21 वीं सदी हिंदू और हिंदुत्ववाद पर बहस की नहीं है

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13 दिसंबर 2021 की तारीख देश के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से लिखी जाएगी। देश और दुनिया में बसे करोड़ों हिंदू आज बाबा विश्वनाथ के धाम की झलक देखकर गदगद हुए बिना नहीं रहेंगे। संकरी गलियों से गुजरकर बाबा विश्वनाथ की शरण में जाने से अब हर आस्थावान शिवभक्त को मुक्ति मिल गई है। वाराणसी से सांसद चुनकर लोकसभा पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बाबा के विशाल और भव्य मंदिर की कल्पना तब ही कर ली होगी, जब पहली बार दर्शन करने गए होंगे। प्रधानमंत्री के दूसरे कार्यकाल की आधी यात्रा में इसे साकार कर उन्होंने हर आस्थावान सनातन धर्मी को भव्य विश्वनाथ मंदिर की सौगात देकर यह संदेश दिया है कि वह अतीत का गौरव देश को लौटाएंगे तो भविष्य में दुनिया का नेतृत्व करने वाले भारत का निर्माण करके रहेंगे। जिसकी झलक उन्होंने काशी कॉरिडोर के लोकार्पण के बाद अपने उद्गारों में भी दिखाई। आज का भारत सिर्फ अयोध्या में प्रभु श्रीराम का मंदिर ही नहीं बना रहा है, बल्कि हर जिले में मेडिकल कॉलेज भी बना रहा है। आज का भारत सिर्फ बाबा विश्वनाथ धाम को भव्य रूप ही नहीं दे रहा बल्कि गरीब के लिए करोड़ों पक्के घर भी बना रहा है। विश्वनाथ धाम का ये पूरा नया परिसर एक भव्य भवन भर नहीं है, ये प्रतीक है हमारे भारत की सनातन संस्कृति का। ये प्रतीक है हमारी आध्यात्मिक आत्मा का। ये प्रतीक है, भारत की प्राचीनता का- परम्पराओं का।  भारत की ऊर्जा का, गतिशीलता का। मोदी के यह उद्गार उनकी उस सोच को प्रतिबिंबित कर रहे हैं, जिसमें संशय की कोई गुंजाइश नहीं है। सनातन संस्कृति, आध्यात्मिकता और आस्था के प्रतीक बाबा विश्वनाथ का मंदिर हो या अयोध्या में जन्मे प्रभु राम का मंदिर, मथुरा में जन्मे भगवान कृष्ण की जन्मस्थली में हर हिंदू की आस्था की बात हो या फिर माया यानि हरिद्वार, कांचीपुरम, अवंतिका यानि उज्जैन और द्वारिकापुरी की बात हो, यह सातों मोक्षदायीनी पवित्र पुरियां हर आस्थावान हिंदू की आत्मा में बसती हैं। यदि देश का मुखिया सनातन संस्कृति के प्रतीक इन धार्मिक स्थानों को संवारने का काम कर रहा है तो तय है कि वह उन करोड़ों आस्थावान हिंदुओं से आत्मिक रिश्ता कायम कर रहा है। और इसको सत्ता से जोड़कर देखना संकुचित विचारधारा का प्रदर्शन करने से इतर कुछ भी नहीं है। इसके साथ यदि कोई प्रधानमंत्री यदि देश की जनता से देश के लिए कुछ मांगने की हिम्मत जुटा रहा है तो वह मोदी ही हो सकता है। मैं आज आपसे अपने लिए नहीं, देश के लिए कुछ मांगता हूं। मैं आपसे तीन संकल्प चाहता हूं। पहला स्वच्छता, दूसरा सृजन और तीसरा आत्मनिर्भर भारत के लिए निरंतर प्रयास। यानि स्वच्छ, समृद्ध और आत्मनिर्भर भारत के संकल्प पर यदि हर देशवासी अमल करता है तो इस देश को दुनिया में सिरमौर बनने से कौन रोक सकता है?
काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव को समर्पित सबसे प्रसिद्ध हिंदू मंदिरों में से एक है। यह बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। इन्हें विश्वनाथ या विश्वेश्वर नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ है ब्रह्मांड के शासक हैं। वाराणसी शहर को काशी भी कहा जाता है। इसलिए मंदिर को काशी विश्वनाथ मंदिर कहा जाता है। मोदी ने जो कहा कि काशी तो काशी है। काशी तो अविनाशी है। काशी में एक ही सरकार है, जिनके हाथों में डमरू है, उनकी सरकार है। जहां गंगा अपनी धारा बदलकर बहती हों, उस काशी को भला कौन रोक सकता है? आप यहां जब आएंगे तो केवल आस्था के दर्शन नहीं करेंगे। आपको यहां अपने अतीत के गौरव का एहसास भी होगा। कैसे प्राचीनता और नवीनता एक साथ सजीव हो रही हैं, कैसे पुरातन की प्रेरणाएं भविष्य को दिशा दे रही हैं। इसके साक्षात दर्शन विश्वनाथ धाम परिसर में हम कर रहे हैं।
इसका सार यही है कि प्राचीनता और नवीनता के साक्षात दर्शन काशी विश्वनाथ मंदिर की तरह देश में भी हर व्यक्ति करेगा। जहां अतीत गौरवान्वित होगा तो भविष्य भौतिक विकास से सरावोर हो दुनिया को अपने सर्वश्रेष्ठ होने का लोहा भी मनवाएगा। यहां संत रैदास का दर्शन भी दिलों को रोशन करेगा तो स्वामी विवेकानंद की वह सोच भी राज करती है कि लक्ष्य हासिल होने तक रुकना नहीं है। चरैवेति चरैवेति का मूल मंत्र भी यही है। और बुद्ध की धरती पर मोदी यह अहसास कराने से भी नहीं चूकते कि हर भारतवासी की भुजाओं में वो बल है, जो अकल्पनीय को साकार कर देता है। हम तप जानते हैं, तपस्या जानते हैं, देश के लिए दिन रात खपना जानते हैं। चुनौती कितनी ही बड़ी क्यों ना हो, हम भारतीय मिलकर उसे परास्त कर सकते हैं।
काशी विश्वनाथ मंदिर के निर्माण में पसीना बहाने वाले मजदूरों के साथ भोजन करना, फूल बरसाकर उनका सम्मान करना सुकून देता है उन करोड़ों श्रमिकों और मजदूरों को, जो समृद्ध भारत की नींव हैं। तो उसी काशी में भाजपा शासित राज्यों के मुखियाओं की कक्षा लेकर यह पाठ भी पढ़ाया जा रहा है कि काम ऐसा करना ही पड़ेगा जो लोगों को दिखे भी और उनकी उम्मीदों पर खरा भी साबित हो सके। बात चाहे आस्था की हो या फिर जन-जन के कल्याण की और समृद्ध भारत के निर्माण की। मोदी यही जताना चाहते हैं कि 21 वीं सदी अब हिंदू और हिंदुत्ववाद पर बहस करने की नहीं है बल्कि अतीत के गौरव और भविष्य के भारत निर्माण की है।
कबीर को याद किए बिना काशी अध्याय पूरा नहीं हो सकता। उनका कहना है कि “मानुष जन्म दुर्लभ है, मिले न बारम्बार। तरवर से पत्ता टूट गिरे, बहुरि न लागे डारि।” यानि हर व्यक्ति को मनुष्य जन्म सार्थक हो सके, ऐसे कर्म कर जीवन को सफल बनाना चाहिए। हर इंसान के लिए यह मंत्र मूलमंत्र साबित हो सकता है।