New Tourist Destination:महू मप्र का नया पर्यटन केंद्र बन सकता है
हम इंदौर के आसपास पर्यटन केंद्रों के तौर पर मांडव, महेश्वर, ओंकारेश्वर,उज्जैन का जिक्र सुनते हैं, ,जो राष्ट्रीय,अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी जाना जाता हैं। इंदौर वालों को तिंछा जल प्रपात,पाताल पानी,जोगी भड़क,शीतला माता प्रपात,जाम दरवाजा,चोरल नदी,चोरल डेम,लोटस वैली(हातोद), जानापाव, कुशलगढ़,कजलीगढ़ किला जैसे नाम सहज याद आ जाते हैं। यहां वर्षाकाल में तो मेला ही लग जाता है। जबकि इंदौर जिले में ही ऐसे अनेक स्थान हैं, जहां आप चले जायें तो लाजवाब प्राकृतिक सौंदर्य,सघन वन,झील,तालाब,दूर तक फैली घाटियों पर बिछी हरी कच्च घास,सागवान और खाखरे के अप्रतिम सौंदर्य से परिपूर्ण पेड़,बहुतायत में जंगली फूल,लतायें झूम-झूमकर आपको मन-आलिंगन का न्यौता दे रही हैं। ऐसा ही कम चर्चित महू का वन क्षेत्र भी है, जिसके 15-20 किलोमीटर के दायरे में अनगिनत नायाब दर्शनीय स्थान हैं। एक बार तो आइये इधर। यदि मप्र सरकार,खासकर पर्यटन विभाग,इंदौर जिला प्रशासन व साथ ही होटल उद्योग इस ओर पहल करें तो यह प्रदेश में एक नया पर्यटन केंद्र बन सकता है, जो पचमढ़ी से टक्क्र ले सकता है।
महू के आसपास के वन क्षेत्र को प्रकृति ने अनेक ऐसे वरदान दिये हैं, जो समग्र रूप से एक जगह बहुत कम ही होते हैं। जैसे,विंध्याचल की पर्वत श्रृंखला के साथ ही अनेक छोटी-छोटी पहाड़ियां,उन पर छाये विशाल वन। इसी वन क्षेत्र में कुदरत के अनेक रंग बरबस आकर्षित करते हैं। यहां प्रचुर वन संपदा है, जो सहेजी हुई भी है। अनेक औषधिय पौधे भी हैं, जो सागवान,खाखरे(पलाश) की अकूत संपदा के साथ इसकी महत्ता को अभिवृद्धित कर रहे हैं। साथ में हैं, सैकड़ों पहाड़ी झरने,छोटे-बड़े तालाब,उन पर निर्मित बांध,कलकल बहती असंख्य नदियां। जिनमें कुछ बारहमासी हैं तो कुछ बरसाती। सबसे सुंदर बात तो यह है कि इस समूचे इलाके में सड़कों का जाल बिछा है। इन रास्तों पर बस,ट्रक अभी नहीं चलते है तो 4 मीटर चौड़ी सड़क पर भी आप चार पहिया वाहन से सरपट जा सकते हैं।
यदि कुछ चुनिंदा स्थानों की बात करें तो महू के आर्मी वार कॉलेज से महू-मंडलेश्वर रोड की तरफ जाने पर कोदरिया ग्राम पंचायत के कचरा निपटान केंद्र के ठीक बाजू से एक सड़क पाताल पानी की तरफ गई है जो 5 कि मी है। पाताल पानी से पहले दायीं तरफ मलेंडी की ओर मूड़ जायें और फिर देखें शिमला-पचमढ़ी के नजारे। वैसे यह वही इलाका है, जहां एक-दो बाघ और कुछ तेंदुये होने की पुष्टि हुई है। यहां मीलों तक घना जंगल है और बीच से सर्पाकार रास्ता बेहद आकर्षक लगता है। बीच में अनेक नदियां,खोदरे हैं, जिन पर बारिश में मार्ग बाधित नहीं होता,इतने ऊंचे पुल बने हैं। इसी रास्ते पर मांगल्या,पिपलिया,बुरालिया होते हुए कुशलगढ़ किले पर जा सकते हैं।
इस रास्ते के लगभग अधबीच से एक रास्ता घोड़ा खुर्द होते हुए महादेव खोदरा गया है, जहां करीब तीन सौ सीढ़ियां नीचे उतरकर सैकड़ों साल पुराना शिवमंदिर हैं,जहां शिवलिंग पर साल भर जलधारा गिरती है।यह भौगोलिक तौर पर तो जाम दरवाजे से एक-दो कि मी दूर होगा,लेकिन रास्ता मलेंडी तरफ से या चोरल बांध के पास से है। यहां से ठीक नीचे निमाड़ का करही है, जहां से अनेक लोग फिसलन भरे रास्ते को पार करते हुए पैदल ही यहां आ जाते हैं। इंदौर-महू वाले तो कार,दो पहिया से ठेठ ऊपर पहाड़ी तक आ जाते हैं। इस जगह की खूबसूरती बेमिसाल है। यहां बारिश के समय सुबह 10 बजे से चाय-नाश्ते के खोमचे लग जाते हैं। अनेक बाइकर्स और ट्रैकिंग दल शनिवार-रविवार को यहां आते हैं।
महू-मंडलेश्वर रोड पर गवली पलासिया से 8 किमी पर है नखेरी बांध। यहां नीचे की तरफ घना जंगल है,जहां मोरों के झुंड तो हैं ही, साथ ही बड़ी तादाद में प्रवासी पक्षी भी डेरा डाले रहते हैं। इससे 5 किमी आगे चोरल बांध हैं, जहां विशाल जलराशि के नजारे लिये जा सकते हैं और बोटिंग का आनंद भी ले सकते हैं। हालांकि, यहां ज्यादातर बिना लाइफ जैकेट के सैर कराई जाती है, जो खतरनाक है। कहने को यहां मप्र पर्यटन निगम का विश्राम गृह भी है, जो बरसों से उपेक्षित है। जबकि नैनीताल-माउंट आबू की झीलों जैसा सौंदर्य यहां आसानी से उपलब्ध है, जिसे थोड़े से प्रयासों से संवारा जा सकता है। यदि कमरों और रेस्त्रां का समुचित प्रबंध कर दिया जाये व बोटिंग सेवा बेहतर कर दी जाये तो लोग उमड़ सकते हैं। मुख्य मार्ग के पांच किमी अंदर तक की सडक भी अभी तो जर्जर है।
यहां से करीब 5 किमी आगे से बायीं तरफ जाम दरवाजे और मंडलेश्वर का मार्ग है तो दायीं तरफ मेण गांव के अंदर से होकर चले जायें तो 10 किमी आगे वांचू पॉइंट है। यह वो स्थान है, जहां इंदौर के लिये नर्मदा नदी का पानी लाने के पहले चरण का पंपिंग स्टेशन बनाया गया था। पहले यहीं से मंडलेश्वर,जलूद जाया जाता था।यहां एक ढाबा है,जहां केवल दाल-पानिये और सेव-टमाटर की सब्जी ही मिलती है, लेकिन इतनी स्वादिष्ट कि बार-बार जाने का मन करे। महू-मंडलेश्वर मार्ग बन जाने के बाद से इस ओर कम ही लोग आते हैं, लेकिन जो भी आते हैं, निहाल हो जाते हैं।यहां से मानपुर तरफ का खुर्दा-खुर्दी का तालाब नजर आता है। वैसे इस तरफ का प्राकृतिक सौंदर्य जाम दरवाजे तरफ से कई गुना अधिक है, क्योंकि अनावश्यक भीड़ नहीं है,बड़े वाहन नहीं है तो शोर-शराबा,कारों का धुआं भी नहीं है।
ऐसा ही एक कम देखा-जाना् गया स्थान है बेरछा तालाब। वैसे तो यह सेना के अधिकार क्षेत्र में है। फिर भी विशेष अनुमति से यहां जाया जा सकता है। इसका एक रास्ता आर्मी वॉर कॉलेज से महू-मंडलेश्वर रोड को काटते हुए सीधे कैलोद गांव की ओर जाता है तो दूसरा गवली पलासिया से महू-मंडलेश्वर रोड पर 3 किमी आगे दायीं तरफ मुड़कर जाता है। यहां एक अद्भुत विशाल वटवृक्ष है,जो करीब पांच एकड़ में फैला होगा। इसकी उम्र भी 5 हजार साल के आसपास बताई जाती है। यहां बड़ा-सा तालाब भी है, जिसमें बोटिंग की सुविधा भी है, लेकिन यह सब अनुमति के बाद ही होता है। यहीं तालाब की पाल के किनारे खजूर के करीब एक हजार पड़े होंगे, जो इस जगह को अनोखा रूप देते हैं। सेना यदि यहां लोगों को आने दे तो यकीन जानिये, लोग नैनीताल और माउंट आबू की झील सरीखा नौका विहार का आनंद यहां भी ले सकते हैं। इसके साथ ही गवली पलासिया से मानपुर की तरफ 3 किमी आगे केशर पर्वत एक नया पर्यटन केंद्र हो सकता है, जो जैव विविधता की मिसाल है। यहां बंजर पर्वत पर इंदौर के सेवा निवृत्त प्राध्यापक शंकरलाल गर्ग ने 35 हजार पौधे लगाकर इसे हरा-भरा कर दिया,जो दस से पंद्रह फीट ऊंचे आकार लेकर जंगल बन चुके हैं। जहां अब शोधार्थी आते हैं।
आप यदि सोच रहे हैं कि इतनी खासियतों वाला इलाका होने के बाद भी यह पर्यटन केंद्र क्यों नहीं बना पाया तो इसका केवल एक ही कारण है-मप्र सरकार,यहां के जन प्रतिनिधि,वन विभाग और पर्यटन विकास निगम का उपेक्षित रवैया। जबकि इस क्षेत्र के तालाबों,बांधों में जहां चप्पू नाव,ईंधन चलित बोट,पैदल बोट,वाटर स्पोर्ट्स चलाये जा सकते हैं। यहां की पहाड़ियों,टेकरियों से पैरा ग्लाइडिंग की जा सकती हैं। चोरल बांध,जाम दरवाजे,पाताल पानी से कुशलगढ़ किले के बीच भी होटल,मोटल,रेस्त्रां शुरू किये जा सकते हैं। बाकायदा,एक पर्यटक बस चलाई जा सकती है, जो पाताल पानी से चलकर कुशलगढ़ किला,महादेव खोदरा,चोरल-नखेरी बांध,जाम दरवाजा,वांचू पॉइंट होकर लौटे। मुझे विश्वास है कि मप्र के लोगों को पचमढ़ी की तरह का एक बेहतर पर्यटन केंद्र मिल सकता है। यहां रेलवे पातालपानी से काला कुंड तक हैरिटेज रेल चलाता है, जो वर्षाकाल का बड़ा आकर्षण है।यह हफ्ते में दो दिन ही चलती है,जिसके फेरे यात्री मिलने पर बढ़ाये जा सकते हैं।