Congress Challenges 16 Seats : MP की 16 लोकसभा सीटें कांग्रेस के लिए चुनौती, नए चेहरे लाकर सीटें बढ़ाने की कोशिश!
Bhopal : लोकसभा की 16 सीटें मध्यप्रदेश में भाजपा की गढ़ बन गई हैं। इन्हें जीत पाना कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। इसमें इंदौर और भोपाल लोकसभा सीट भी शामिल है। पार्टी अब इन सीटों पर जीत के लिए नए और दमदार चेहरे आगे करने की तैयारी में है।
इंदौर में वर्ष 1984 में कांग्रेस के प्रकाश चंद्र सेठी जीते थे। इसके बाद 1989 से लगातार भाजपा के कब्जे में ये सीट रही है। यही स्थिति भोपाल की है। यहां से आखिरी बार कांग्रेस प्रत्याशी केएन प्रधान 1984 में जीते थे। यहां भी 1989 से लगातार भाजपा जीतती रही है। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में कग्रिस ने पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह को उतारा, लेकिन उन्हें भी हार मिली।
बताया जाता है कि भिंड, विदिशा और दमोह में भी 1989 से यानी पिछले नौ चुनावों में भाजपा ही जीतती रही है। जबलपुर, मुरैना, बैतूल और सागर में भाजपा वर्ष 1996 से लगातार जीत रही है। एकमात्र छिंदवाड़ा ही ऐसी सीट है जहां एक बार छोड़ कांग्रेस लगातार जीतती रही है। 1997 के उप चुनाव में यहां से भाजपा के सुंदरलाल पटवा जीते थे। कांग्रेस इन सीटों को भाजपा से छीनने के लिए हर बार चुनाव से पूर्व रणनीति तो बनाती है, लेकिन सफल नहीं हो पाती। अब फिर सिर पर लोकसभा चुनाव है।
मुश्किल सीटों पर कांग्रेस की तैयारी
कांग्रेस ने सभी लोकसभा सीटों के लिए समन्वयक नियुक्त किए हैं जो क्षेत्र में सभी तरह के समीकरणों का आंकलन कर रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं। पार्टी के अलग-अलग स्तर पर प्रत्याशी चयन को लेकर सर्वे भी हो रही है। कांग्रेस यह भी नजर रख रही है कि भाजपा किस सीट पर किस प्रत्याशी को उतारने की तैयारी कर रही है, जिससे जातिगत समीकरणों को देखते हुए प्रत्याशी की तलाश की जा सके। इसके साथ ही ऐसे मतदान केंद्र जहां पार्टी पिछले चार चुनाव में लगातार हार रही है उन केंद्रों पर घर-घर संपर्क अभियान चलाया जा रहा है। तीन फरवरी से स्क्रीनिंग कमेटी की बैठक में प्रत्याशियों के नाम पर चर्चा होगी।
यहां दशकों से कांग्रेस नहीं जीती
सीधी 2009 से, टीकमगढ़ 2009 से, इंदौर 1989 से, भोपाल 1989 से, शहडोल 2014 से, भिंड 1989 से, मंडला 2014 से, विदिशा 1989 से, रीवा 2014 से, दमोह 1989 से, होशंगाबाद 2014 से, जबलपुर 1996 से, राजगढ़ 2014 से, बैतूल 1996 से, देवास-शाजापुर 2014 से, मुरैना 1996 से, उज्जैन 2014 से, सागर 1996 से, मंदसौर 2014 से, सतना 1998 से, धार 2014 से, बालाघाट 1998 से, खजुराहो 2014 से, खंडवा 2014 से, ग्वालियर 2007 से, गुना 2019 से, खरगोन 2009 से और झाबुआ-रतलाम 2019 से भाजपा के कब्जे में है।