कानून और न्याय: भारत में जीवंत लोकतंत्र को सर्वोच्च न्यायालय ने मजबूत किया!
हाल ही में प्रधानमंत्री द्वारा सर्वोच्च न्यायालय की हीरक जयंती समारोह में डिजिटल सुप्रीम कोर्ट रिपोर्ट, डिजिटल कोर्ट 2.0 और सुप्रीम कोर्ट की नई वेबसाइट कई प्रौद्योगिकी पहलों का शुभारंभ किया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री ने सर्वोच्च न्यायालय की उल्लेखनीय भूमिका का उल्लेख करते हुए कहा गया कि सुप्रीम कोर्ट ने भारत के जीवंत लोकतंत्र को मजबूत किया है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि भारत की आज की आर्थिक नीतियां कल के उज्जवल भारत का आधार बनेंगी। आज भारत में बनाए जा रहे कानून कल के उज्जवल भारत को और मजबूत करेंगे। न्यायालय की सुगमता प्रत्येक भारतीय नागरिक का अधिकार है और भारत के सर्वोच्च न्यायालय, इसका माध्यम है। उन्होंने कहा कि देष में न्याय की सुगमता में सुधार के लिए मुख्य न्यायाधीश के प्रयासों की सराहना करता हूॅं।
प्रधानमंत्री ने बताया कि देश में अदालतों के भौतिक बुनियादी ढांचे के लिए 2014 के बाद 7000 करोड़ रूपये वितरित किए गए हैं। साथ ही सर्वोच्च न्यायालय भवन परिसर के विस्तार के लिए पिछले सप्ताह 800 करोड़ रूपये मंजूर किए गए हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि एक मजबूत न्यायिक प्रणाली एक विकसित भारत की मुख्य नींव है। उन्होंने यह भी बताया कि ई-कोर्ट मिशन परियोजना के तीसरे चरण में दूसरे चरण की तुलना में चार गुना अधिक धन होगा। साथ ही यह भी कहा कि सरकार वर्तमान स्थिति और सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुरूप कानूनों के आधुनिकीकरण पर सक्रिय रूप से शामिल है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारतीय संविधान निर्माताओं ने स्वतंत्रता, समानता और न्याय पर आधारित स्वतंत्र भारत का सपना देखा था। सर्वोच्च न्यायालय ने इन सिद्धांतों को संरक्षित करने का लगातार प्रयास किया है। प्रधानमंत्री ने कहा कि चाहे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हो या सामाजिक न्याय, सर्वोच्च न्यायालय ने भारत के जीवंत लोकतंत्र को मजबूत किया है। प्रधानमंत्री ने व्यक्तिगत अधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर मील का पत्थर उन निर्णयों का उल्लेख किया, जिन्होंने देश के सामाजिक-राजनीतिक वातावरण को एक नई दिशा दी है। देश में पूरी न्याय प्रणाली भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रशासित और निर्देशित है। प्रधानमंत्री ने सर्वोच्च न्यायालय को दूरदराज के हिस्सों के लिए सुलभ बनाने की दिशा में सरकार की प्राथमिकता पर जोर दिया। ई-कोर्ट मिशन परियोजना के तीसरे चरण को स्वीकृति देने का उल्लेख किया। प्रधानमंत्री मोदी ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि देश की सभी अदालतों के डिजिटलीकरण की निगरानी स्वयं भारत के मुख्य न्यायाधीश द्वारा की जा रही है। प्रधानमंत्री ने उन्हें उनके प्रयासों के लिए बधाई दी।
सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा शुरू की गई डिजिटल पहल पर टिप्पणी करते हुए, प्रधानमंत्री ने डिजिटल प्रारूप में निर्णयों की उपलब्धता और स्थानीय भाषा में सर्वोच्च न्यायालय के फैसल के अनुवाद की परियोजना की शुरूआत पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने देश के अन्य न्यायालयों में भी इसी तरह की व्यवस्था की उम्मीद जताई। उन्होंने कहा कि आज का अवसर न्याय की सुगमता में प्रौद्योगिकी के सहायक होने का सही उदाहरण है। प्रधानमंत्री ने बताया कि उनके संशोधन का एआई की मदद से वास्तविक समय में अंग्रेजी में अनुवाद किया जा रहा है। इसे ऐप के माध्यम से सुना भी जा सकता है। उन्होंने कहा कि शुरूआत में कुछ मुद्दे उठ सकते हैं, लेकिन यह प्रौद्योगिकी के उपयोग के दायरे को भी बढ़ाता है। प्रधानमंत्री ने कहा कि आम लोगों के जीवन को आसान बनाने के लिए इसी तरह की तकनीक को लागू किया जा सकता है। लोगों की बेहतर समझ के लिए सरल भाषा में कानूनों का मसौदा तैयार करने के उनके सुझावों को याद करते हुए, मोदी ने अदालत के निर्णयों और आदेषों का मसौदा तैयार करने के लिए एक समान दृष्टिकोण का सुझाव भी दिया।
प्रधानमंत्री ने पुराने औपनिवेशिक आपराधिक कानूनों को समाप्त करने और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, भारतीय न्याय संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम जैसे नए कानून पेश करने में सरकार की पहलों पर प्रकाश डाला। उन्होंने जोर देकर कहा कि इन परिवर्तनों के माध्यम से, हमारी कानूनी, पुलिसिंग और जांच प्रणाली ने एक नए युग में प्रवेश किया है। इस अवसर पर मुख्य न्यायाधिपति डीवाय चंद्रचूड़ ने कहा कि एक संस्था के रूप में प्रासंगिक बने रहने की हमारी क्षमता के लिए हमें चुनौतियों को पहचानने और कठिन बातचीत शुरू करने की जरुरत है। उनके अनुसार चार मुद्दों पर कठिन बातचीत शुरू होनी चाहिए। उनके अनुसार सबसे पहले स्थगन संस्कृति से व्यावसायिकता की संस्कृति की ओर उभरना चाहिए। यह सुनिश्चित करना होगा कि मौखिक दलीलों की लंबाई के कारण न्यायिक परिणामों में लगातार देरी न हो। साथ ही कानूनी पेशे को पहली पीढ़ी के वकीलों, पुरूषों, महिलाओं और हाशिए पर रहने वाले अन्य लोगों के लिए समान अवसर प्रदान करना चाहिए, जिनके पास काम करने की इच्छा है और सफल होने की क्षमता है। एक महत्वपूर्ण मुद्दा लंबी छुट्टियों पर बातचीत शुरू करना चाहिए। निश्चित रूप से बार के परामर्श से तय करें कि क्या वकीलों और न्यायाधीशों के लिए फ्लेक्सि टाइम (लचीला समय) जैसे विकल्प संभव है।
उन्होंने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना आदर्शवाद की इस भावना के साथ की गई थी कि कानूनों की व्याख्या संवैधानिक अदालत द्वारा कानून के शासन के अनुसार की जाएगी, न कि औपनिवेशिक मूल्यों या सामाजिक पदानुक्रमों के अनुसार। इसने इस विश्वास की पुष्टि की कि न्यायपालिका को अन्याय, अत्याचार और मनमानी के खिलाफ एक ढाल के रूप में काम करना चाहिए। इस अवसर पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि आज का दिन बेहद महत्वपूर्ण दिन है। 28 जनवरी 1950 को सर्वोच्च न्यायालय की शुरूआत हुई। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने कहा था कि जब कभी कोई फैसला लेना हो, तो समाज के हाशिए पर खड़े व्यक्ति का ख्याल कर तय करें कि क्या उस फैसले से उसे कोई फायदा होने वाला है। सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना के बाद से हम गांधी जी की कहीं इस बात को ध्यान में रखकर फैसले लेते रहे हैं। समाज के हाशिए पर मौजूद वर्गों के व्यापक समावेशन पर ध्यान केंद्रित किया गया है। युवा आबादी का अपने पेशेवर जीवन में सफल होने का आत्मविश्वास भी उतना ही प्रेरणादायक है।
मुख्य न्यायाधिपति ने कहा कि परंपरागत रूप से, कानूनी पेशा अभिजात्य वर्ग के लोगों का पेशा था। समय बदल गया है। पेशे में परंपरागत रूप से कम प्रतिनिधित्व वाली महिलाएं अब जिला न्यायपालिका की कामकाजी ताकत का 36.3% है। न्यायाधीश और प्रशासन के रूप में हम इन बढ़ती आकांक्षाओं से अनभिज्ञ नहीं रह सकते। सन् 2024 की शुरूआत से पहले, पिछले 74 वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय के इतिहास में केवल 12 महिलाओं को वरिष्ठ वकील के रूप में नामित किया गया था। पिछले हफ्ते, सर्वोच्च न्यायालय ने एक चयन में देश के विभिन्न हिस्सों से आने वाली 11 महिलाओं को वरिष्ठ वकील के रूप में नामित किया। हमारी व्यवस्था में आबादी के विभिन्न वर्गों को शामिल करने से हमारी वैधता कायम रहेगी। इसलिए, हमें समाज के विभिन्न वर्गों को कानूनी पेशे में लाने के लिए और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, बार और बेंच दोनों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का प्रतिनिधित्व काफी हम है। उन्होंने यह भी कहा कि हमारी कोशिश होनी चाहिए कि लीगल सिस्टम में समाज के हर तबके के प्रतिनिधित्व रहे।
प्रधानमंत्री ने सर्वोच्च न्यायालय में पहली महिला न्यायाधीश स्व न्यायमूर्ति एम फातिमा बीवी को पद्म भूषण से सम्मानित किए जाने पर गर्व व्यक्त किया। इस अवसर पर भारत के मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़, विधि एवं न्यायमंत्री अर्जुन राम मेघवाल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और भूषण रामकृष्ण गवई, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, अटाॅर्नी जनरल आर. वेंकटरमानी, सर्वोच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष आदिश सी अग्रवाल और बार काउंसिल ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा इस अवसर पर उपस्थित थे। इस समारोह के बाद यह उम्मीद की जानी चाहिए कि विधि व्यवस्था में आमूल चूल सुधार की कोशिशें तय होगी तथा न्यायपालिका में गुणात्मक परिवर्तन को देश की जनता महसूस भी करेगी।