भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि उच्च स्तरीय जांच समिति पहले से ही बनाई गई है. कनाडा सरकार से आशा है कि वियेना कन्वेंशन के तहत व्यवहार करे |
अमेरिकी अधिकारियों कहा कि एक अलगाववादी नेता और अमेरिकी नागरिक की हत्या की साजिश में भारतीय नागरिक निखिल गुप्ता के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू की गई है | अमेरिकी वकील डेमियन विलियम्स ने कहा, निखिल गुप्ता ने भारत से न्यूयॉर्क शहर में भारतीय मूल के एक अमेरिकी नागरिक की हत्या की साजिश रची | अमेरिकी अधिकारियों ने दावा किया कि न्यूयॉर्क शहर में रहने वाले सिख अलगाववादी नेता की हत्या से जुड़े आरोपों को निखिल ने स्वीकार किया है. निखिल ने जिस हत्यारे को सुपारी दी थी, वह वास्तव में अमेरिकी खुफिया एजेंसी का अंडरकवर एजेंट था | ‘ लेकिन इससे यह तो जाहिर है कि अमेरिकी एजेंसी स्वयं ऐसे लोगों को तलाशती या उपयोग भी करती है |
अमेरिका को भी ये पता है कि गुरपतवंत सिंह पन्नू, भले ही अमेरिकी नागरिक हो, लेकिन भारत उसे भगोड़ा खालिस्तानी आतंकी मानता है | यही नहीं, वो ये भी जानता है कि पन्नू, भारत विरोधी बयान और गतिविधियों में लिप्त रहता है | हाल ही में आतंकी पन्नू ने एयर इंडिया की फ्लाइट में धमाका करने की धमकी भी दी थी. भारत, चाहता है कि अमेरिका खालिस्तानी आतंकवादी गतिविधियों को लेकर उसकी चिंताओं को समझे |विदेशी जमीन से खालिस्तानी गतिविधियों को बढ़ावा देने वालों को लेकर, भारत ने वैश्विक मंचों से सवाल उठाने शुरू किए हैं | यही वजह है खालिस्तानी समर्थक हाल फिलहाल के वर्षों में ज्यादा आक्रामक नजर आए हैं. गुरपतवंत सिंह पन्नू का संगठन सिख फॉर जस्टिस भी खालिस्तानी अलगाववाद को बढ़ावा देकर, भारत के टुकड़े करने के ख्वाब देखता है.| यही वजह है भारत, उसे भारत लाकर, उस पर दर्ज किए गए आपराधिक मामले चलाना चाहता है | अमेरिका की नागरिकता, उसे बचा रही है | मुंबई में हुए बड़े आतंकी हमले से जुड़े अपराधी भी अमेरिका ने भारत को नहीं सौंपे | भारत ने समय समय पर खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू को भारत को सौंपने का मुद्दा उठाया है. लेकिन अमेरिका ने इसको हमेशा नजरअंदाज किया है |
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आतंक को लेकर अमेरिका समेत पश्चिमी देशों का दोहरा मापदंड है | अमेरिका ने तो ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान में, जवाहिरी को अफगानिस्तान में, बगदादी को सीरिया में और ईरान रेवोल्यूशनरी गार्ड के मेजर जनरल कासिम सुलेमानी को ईराक में मार गिराया था | क्या अमेरिका के घोषित आतंकी, आतंकी हैं, और भारत द्वारा घोषित आतंकी, अमेरिका के सभ्य नागरिक? अमेरिका तो उन देशों में से है जो झूठे आरोप लगाकर इराक को बर्बाद कर चुका है |जैविक हथियार होने के आरोप लगाकर, उसने न सिर्फ इराक में भीषण कत्लेआम किया, बल्कि उसके पूर्व राष्ट्रपति सद्दाम को फांसी दे दी थी. | यही नहीं अमेरिका दादागीरी के इस स्तर पर रहा है, कि उसने अपनी खुफिया एजेंसी की मदद के कई लैटिन अमेरिकी देशों की वामपंथी सरकारों का तख्तापलट तक किया | अमेरिकी सेना या खुफिया एजेंसी, जब किसी आतंकी को ढेर कर देती है, तो उसके राष्ट्रपति दुनिया के सामने आकर, अपना गुणगान करते हैं | आतंकवाद से युद्ध के नाम पर अमेरिका, अपने दुश्मन को, किसी भी देश में मारने पहुंच जाता है. लेकिन यही अमेरिका, दूसरे देशों द्वारा घोषित आतंकियों को नागरिकता बांटकर, बचाता है. खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू इसका बड़ा उदाहण है |
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भोपाल गैस त्रासदी के समय यूनियन कार्बाइड कॉर्पोरेशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी वारेन एंडरसन की वर्षों बाद अस्पताल में मृत्यु हो गई। 2 और 3 दिसंबर, 1984 की मध्यरात्रि को हुए जहरीली गैस कांड में 3,500 से अधिक लोग मारे गए और हजारों लोग अभी भी अपने स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव को झेल रहे हैं। ये जीवित बचे लोग फेफड़ों के कैंसर, किडनी फेलियर और लीवर की बीमारियों जैसी गंभीर बीमारियों से पीड़ित हैं।
यूनियन कार्बाइड के कारखाने से लगभग 40 टन ‘मेथायिल अयिसोसायिनेट’ गैस का रिसाव हुआ था. इस हादसे में यूनियन कार्बाइड के कारखाने के आस पास के इलाके सबसे ज्यादा प्रभावित हुई थी. वहीं सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, इस हादसे में मरने वालों की संख्या 5 हजार 295 के करीब थी | यूनियन कार्बाइड अमेरिका की रासायनिक कंपनी ‘डॉव केमिकल’ की शाखा थी |
इस कम्पनी का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील आपदा के 36 साल बाद, 1984 की भोपाल गैस त्रासदी से संबंधित सुनवाई के लिए अदालत में पहली बार उपस्थित हुए।शुरुआती समन जारी होने के करीब 18 साल बाद मामले में सातवें समन पर वकील भोपाल कोर्ट में पेश हुए | यह सुनवाई त्रासदी के पीड़ितों की सहायता करने वाले एक गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) द्वारा दायर एक आवेदन से संबंधित थी। डॉव केमिकल की प्रतिनिधि एमी विल्सन आंशिक रूप से कानूनी परामर्शदाता के माध्यम से उपस्थित हुईं। कार्यवाही के दौरान, डॉव केमिकल ने अदालत को एक पेज का संक्षिप्त ज्ञापन सौंपा, जिसमें अतिरिक्त समय का अनुरोध किया गया और कहा गया कि एक अमेरिकी निगम होने के नाते, यह भोपाल अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर आता है। लेकिन गैस कांड पीड़ितों का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील अवि सिंह ने तर्क दिया कि ‘आंशिक उपस्थिति’ की अवधारणा की आपराधिक न्यायशास्त्र में कोई कानूनी मान्यता नहीं है। डॉव केमिकल सम्मन को चुनिंदा रूप से चुनौती नहीं दे सकता है और उसे अदालत के निर्देश का पूरी तरह से पालन करना होगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि अधिकार क्षेत्र को चुनौती देने की डॉव केमिकल की कोशिश पर 2005 में ही उच्च न्यायालय में फैसला सुनाया जा चुका था और उसे खारिज कर दिया गया था।उन्होंने यह भी बताया कि ‘ यदि डॉव केमिकल का अधिकृत प्रतिनिधि व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने में विफल रहता है, तो अदालत के पास जमानती वारंट जारी करने और डॉव केमिकल की अनुपस्थिति में सुनवाई आगे बढ़ाने का अधिकार है।’ बहरहाल यह मामला अभी क़ानूनी दांव पेंच में जारी है | यही नहीं पीड़ितों को मुआवजा भी नाम मात्र का मिला | यदि ऐसी भयावह हत्याएं और रोगों के शिकार अमेरिका में होते तो अरबों डालर और मौत की सजा होती | कई देशों में पुराने युद्ध अपराधियों को दशकों बाद मौत की सजा हुई है | भारत में गैस कांड या आतंक से जुड़े लोगों को मृत्यु दंड कब मिलेगा ?