“अपना बच्चा”

कहानी

“अपना बच्चा”

टीवी पर कई लगातार सीरियल देखते देखते बोर होती रचना कुक का रास्ता देखने लगी। उसका आने का समय हो गया था। कमली रोज ठीक पाँच बजे पहुँच जाती थी। आज पाँच बजकर पंद्रह मिनिट हो चुके है और उसका कहीं अता-पता नहीं। चाय की तलब ने रचना को उठा दिया। रचना चाय बनाने के लिए उठ रसोई गई। उसने चाय का पानी रखा, दूध डाला, चीनी और चाय पत्ती डाल ही रही थी कि कॉल बेल बज उठी। रचना ने सिद्धार्थ समझ कर दरवाजा खोला, देखा तो कमली सामने खड़ी थी।

“क्या हुआ ? इतनी लेट ?”

“हाँ मेडम, लेट हो गया। मैंने बताया था ना मेरी एक सहेली है जीना। उसी से बात करने लगी थी, इसलिए देरी हो गई।”

“कल तुझे बताया तो था, शाम को जल्दी आना है और तू है के बात करती खड़ी हो गई …। अब साहब आएंगे तो देखना जल्दी मचाएंगे।”

“अच्छा-अच्छा। चिंता मत करो मेडम, अभी जल्दी-जल्दी बना देती हूँ। बताइए, क्या-क्या खाना बनाना है? ….. अच्छा आप जब तक इस बारे में सोचिए। मैं तब तक बर्तन धो देती हूँ।”

कमली बर्तन धोने लगी। रचना ने कमली को भी चाय दी और खुद पीने लगी। वह मन ही मन सोच रही थी कि सिद्धार्थ आते ही होंगे और आते ही शिकायत करेंगे। देरी जो हो गई है। तुम लोग कितना लेट करती हो। कमली पूरे बीस मिनिट लेट आई है। खैर, रचना सोचने लगी कि कौनसी सब्जी बनाऊँ जो फटाफट बने। इसके पहले कि वह फ्रिज खोलकर सब्जी देखती बजते मोबाइल ने ध्यान आकर्षित किया। सिद्धार्थ का है देखते हुए रचना ने मोबाइल कान से लगाया। ठीक से ‘हैलो’ भी नहीं बोल पाई थी कि ..

“मैं आज जल्दी नहीं आ पाऊँगा डियर, मीटिंग है। आने में मुझे लेट होगा। खाना भी बाहर ही

खाऊँगा। आज हम जो बाहर जाने वाले थे नहीं जा पाएंगे। कल चलते हैं। ठीक है। जल्दी मेंहूँ। रख रहा हूँ। जाना है।”

बिना एक शब्द सुने सिद्धार्थ ने फोन रख दिया। वह थोड़ी-थोड़ी निश्चिंत और उदास भी हुई कि लेट जो हो गया था लेकिन अब बाहर जाना कैंसल हो चुका है। रचना चाय पीती टहलती हुई बालकनी में आकर बैठ गई। जहाँ से झील का किनारा दिखता था। हरियाली दिखाई देती थी। खुला आसमान दूर तक पंछियों से भरा दिखाई देता था। पंछी उड़ते हुए घोंसलों की ओर लौट रहे थे। रचना चाय की गरम-गरम चुस्की लेते हुए उन्हें उड़ते हुए दूर जाते देख रही थी। अचानक कमली के हड़बड़ाते तेज स्वर ने उसे चौका किया।

“मेडम, जल्दी-जल्दी बताओ क्या बनाना है?” ऊँचे स्वर में कहती वह चाय लेकर रचना के बाजू जमीन में ही बैठ, चाय पीने लगी।

“कुछ भी खास नहीं बनाना है रे कमली, आराम से चाय पी…” रचना की शांत उपेक्षित नजर नजारों का लुत्फ उठाने लगी।

“अचानक क्या हुआ मेडम? अभी तो आप कह रहे थे … जल्दी जाना है … अब क्या हुआ? साहब को गुस्सा आया क्या? लगता है उन्हीं का फोन आया था और आप यहाँ आकर बैठ गए।” कमली ने परेशान होकर पूछा।

“अरे कोई गुस्सा-वुस्सा नहीं। तेरे साहब की आज कोई मीटिंग है। इसलिए आज जल्दी नहीं आ पाएंगे। आज हमारा बाहर जाना टल गया है।” रचना ने तसल्ली से कहा।

“अच्छा। मुझे लगा, मैं लेट आई …. कहीं आप लोगों का मुड़ तो खराब नहीं हो गया। आपको तो पता है मैं कभी लेट नहीं करती। आज वो जीना मिल गई थी, उसकी बात सुनते-सुनते समय का पता नहीं चला। वो अपने बारे में बताती चली गई और मैं सुनती रही।” कमली बिना रुके बोलती रही।

रचना ने कुछ नहीं कहा उसकी बातें सुनती रही। कमली को कुछ कहने की जरूरत ही नहीं पड़ती थी। जब वह एक बार बोलने लगती तो बोलती ही चली जाती। लेकिन रचना दुबारा जीना का नाम सुनकर पूछ बैठी।

“क्या हुआ जीना को? ये वही है ना जिसके बारे में तू बताया करती थी। पास की बड़ी सोसायटी की बिल्डिंग में काम करती है?”

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“हाँ वही जीना मेडम, अब वो वहाँ काम नहीं करती। छोड़ दी। बड़ी दुखी है बेचारी। उसने उनका काम छोड़ दिया। चार साल पुराना काम था उसका। उसका मरद भी वहाँ ड्रायव्हर का काम करता था और वो घर का खाना बनाती और बच्चों को संभालती थी। मेडम के दो बच्चे थे, एक लड़का एक लड़की। जीना दोनों बच्चों को बहुत मन से देखती थी, बिलकुल अपने बच्चों

की तरह। जीना शादी होकर आई थी तभी से उनके घर काम करने लगी लेकिन अब छोड़ना पड़ा।”

“अचानक क्या हो गया? अच्छा खासा लगा-लगाया काम छोड़ दी। चार साल से कर रही थी इसका मतलब मेडम से भी उसका अच्छा था। फिर क्यों ? अचानक ? अब कहाँ मिलेगा उसे नया काम इतना बड़ा?”

“जीना का कहना है, ‘न मिलता है ना मिले, जाने दो। वो मेडम अच्छी नहीं थी मेडम । सब आपके तरह नहीं होते।”

“अरे … ऐसा भी क्या हो गया?”

“क्या बताऊँ मेडम । अब हम पढे लिखे तो है नहीं। हम काम वाली बाई लोग आप लोगों के घर काम करने आते हैं। कुछ दुख-दर्द हो तो आप लोगों से ही बताते भी है। ऐसे ही वो अपनी मेडम से अपनी बातें बताया करती थी। अब औरत औरत पर विश्वास कर ही लेती है। उसने भी अपनी मेडम पर विश्वास किया लेकिन उसकी मेडम ने उसे बड़ा धोखा दिया।” कमली जैसे राज खोलने लगी।

“धोखा ! क्या बोल रही है? ऐसा भी क्या हो गया? पगार नहीं दी क्या? पैसा रोक लिया? छुट्टी का डबल पैसा तो नहीं काट दिया?” रचना ने जिज्ञासावश पूछ लिया।

“जो आप अभी पूछ रहे हो ना मेडम ! ऐसा तो हम बाईयों के साथ अक्सर होता रहता है। ये कोई बड़ी बात नहीं। इसकी हम लोगों को आदत है।”

“फिर?” रचना ने बातों की तह तक जाना चाहा।

“अरे मेडम ! सभी मेडम एक जैसी नहीं होती। आपने कितनी बार मेरी तकलीफों में मुझे समझाया। साथ दिया। दवा-गोली दी। हम अनपढ़ लोग है। आप लोगों पर आँख मूँद कर विश्वास भी कर लेते हैं क्योंकि आप लोगों को हमसे ज्यादा मालूमात है। सभी बातें हमसे ज्यादा समझ में आती है। यह हम जानते है।”

“कैसी बड़ी बड़ी बातें कर रही है कमली, बात क्या है? अब तो मुझे भी उत्सुकता बढ़ने लगी। जीना ठीक तो है?” रचना चिंतित हुईं।

“अब ठीक है मेडम” कमली ने शांति से कहा।

“अब ठीक है मतलब ! हुआ क्या था?” रचना सन्नाटे में थी।

“बताती हूँ मेडम । जीना उसकी मेडम पर बहुत विश्वास करती थी। अविश्वास का सवाल ही नहीं उठता, मेडम । हम सभी बाईयां अपनी अपनी मेडम पर शुरुआत में विश्वास ही करते हैं जब तक की धोखे वाली कोई घटना ना हो। जब भी जीना को कोई अपनी कोई घरेलू दिक्कत होती वह अपनी मेडम को बताती। मेडम कुछ सुझाव देती और जीना उनकी बात मान लेती। चार साल से जीना मेडम के साथ एकदम हिलमिल गई थी। उनके बच्चों को संभालती। बच्चे भी जीना-जीना करते रहते थे। मेडम कभी-कभी जीना के ऊपर पूरा घर छोड़कर जाया करती थी। जीना भी खुश थी। कोई जब हम पर विश्वास जताता है तो खुशी होती ही है मेडम। जीना के दिन मजे में कट रहे थे। खाने-पीने पैसे कौड़ी की कोई परेशानी नहीं होती। मेडम निश्चिंत थी और जीना भी खुश। कभी-कभी जीना मेडम और बच्चों के साथ बाहर भी जाती। उसका आदमी ही उन सभी को बाहर ले जाता। कभी साहब भी साथ जाते। वह सुबह से काम पर लगी रहती। नाश्ता, दोनों समय का खाना। बर्तन और झाडू-पोंछा को अलग से दूसरी बाई थी। उसे भी जीना ही देखती थी। मेडम के दोनों बच्चे जीना के साथ माँ की तरह लगे रहते। जीना भी बहुत अच्छे से उनकी देखभाल किया करती थी।”

“अच्छा!…. आगे … ” रचना की उत्सुकता बढ़ने लगी।

“मेडम, मैं आपको जीना के बारे में बताती हूँ तभी आपको पूरी बात समझा पाऊँगी। जीना ने अपने मरद से लव करके शादी बनाई थी। जिसके कारण उन दोनों के घर वालों ने उनसे संबंध तोड़ लिया था। मरद जहाँ ड्राइव्हर का काम करता था उनके घर खाना बनाने और बच्चा संभालने वाली की जरूरत थी। जीना ने वहीं काम पकड़ लिया और खुशी-खुशी दोनों काम करने लगे। उन दोनों को कोई शिकायत भी नहीं थी।”

“हम्म

“तीन साल बाद जीना का पेट रह गया। वो खुश थी। उसका आदमी भी खुश था। शुरुआत में जीना को उलटी आने लगी, चक्कर आने लगे। उसे सही नहीं देखकर मेडम ने पूछा तो उसने खुशी-खुशी ‘बच्चा ठहरने’ की बात बता दी और चक्कर व उल्टी होने की बात भी बताई। कहा, मेरा दूसरा महीना चल रहा है। मेडम ने कुछ बोला नहीं। जीना को उन्होंने एक गोली दी और कहा, ‘मेरे सामने अभी खा लो। जीना ने पूछा “मेडम ये क्या दवाई है”। उन्होंने कहा, “तुझे जो परेशानी हो रही है उसमें आराम हो जाएगा। जीना ने खुशी-खुशी वह दवाई खा ली, सोची मेडम ने दिया है तो ठीक ही दिया होगा। काम पूरा होने के बाद जब वह घर पहुँची, रात में उसका गर्भ गिर गया। वह बहुत रोई। आदमी को भी बताया कि मेडम ने एक दवाई दी थी कहा था सब ठीक हो जाएगा। मैंने दवाई खा ली। लेकिन यह तो गर्भ ही गिर गया। बहुत

तकलीफ हुई दोनों को, लेकिन दोनों में से किसी ने मेडम से कुछ नहीं कहा। अपना रोज का आना-जाना और काम करते रहे।”

“उफ्फ़ इतनी बर्बरता विश्वास नहीं होता …। फिर उसने उसी समय काम क्यों नहीं छोड़ा?” परेशान सी रचना पूछ बैठी।

“बताती हूँ, कह रही थी जीना, बच्चा तो गिर ही चुका था। क्या करते, हम दोनों मन मसोस कर रह गए। दूसरा काम तुरंत मिलना भी मुश्किल होता है। काम नहीं छोड़ा पर सतर्क हो गए। उसके बाद उसने उस मेडम के हाथ से कुछ लेना, खाना, बंद कर दिया। बातचीत भी कम कर दी। साल गुजर गए। जीना दोबारा गर्भवती हुई। दोबारा उनके आँगन में खुशियाँ आई। आदमी-औरत दोनों बहुत खुश हुए। जीना ने मेडम को बताया। मेडम बोली-

“इतनी जल्दी बच्चा करने की क्या जरूरत है? अभी तुम्हारी शादी को दिन ही कितने हुए है। अभी तो तुम्हारे हँसने-खेलने मजे करने के दिन है। अभी बच्चा मत करो। हमें रिटायरमेंट को दो-तीन साल बचे है। तब तक तुम यहाँ काम करो। जब हम चले जाएंगे तब तुम बच्चा कर लेना। अभी मत करो, नहीं तो तुमसे काम नहीं होगा। अभी तुम यह बच्चा गिरा दो। इसे गिराने का सब खर्चा मैं दूँगी। तुम निश्चिंत रहो। पैसे की चिंता मत करो। मेरे घर का यह काम तुम अभी छोड़ नहीं सकती।” मेडम की बातें सुनकर वह अवाक थी जीना।

“मेडम जी ना चुपचाप मेडम की बात सुनती रही। सोचने लगी थी वह, ‘इसका मतलब क्या”

मेडम ने पिछली बार मुझे बच्चा गिरने की गोली तो नहीं दी थी!’ खाते ही रात में बच्चा गिर

गया था। सोचते ही जीना को चक्कर आने लगे। वह वहीं जमीन पर बैठ गई। उसे पूछने की

भी हिम्मत नहीं रह गई कि ‘आपने मेरे साथ ऐसा क्यूँ किया’। जैसा कि उसके मरद ने कहा

था हम चुपचाप यह काम छोड़कर चले जाएंगे, किसी से कुछ नहीं कहेंगे। वह मेडम से कुछ

नहीं बोली। सिर्फ आश्वाशन देकर चली आई, ‘कि बताती हूँ’।

“ओह …” रचना अवाक थी।

“फिर मेडम, जीना और उसके आदमी ने किसी दूसरी जगह काम ढूँढा और उस मेडम का काम छोड़ दिया। मेडम कई दिनों तक उन्हें बुलाती रही पर वें नहीं गए। उसके मरद को दूसरा काम ढूँढने में दिक्कत तो आई, मेडम। इतनी आसानी से कोई दूसरा काम थोड़े ही मिल जाता है। जीना को तो कहीं काम देखने जाने की हिम्मत ही नहीं हो रही। उस दिन वह रो-रो कर कह रही थी, मुझे अपना बच्चा चाहिए। खैर, उन दोनों ने यही तय किया है कि अभी जीना घर पर ही रहेगी। उसके मरद को एक जगह काम मिला है। पर पैसा कम मिल रहा है।” कमली बताती रही।

“…..” रचना की काटो तो खून नहीं वाली स्थिति थी। वह कमली को एक टक घूरती हुई सुने जा रही थी।

“हम गरीबों को बहुत मुश्किल में भी दिन गुजारने की आदत होती है मेडम । उसके दिन भी गुजर ही जाएंगे। मैंने उसे बताया है एक ‘खिलौने पैकिंग’ का काम है। मेरे घर आकर काम के लिए एक आदमी कभी-कभी पूछ कर जाता है। मैंने जीना को बताया है, जीना ने ‘हाँ’ किया है। अगर वो ये काम हाथ में ले लेगी तो उसको बहुत सहारा मिल जाएगा। उसका समय भी कटेगा। और कोई जबरदस्ती तो है नहीं जब चाहेगी छोड़ सकती है। जितना चाहेगी कर सकती है। कोई ‘इतना’ या ‘उतना ही’ करना जरूरी नहीं है।” बातें करते-करते कमली और रचना को समय का पता ही नहीं चला। बिना कॉल बेल दबाए सिद्धार्थ चाबी से दरवाजा खोल कर अंदर आए।

“अरे शाम हो गई है तुम दोनों ने अभी तक लाइट भी नहीं जलाई। मैंने कहा लेट आऊँगा तो बात करती बैठ गईं, लाइट तो जला लेती।” रचना और कमली हड़बड़ा कर उठे। कमली किचन की तरफ जाते जाते बोली “क्या बनाऊँ मेडम?” –

जवाब सिद्धार्थ ने दिया, “कुछ नहीं बनाना। रचना चलो जल्दी तैयार हो जाओ। आज खाना बाहर ही खाते हैं।” सुनकर कमली के चेहरे पर हल्की सी खुशी बिखर गई। आज बातों में लेट तो हो ही गया था उस पर खाना बनाना पड़ता तो घर जाते-जाते वह और लेट हो जाती। सोच कर खुश हुई कि अच्छा हुआ साहब खाने को मना कर दिए।

“आपके लिए चाय बना दूँ साहब?” कमली ने मुस्कुराकर पूछा।

“चाय नहीं, कॉफी बना। झटपट । हमें बस निकलना ही है।” सिद्धार्थ ने जल्दी में कहा। रचना तैयार होने कमरे में घुस गई।

सिद्धार्थ ने बालकनी बंद की और फ्रेश होने वॉश रूम में घुस गए।

कॉफी का बर्तन चूल्हे पर चढ़ाकर कमली खाना बनाने के लिए निकाल कर रखे गए बर्तन को वापस अलमारी में जमाने लगी। घर कॉफी की भीनी भीनी खुशबू से महकने लगा।

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Author profile
डॉ. रीता दास राम
डॉ. रीता दास राम

डॉ. रीता दास राम
संप्रति ; कवयित्री / लेखिका
जन्म : 1968 नागपूर वर्तमान आवास : मुंबई, महाराष्ट्र।
शिक्षा : एम.ए., एम फिल, पी.एच.डी. (हिन्दी) मुंबई विश्वविद्यालय, मुंबई।
पता : 34/603, एच पी नगर पूर्व, वासीनाका, चेंबूर, मुंबई - 400074.
मेल : [email protected] मो नं : 9619209272

प्रकाशित पुस्तकें –
* कविता संग्रह : 1. “तृष्णा” 2012 (अनंग प्रकाशन, दिल्ली). 2. “गीली मिट्टी के रूपाकार”
2016 (हिन्द युग्म प्रकाशन, दिल्ली)
* कहानी संग्रह - “समय जो रुकता नहीं” 2021 (वैभव प्रकाशन, रायपुर)
* उपन्यास : “पच्चीकारियों के दरकते अक्स” 2023, (वैभव प्रकाशन, रायपुर)
* “हिंदी उपन्यासों में मुंबई” 2023 (अनंग प्रकाशन, दिल्ली)
* टूटती खामोशियाँ 2023 (त्रिभाषीय काव्य संग्रह का संपादन) विद्यापीठ प्रकाशन, मुंबई।
कविता, कहानी, लघु कथा, संस्मरण, स्तंभ लेखन, साक्षात्कार, लेख, प्रपत्र, आदि विधाओं में
लेखन द्वारा साहित्यिक योगदान।
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उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ मित्र के अलावा विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, साझा काव्य संकलनों, वेब-

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पत्रिका, ई-मैगज़ीन, ब्लॉग, पोर्टल, में कविताएँ, कहानी, साक्षात्कार, लेख प्रकाशित।
काव्यपाठ, प्रपत्र वाचन, संचालन द्वारा मंचीय सहभागिता।
सम्मान –
‘शब्द प्रवाह साहित्य सम्मान’ 2013,
‘अभिव्यक्ति गौरव सम्मान’ 2016,
‘हेमंत स्मृति सम्मान’ 2017,
‘शब्द मधुकर सम्मान' 2018,
‘आचार्य लक्ष्मीकांत मिश्र राष्ट्रीय सम्मान’ 2019
‘हिंदी अकादमी, मुंबई’ द्वारा ‘महिला रचनाकार सम्मान’ 2021, शिक्षा भूषण सम्मान 2022
एवं अंतर्राष्ट्रीय साहित्य सेतु सम्मान' 2023।