Flashback: Battalion के साथ ट्रेन से असम का वो यादगार सफर

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Flashback: Battalion के साथ ट्रेन से असम का वो यादगार सफर

अपने पूरे सेवा काल के व्यस्ततम ढाई साल CSP और एडिशनल SP इंदौर के बाद बिना किसी उत्साह के मैंने दिनांक 29 सितम्बर, 1979 को 24वीं इंडिया रिज़र्व Battalion के मुख्यालय, जावरा में कमान्डेंट का चार्ज लिया।लेकिन कालांतर में कमांडेंट का कार्यकाल रोमांचक यादों का सिद्ध हुआ। जावरा रतलाम ज़िले का सब डिवीज़न एवं एक सम्पन्न क़स्बा है।यहाँ पर द्वितीय विश्वयुद्ध के समय की कुछ पुरानी बैरकों में बटालियन का मुख्यालय था जबकि मेरा कार्यालय क़स्बे के अन्दर था। कमांडेंट के रहने के लिए जावरा शुगर मिल का छोटी लाइन के स्टेशन के सामने स्थित ‘हेंडरसन बँगला’ था जिसमें मैं, लक्ष्मी और छोटी बच्ची के साथ रहने लगा।

कुछ समय मुख्यालय पर Battalion का काम समझने में लगाया और फिर भ्रमण पर निकला।बटालियन की चार कंपनियां मंदसौर और शाजापुर ज़िले के अंदरूनी क्षेत्रों में लगी थीं। अंदरूनी क्षेत्र में कंपनियां भी प्लाटून और सेक्शन के पोस्टों में दूर-दूर तक बंटी थी। सभी कम्पनियों और इनके लगे हुए दूर दराज़ के सभी पोस्टों का मैंने दौरा किया तथा सुसनेर, आगर, नलखेड़ा जैसे स्थानों पर रात्रि विश्राम किया। जवानों की अनेक समस्याओं को दूर करने का प्रयास भी किया।

बटालियन की शेष दो कंपनियां इंदौर शहर में तैनात थीं जिन्होंने कुछ ही दिनों पहले पुलिस आंदोलन का नेतृत्व किया था, जिसका वर्णन मैं कर चुका हूँ।इंदौर जाकर इन कंपनियों के कर्मचारियों को संबोधित कर उन्हें अनुशासन हेतु प्रेरित किया।
22 फ़रवरी, 1980 को एक महीने की रिसर्च मेथडोलॉजी की ट्रेनिंग पर मुझे ICFS, नई दिल्ली भेज दिया गया। अधिकांशतया ट्रेनिंग पर ऐसे अधिकारियों को ही भेजा जाता है जो जिला पुलिस में कार्यरत नहीं है।

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ट्रेनिंग समाप्त होने के एक सप्ताह पहले ही अचानक ICFS के डायरेक्टर के पास वायरलेस आया कि मुझे तुरंत ट्रेनिंग छोड़कर वापस लौटना है और पूरी Battalion को जावरा से गौहाटी (गुवाहाटी), आसाम लेकर जाना है। मुझे वापस लौटना पड़ा। दिसंबर 1979 में आसाम आंदोलन शुरू हो गया था और आंदोलनकारियों ने गौहाटी स्थित नारंगी ऑयल पम्प फ़ैक्ट्री से बिहार की बरौनी रिफ़ाइनरी की पेट्रोलियम पाइप लाइन को बंद कर दिया था।

आसाम जैसा अभूतपूर्व व्यापक आंदोलन स्वतंत्र भारत में कभी नहीं देखा गया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस स्थिति से निपटने के लिए अतिरिक्त पुलिस और पैरामिलिट्री की बटालियनों को आसाम भेजने का निर्देश दिया।राज्यों से इंडिया रिज़र्व पुलिस बटालियन भेजने के लिए कहा गया तो मध्य प्रदेश सरकार ने सहर्ष 24वीं बटालियन को भेजने का निर्णय ले लिया।

जावरा पहुँचकर मैंने अपनी पत्नी को उनके मायके रीवा भेज दिया। सीधी भर्ती के बहुत सुलझे हुए IPS अधिकारी नंदन दुबे मेरे डिप्टी कमांडेंट थे। उन्होंने पहले ही कंपनियों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया था तथा रेलवे से चर्चा करके स्पेशल ट्रेन के डिब्बे एकत्र करना शुरू कर दिया था।

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छह सामान्य कंपनियों और एक हेड क्वार्टर कंपनी के लिए दो-दो साधारण बोगी, मेरे और डिप्टी कमांडेंट तथा आठ अन्य राजपत्रित अधिकारियों के लिए एक फ़र्स्ट क्लास की बोगी, पूरी Battalion का भारी सामान रखने के लिए अनेक मालगाड़ी के डिब्बे, सात कम्पनियों के लिए मेस के सात डिब्बे एवं जीप व और ट्रकों को रखने के लिए 30 से अधिक खुले KF वैगन इकट्ठे किए गए थे। सारी कंपनियों को एक साथ रखने के लिए बैरकें नहीं थी इसलिए उन्हें स्टेशन पर ख़ाली रेलगाड़ी के डिब्बों में बहुत दिनों तक सोना पड़ा। सभी जवानों के पास अपनी राइफ़लें थीं।

आखिरकार जब सब डिब्बे इकट्ठे हो गए तब छह अप्रैल को हमारी स्पेशल ट्रेन जावरा से छोटी लाइन की सिंगल ट्रैक पर निकल पड़ी।एक हथियारबंद पूरी बटालियन की स्पेशल ट्रेन के प्रमुख होने के नाते मेरे ऊपर भारी ज़िम्मेदारी आ गई थी।

इतनी भारी भरकम और लंबी ट्रेन 25-30 किलोमीटर प्रति घंटे से तेज़ नहीं चल सकती थी और पीछे की सारी रेल गाड़ियों को भी धीरे चलने के लिए विवश कर देती थी। लंबी इतनी थी कि किसी भी स्टेशन के आगे और पीछे के पटरी लिंक के बाहर निकल जाती थी, इसलिए किसी स्टेशन पर रूक कर पीछे की ट्रेन को पास नहीं दे सकती थी। इसे केवल बड़े जंक्शनों में कई हिस्सों में तोड़कर खड़ा किया जाता था और फिर दोबारा जोड़कर चलाया जाता था।

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इसमें पाँच- छै घंटे का समय लगता था और इस बीच सभी कंपनियों की अलग-अलग मेस का चूल्हा-बर्तन उतारकर खाना बनाया जाता था।ट्रेन में बातचीत करने और हाल्ट के समय उतर कर बाहर घूमने का मुझे पूरा अवसर मिलता था।पहला हाल्ट चित्तौड़ में हुआ जहाँ पर मैं और नंदन दुबे बाहर जाकर चित्तौड़ के ऐतिहासिक क़िले का अवलोकन कर आए। फिर अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के दर्शन करने का सुअवसर मिला।

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मथुरा में गोपाल मंदिर के दर्शन किये। इसके बाद रेलगाड़ी कासगंज जंक्शन पर जाकर खड़ी हुई।अगला पड़ाव फ़र्रुख़ाबाद था जहाँ मैं उतर कर अपनी बहन की ससुराल में जाकर लोगों से मिलकर आया। अगला हाल्ट लखनऊ था जो मेरा गृह निवास है। वहाँ पर माता, पिता एवं परिवार जनों से मिलने का अवसर मिला जो मेरे आसाम जाने से बेहद चिंतित थे।

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फिर हमारी गाड़ी जब गोरखपुर में रुकी तब स्टेशन मास्टर ने मुझे आकर कहा कि केंद्र सरकार के आदेश से आपकी गाड़ी को व्हाइट हार्स प्रिऑरिटी दी गई है और वह रास्ते में कहीं नहीं रुकेगी।बिहार के सीवान में कुछ देर के लिए गाड़ी रुकी और फिर लगातार चलनी रही।सिलीगुड़ी आने के पहले मैंने वायरलेस से गार्ड को कहा कि सिलीगुड़ी में टेक्निकल हाल्ट के नाम पर ट्रेन को रोकें ताकि हमारे लोग स्टेशन के आस पास से कुछ खाने के लिए ख़रीद सकें।

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एक घंटे वहाँ रूक कर गाड़ी काफ़ी चलकर फिर थोड़ी देर के लिए अलीपुरद्वार में जाकर रुकी, फिर वहाँ से अंतिम पड़ाव के लिए चल पड़ी। देर सुबह के समय हमारी ट्रेन गौहाटी के आउटर पर सरायघाट पर बने विशाल ब्रह्मपुत्र नदी के पुल पर पहुंचकर धीमी होकर चलने लगी। वहाँ से ऊँची कामाख्या की पहाड़ी दिखाई पड़ी।सभी डिब्बों से ज़ोरदार आवाज़ आने लगी “बोल कामाख्या माई की जय”।आठ दिन पूरे करके हमारी स्पेशल ट्रेन गौहाटी रेलवे स्टेशन पर जाकर खड़ी हुई। यह सफ़र एक अत्यंत लोमहर्षक अनुभव था जो बिरले अधिकारियों को ही प्राप्त होता है।