सौ दिन सरकार के…

326

सौ दिन सरकार के…

मध्यप्रदेश में डॉ. मोहन यादव के मुख्यमंत्रित्व काल के सौ दिन पूरे हो गए हैं। यह कहें कि पिछले बीस साल 2003 से 2023 में पंद्रह माह कांग्रेस की और बाकी 18 साल नौ माह भाजपा की सरकार रही है।‌ इक्कीसवीं सदी में डॉ. मोहन यादव भाजपा के चौथे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने 13 दिसंबर 2023 को सीएम पद की शपथ ली थी। 2003 के बाद उमा भारती, बाबूलाल गौर एक-एक बार और शिवराज सिंह चौहान चार बार मुख्यमंत्री के पद पर आसीन हुए हैं।‌ तो पंद्रह माह कांग्रेस सरकार में मुख्यमंत्री कमलनाथ रहे हैं। डॉ. मोहन यादव के सौ दिन को उपलब्धियों के तौर पर देखा जाए, तो सबसे बड़ी उपलब्धि है कि उन्होंने यह साबित कर दिया है कि परिश्रम की पराकाष्ठा करने में वह किसी से कम नहीं हैं। अभी तक परिश्रम की पराकाष्ठा के तौर पर शिवराज सिंह चौहान का चेहरा सबके सामने आ जाता था। अब लगता है कि डॉ. मोहन यादव ने साबित कर दिया है कि वह परिश्रम करने में शिवराज जितने नहीं तो शिवराज से बहुत कम भी नहीं हैं। तो सहजता, सरलता और विनम्रता भी मोहन की पहचान बन रही है। बेटे की शादी पुष्कर में गिने-चुने मेहमानों के बीच कर भी डॉ. मोहन यादव ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि शादी में फिजूलखर्ची और दिखावे से हर इंसान को बचना चाहिए। तो नौकरशाही को संदेश दिया है कि प्रदेश के जन-जन को सम्मान पाने का पूरा हक है, अब यदि किसी अफसर ने जनता जनार्दन के साथ बदसलूकी की तो उसकी खैर नहीं है। मध्यप्रदेश की मोहन सरकार में जन के साथ कुछ गड़बड़ हुआ और बिगड़े बोल सुनाए गए तब संबंधित अफसर और कर्मचारियों की खैर नहीं है।

तीस दिन पूरे होने पर लोगों ने आकलन किया कि मोहन यादव सरकार के एक महीने में सरकार का सबसे ज्यादा जोर सुशासन पर रहा। लोगों को किस तरह आसानी से सुविधाएं मिल सकें, इसके लिए नए प्रयोग भी किए गए। अलग-अलग संभागों में जाकर सरकार ने कानून व्यवस्था की संभागीय समीक्षा की।सरकार ने यह संदेश देने की कोशिश की कि वह संकल्प पत्र के वादों को पूरा करने के प्रति गंभीर है। तेंदूपत्ता संग्राहकों का बोनस बढ़ाया गया, जिसकी संकल्प पत्र में घोषणा की गई थी। मुख्यमंत्री बनने के बाद पहला आदेश धार्मिक स्थलों में तय मानक से अधिक आवाज में बजने वाले ध्वनि विस्तारक यंत्रों को हटाने के लिए दिया था। पुलिस-प्रशासन ने एक महीने में लगभग 27 हजार घ्वनि विस्तारक यंत्र हटवाए, लेकिन कई जगह वे फिर से बजने लगे हैं। दूसरा आदेश खुले में मांस की दुकानें संचालित करने पर रोक को लेकर था। कुछ दिन की सख्ती के बाद फिर सब पुराने ढर्रे में आता दिख रहा है।हुकुमचंद मिल के मजदूरों को उनका हक दिलाने का बहुत बड़ा काम डॉ. मोहन यादव ने किया। केन-बेतवा और चंबल कालीसिंध परियोजना का बड़ा काम भी मोहन यादव सरकार ने करके दिखाया।

फिर दो महीने के कामों का आकलन हुआ और सामने आया कि डॉ.मोहन सरकार ने गरीब कल्याण को प्राथमिकता देते हुए गरीबोत्थान की दिशा में कई फैसले लिए हैं। मुख्यमंत्री डॉ. यादव के नेतृत्व में हुकुमचंद मिल के 4 हजार 800 श्रमिक परिवारों को लंबे संघर्ष के बाद न्याय मिला। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गरिमामय उपस्थिति में सरकार ने उनके हक की 224 करोड़ रुपए की राशि का भुगतान किया। प्रदेश सरकार ने संकल्प पत्र के वादे को पूरा करते हुए तेंदूपत्ता संग्राहकों का मानदेय 3000 रुपए प्रति बोरा से बढ़ाकर 4000 रुपए किया। इस निर्णय से प्रदेश के 35 लाख तेन्दूपत्ता संग्राहकों को लाभ मिलेगा।

तो सड़कों के नए काम शुरू हुए, केन-बेतवा लिंक और चंबल-कालीसिंध जैसी वृहद महत्वाकांक्षी परियोजनाओं पर काम शुरू हुआ तो कानून व्यवस्था पर भी सरकार का फोकस रहा। और सरकार महिलाओं, युवाओं और किसानों की हितैषी बनने में भी जुटी रही। पर मोहन यादव की असल परीक्षा लोकसभा चुनाव संपन्न होने के बाद है।‌ सौ दिन में विधानसभा चुनाव जीतकर लोकसभा चुनाव की देहलीज पर पहुंचे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव के सामने चुनौतियों का अंबार है। सख्त और कोमल मुख्यमंत्री की पहचान को आगे बढ़ाते हुए मध्यप्रदेश को विकसित राज्य बनाने में अभी मीलों का सफर बाकी है। पर इन सौ दिनों में विचार और दृष्टिकोण के धनी डॉ. मोहन यादव की सफलता पर संशय की कोई गुंजाइश फिलहाल नजर नहीं आती…।