Kissa-A-IAS: तामझाम से दूर, चर्चा में है यह कलेक्टर

तबादला हुआ, झोला उठाया, रेलवे स्टेशन में लाइन में लग टिकट लिया और चल दिए

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Kissa-A-IAS: तामझाम से दूर, चर्चा में है यह कलेक्टर

जब कोई कलेक्टर जिले से विदा होता है, तो एक आयोजन जैसा होता है! उसके कार्यकाल की तारीफ में कसीदे गढ़े जाते हैं। अधीनस्थ अधिकारी और कर्मचारी फेयरवेल पार्टी रखते हैं। शहर के कई संगठन भी ऐसे आयोजन करते हैं। उनको और उनके परिवार को गिफ्ट दिए जाते हैं। कर्मचारी और अधिकारी कलेक्टर को विदा करने स्टेशन तक जाते हैं। ये वो दृश्य होते हैं, जो सामान्यतः देखने को मिलते हैं। लेकिन, यदि कोई कलेक्टर ट्रांसफर ऑर्डर मिलने के बाद अपना ट्रॉली बैग उठाकर घर से स्टेशन रवाना हो जाए तो उसे क्या समझा जाए!

बिहार के नालंदा के कलेक्टर योगेंद्र सिंह की शालीनता के लोग कायल हो गए। उनकी विदाई में ऐसा कुछ नहीं दिखा, जो किसी कलेक्टर की विदाई जैसा लगे। नालंदा को अलविदा कहने से पहले कलेक्टर ने नए कलेक्टर के आने का इंतज़ार भी नहीं किया और नगर निगम आयुक्त तरनजीत सिंह को अपना कार्यभार सौंप दिया। उन्होंने अपने मोबाइल फोन से सरकारी सिम भी निकालकर दे दी। उन्होंने खुद ही अपना सामान उठाया और रेलवे स्टेशन चल दिए। यहां तक कि जब उनके बॉडीगार्ड ने सामान उठाना चाहा तो उन्होंने सहजता से उसे मना किया और नए कलेक्टर के साथ रहने की सलाह देकर चल दिए। स्टेशन पर भी योगेंद्र सिंह आम आदमी की तरह लाइन में लगे और पटना का टिकट लेकर पटना रवाना हो गए। नालंदा से उनका ट्रांसफर DM समस्तीपुर हुआ है।

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ट्रांसफर होने के बाद न तो उन्होंने कोई ताम-झाम होने दिया और न कोई औपचारिकता की। बल्कि, बेहद सादगी से विदाई ली। ये उनका दिखावा या कोई मिसाल कायम करने जैसा काम नहीं था, वास्तव में वे ऐसे ही हैं।

नालंदा के लोगों का उनके बारे में कहना है कि उनसे कभी भी मिला जा सकता था और वे सबकी सुनते थे। उनके कार्यकाल के दौरान कई फैसले लोगों की जुबान पर हैं। ये सादगी और सहजता उनकी आदत में शुमार है। नालंदा से पहले वे जहां भी रहे, हर जगह वे ऐसे ही रहे। बिहार में नालंदा को महत्वपूर्ण जिला इसलिए भी माना जाता है, कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) का यह गृह जिला है। योगेंद्र सिंह को बिहार में बेहद तेज तर्रार और समर्पित IAS माना जाता है।

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अपना सामान उठाकर श्रमजीवी एक्सप्रेस ट्रेन से सहज विदाई इतनी चर्चा में आ गई कि बिहार और देश तो छोड़, दुनियाभर में इसकी चर्चा हो रही है। दरअसल, उन्होंने लोगों को अहसास कराया कि सिविल सर्विस का असल मतलब और मकसद क्या होता है। कलेक्टर जनसेवा के लिए होता है, झांकीबाजी उसके कामकाज की शैली में शामिल नहीं होना चाहिए।

हर जगह बेमिसाल काम
योगेंद्र सिंह उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के रहने वाले हैं और वे 2012 बैच के IAS अधिकारी हैं। नालंदा से पहले वे शेखपुरा के DM रह चुके हैं। उससे पहले बेतिया में DDC (उप विकास आयुक्त) रहे। सबसे पहले वे पटना सिटी के SDM रहे हैं।

नालंदा में 35 महीने के कार्यकाल में उन्होंने लोगों के दिलों में जगह बना ली थी। टूरिज्म सेक्टर में उन्होंने जमकर काम किया। नालंदा में Zoo Safari को विकसित करने में उनका अहम योगदान रहा। विकास कार्यों के प्रति समर्पित रहने वाले और काम में व्यस्त रहने वाले कलेक्टर योगेंद्र जिस सादगी के साथ विदा हुए, ऐसा जिले के किसी कलेक्टर के कार्यकाल में नहीं देखा गया।

12 साल की उम्र में पिता का साया उठ गया था
योगेंद्र सिंह जब 12 साल के थे, तभी उनके सिर से पिता का साया उठ गया। पिता जय सिंह को कैंसर था और वर्ष 2002 में बीमारी की वजह से उनका निधन हो गया था। पिता के निधन के बाद योगेंद्र के पालन-पोषण और पढ़ाई-लिखाई की जिम्मेदारी मां श्यामा देवी पर आ गई। तीन बीघे में खेती के सहारे उन्होंने परिवार भी चलाया और बेटे की पढ़ाई का खर्च भी उठाया।

1990 में उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले के गंज मुरादाबाद ब्लॉक के छोटे से गांव हरईपुर में उनका जन्म हुआ। एक प्राइमरी स्कूल में उनकी शुरुआती पढ़ाई हुई। इस गांव में एक साधारण किसान परिवार के इस लड़के ने अटवा वैक स्थित विवेकानंद इंटर कॉलेज से हाई स्कूल की शिक्षा ली। इसके बाद मल्लावां के बीएन इंटर कॉलेज से 12वीं की पढ़ाई की। आगे की पढ़ाई के लिए वे लखनऊ चले गए, जहां से उन्होंने अपना ग्रेजुएशन पूरा किया। इसके बाद JNU दिल्ली से एमए किया।

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जब वे लखनऊ में थे, तब ग्रेजुएशन के दौरान योगेंद्र ने बच्चों को ट्यूशन-कोचिंग वगैरह भी दी, ताकि थोड़ा आर्थिक बोझ कम किया जा सके। बीए करते हुए ही उन्होंने सिविल सेवा में जाने की ठान ली और फिर UPSC की तैयारी शुरू की। OBC कैटेगरी के योगेंद्र सिंह ने 2012 में सिविल सर्विस की परीक्षा में ऑल इंडिया में 28वीं रैंक हासिल की। वे IAS चुने गए और बिहार कैडर मिली।

2018 में योगेंद्र सिंह की शादी पुरवावां (हरदोई) निवासी नेहा के साथ हुई, जो गृहिणी हैं। पत्नी और मां योगेंद्र के साथ रहती हैं। एक पुत्र नेयस है। जब मौका लगता है, योगेंद्र अपने पैतृक गांव हरईपुर जाते रहते हैं। गांव के युवाओं के लिए वे एक आदर्श हैं और युवा उनसे प्रेरित होते हैं। उनकी मेधा, ईमानदारी और सादगी की चर्चा अकसर होती रहती है।

31 साल के योगेंद्र सिंह बेहद अनुशासन पसंद हैं। भ्रष्टाचार को लेकर वे जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम करते हैं। उनकी ईमानदारी का अंदाजा आप उनकी संपत्ति के बारे में जानकर भी सहज लगा सकते हैं। उनके पास न खुद की गाड़ी है न मकान। पत्नी नेहा का भी यही हाल है। कैश के मामले में योगेंद्र सिंह की पत्नी उन पर भारी हैं। कलेक्टर के पास सिर्फ 15 हजार रुपए कैश है। जबकि, उनकी पत्नी के पास 20 हजार है।

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उनके पीपीएफ अकाउंट में करीब 9 लाख रुपए हैं, जबकि सेविंग अकाउंट में एक लाख रुपए। उनकी पत्नी के सेविंग अकाउंट में 50 हजार रुपए हैं। योगेंद्र सिंह के पास जेवर के नाम पर 50 ग्राम सोने की चेन और रिंग है। जबकि, उनकी पत्नी के पास 250 ग्राम सोने की चेन, रिंग और 500 ग्राम सिल्वर ज्वेलरी है। घोषणा पत्र के मुताबिक योगेंद्र सिंह के पैतृक गांव हरईपुर में डेढ़ एकड़ कृषि योग्य जमीन है, जो उनकी माता जी के नाम पर है। आधा एकड़ में हरईपुर में बना एक मकान है। इसके अलावा उनके पास एक लैपटॉप और मोबाइल है।

यह बात दावे के साथ की जा सकती है कि आज के IAS का ईगो और हाव-भाव किसी भी झांकी बाज से कम नहीं होता। ऐसे में योगेंद्र सिंह ने आज के युवा अधिकारियों के लिए जो आदर्श प्रस्तुत किया है वह अनुकरणीय और बेमिसाल है।