अटल पथ से अजेय मोदी युग में सामाजिक आर्थिक क्रांति के अभियान

420

अटल पथ से अजेय मोदी युग में सामाजिक आर्थिक क्रांति के अभियान

अटल बिहारी वाजपेयी के जन्म दिन ( 25 दिसम्बर ) पर स्मरण करते हुए सबसे बड़ा सवाल यही दिमाग में आता है कि उनकी निष्ठा , तपस्या और त्याग से खड़ी हुई भारतीय जनता पार्टी और उनके  पसंदीदा नेता नरेंद्र मोदी सत्ता में आकर अटल पथ से भारत में राजनीतिक सामाजिक आर्थिक क्रांति के अभियान में कितने सफल हो रहे हैं | हर परिवार में उत्तराधिकारी से यही अपेक्षा रहती है | 2001 में अटलजी ने तेज तर्रार लेकिन संगठन , समाज और राष्ट्र के लिए समर्पित नरेंद्र  मोदी को सत्ता के किसी भी पद का अनुभव न होने के बावजूद नेतृत्व के लिए योग्य माना | इस दृष्टि से पहले गुजरात के मुख्यमंत्री और फिर 2014 से प्रधान मंत्री बने नरेंद्र मोदी ने लगभग दस वर्षों के दौरान सुदूर ग्रामीण पर्वतीय क्षेत्रों से लेकर महानगरों के जनजीवन में कायाकल्प के साथ विश्व के संपन्न और विकासशील देशों के बीच भारत की जयकार करवाने में महत्वपूर्ण सफलता प्राप्त कर ली है |

अटल पथ से अजेय मोदी युग में सामाजिक आर्थिक क्रांति के अभियान

 पहले कुछ बातें अटलजी के मन , विचार और व्यवहार की | अटलजी से मेरा पहला परिचय 1972 में हुआ , जब मैं एक समाचार एजेंसी हिन्दुस्थान समाचार में संवाददाता था | जनसंघ के गिने चुने सांसद ,  प्रखर वक्ता  होने के साथ बेहद सरल स्नेहिल व्यवहार वाले वरिष्ठ नेता थे | तब वह 1 फ़िरोज़ शाह रोड की कोठी में रहते थे | संयोग और सौभाग्य से मैं सड़क के दूसरे छोर 5 विंडसर प्लेस ( जहाँ अब महिला प्रेस क्लब है ) पर अपने उज्जैन के राज्य सभा सांसद सवाई सिंह सिसोदिया के बंगले के एक हिस्से में रहता  था  | उन दिनों सामने के बंगले तक फोन से संपर्क थोड़ा कठिन था | राजनीतिक गतिविधियों के लिए नेताओं से मिलना अधिक कठिन नहीं था | इसलिए जब भी ावबसर  मिला , अटलजी से चाय के साथ लम्बी चर्चा के अवसर मिले | ताज़ी ख़बरों से अधिक उनके विचार सुनने समझने का लाभ मिला | राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और हिन्दू दर्शन से पूरी तरह जुड़े अटलजी असहमतियों वालों के प्रति पूरा सद्भाव सम्मान रखते थे | | मध्य प्रदेश की पृष्ठभूमि होने के कारण डॉक्टर शर्मा से सत्ता की और अटलजी से विपक्ष की राजनीति के कई आंतरिक समीकरणों को  समझने का लाभ पत्रकारिता में मिला |

 राजनीति के कितने ही रंग इन पचास वर्षों में देखने को मिलते रहे हैं |  सबसे दिलचस्प बात यह है कि नरेंद्र मोदी  अटल अडवाणी जोशी त्रिमूर्ति की पसंद से आगे बढ़ते रहे | यही नहीं उन तीनों की तरह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के आदर्शों और  संगठनात्मक कार्यों में सर्वाधिक सफल रहे |  | यों 1993 में मैंने अपनी एक पुस्तक ” राव के बाद कौन ” के एक अध्याय के लिए अटलजी से लम्बी बातचीत की थी , तब उन्होंने कहा था – ” मैंने बहुत प्रतीक्षा कर ली | मुझे यह भी शक है कि मैं इतना बड़ा दायित्व संभाल सकता हूँ | मैं स्वीकार करता हूँ कि मैं सत्ता में बने रहने के लिए हर तरह के हथकंडे अपनाने में अक्षम भी हूँ |”  उनकी स्वीकार्यता में आदर्शों और जीवन मूल्यों की ध्वनि थी | तभी तो पहले उन्हें 13 दिन , फिर 13 महीने और बाद में जाकर 5 वर्ष प्रधान मंत्री के रूप में गठबंधन की सरकार को बनाए रखने के लिए कई बार समझौते करने पड़े  | लेकिन उन्होंने सत्ता की राजनीति को नई दिशा दी | वर्षों तक स्वयंसेवकों , कार्यकर्ताओं और सामान्य जनता के बीच काम करने से वह समस्याओं को अच्छी तरह समझते थे | तभी तो उन्होंने सडकों के जाल बिछाकर शिक्षा , स्वास्थ्य सुविधाओं के साथ ग्रामीण शहरी क्षेत्रों के विकास के कार्यक्रमों पर सर्वाधिक जोर दिया | संचार , परमाणु परीक्षण के साथ ऊर्जा उत्पादन , समाचार माध्यमों में नए टी वी समाचार चैनलों को अनुमति देने जैसी योजनाओं का क्रियान्वयन शुरू किया | कम्युनिस्ट विचार धारा और पाकिस्तान के आतंकवादी प्रयासों और हमलों के विरुद्ध कड़े रुख के बावजूद पाकिस्तान तथा चीन से सम्बन्ध सुधारने के लिए हर संभव प्रयास किए | लाहौर बस यात्रा के बावजूद पाकिस्तान से धोखा ही मिला | हाँ कारगिल में पाकिस्तान को शिकस्त देने का श्रेय अवश्य मिला | उनके उत्तराधिकारी नरेंद्र मोदी ने उसी रास्ते को अपनाकर न केवल पाकिस्तान बल्कि चीन को भी सीमाओं पर करारा जवाब देने में सफलता प्राप्त की | वहीँ देश भर में सड़कों , रेल सेवा , हवाई अड्डों के निर्माण में नए कीर्तिमान स्थापित कर दिए | अमेरिका , रुस , यूरोप , अफ्रीका ही नहीं इस्लामिक अरब देशों के साथ राजनयिक आर्थिक संबंधों के तार मजबूत कर दिए | यही नहीं अटलजी संसद से सड़क तक जिस धारा 370 से कश्मीर को मुक्त कराने , राम जन्म भूमि अयोध्या में भव्य मंदिर बनाने के लिए संघर्ष करते रहे , उस सपने को मोदी ने पूरा किया है | इसी तरह संचार सुविधा , ग्रामीण लोगों के सामाजिक आर्थिक जीवन में व्यापक बदलाव , रोटी कपड़ा मकान के अटल युग के नारे यानी उनके प्रेरक पंडित  दीनदयाल  उपाध्याय के अंत्योदय के सपनों को साकार करने के लिए मोदी ने  दस वर्षों में अनेक कार्यक्रमों को आगे बढाकर गांवों और आदिवासी इलाकों के सामाजिक आर्थिक विकास के हर संभव दरवाजे खोल दिए हैं |

Atal Bihari Vajpayee
Atal Bihari Vajpayee

 इसी तरह व्यापक आर्थिक सुधारों के लिए अटल बिहारी वाजपेयी जनता पार्टी सरकार में विदेश मंत्री रहते या प्रधान मंत्री के रूप में कदम उठाने के लिए प्रयास करते रहे | आख़िरकार  बिड़ला , टाटा , हिंदुजा , अम्बानी , अडानी के औद्योगिक समूहों के साथ अमेरिका , रूस , जर्मनी , जापान , ब्रिटैन , फ़्रांस ही नहीं इस्लामिक खाड़ी के देश संयुक्त अरब अमीरात और ईरान से आर्थिक सम्बन्ध बढ़ाने की पहल हाल के वर्षों में सफल हो रही है | अटलजी से 1978 से 2003 के बीच मुझे कई बार अनौपचारिक बातचीत अथवा औपचारिक इंटरव्यू के अवसर मिले | उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा था – ” सत्ता में रहने वाली हर पार्टी या गठबंधन और उससे जुड़े नेता को स्थायित्व के साथ विकास को सर्वोच्च प्राथमिकता देनी चाहिए | राजनैतिक  लड़ाइयां जनता की अदालत में लड़ी जानी चाहिए | आर्थिक सामाजिक विकास की योजनाओं , भ्रष्टाचार पर अंकुश , प्रशासन में कसावट तथा पारदर्शिता और चुनाव सुधारों के लिए निरंतर प्रयास होने चाहिए   | ” एक हद तक उनके लक्ष्य के अनुरूप प्रधान मंत्री  नरेंद्र मोदी ने कई कदम उठाए हैं | अटल पेंशन योजना अथवा हिमाचल से लद्दाख को जोड़ने वाली सुरंग सड़क योजना जैसे कार्यक्रम में उनका  नाम जुड़ा है | दूसरी तरफ ब्रिटिश काल के कानूनों में व्यापक परिवर्तन के लिए लगभग चार वर्षों की लम्बी तैयारी और पचासों विधिवेत्ताओं – न्यायाधीशों की सलाह से नई न्याय संहिता वाले नए कानूनों को संसद से स्वीकृति करा ली है | इसमें सामान्य जनता को सुगम और समय पर न्याय दिलाने के साथ बलात्कार , सामूहिक हत्या के गंभीर अपराधों के लिए मृत्यु दंड एवं भारत विरोधी अलगाववादी आतंकवादी तत्वों पर कठोरतम कानूनी शिकंजे – सजा का प्रावधान कर दिया है | इस दृष्टि से अटलजी द्वारा भारत के उज्जवल भविष्य के लक्ष्य को मोदी ने आने वाले वर्षों में भारत को विश्व मंच पर पहली पायदान में ले जाने का इंतजाम कर दिया है |

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।