Isha Foundation Case : ईशा फाउंडेशन आश्रम पर 150 पुलिस अफसरों की बटालियन तलाशी लेने पहुंची!

हाई कोर्ट में दायर एक याचिका में धर्मगुरु जग्गी के जीवन के विरोधाभासों पर सवाल उठाया!

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Isha Foundation Case : ईशा फाउंडेशन आश्रम पर 150 पुलिस अफसरों की बटालियन तलाशी लेने पहुंची!

Thondamuthur : ईशा फाउंडेशन के आश्रम में 150 पुलिस अधिकारियों की एक बटालियन ने मंगलवार को तलाशी अभियान शुरू किया। इससे पहले मद्रास हाई कोर्ट ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ दर्ज सभी आपराधिक मामलों पर रिपोर्ट मांगी थी, उसके बाद यह एक्शन लिया! थोंडामुथुर में पुलिस की ओऱ से चलाए गए तलाशी अभियान में तीन डीएसपी भी शामिल थे। एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि अभियान में कैदियों की गहन जांच और फाउंडेशन के कमरों की तलाशी पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। इस टीम का नेतृत्व कोयंबटूर के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक स्तर के अधिकारी ने किया।

हाई कोर्ट ने रिटायर्ड प्रोफेसर डॉ एस कामराज की दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कोयंबटूर ग्रामीण पुलिस को जांच कर रिपोर्ट दाखिल करने का आदेश दिया था। डॉ कामराज ने दावा किया था कि उनकी दो बेटियों गीता कामराज (42) और लता कामराज (39) को कोयंबटूर स्थित फाउंडेशन में बंदी बनाकर रखा गया है। उन्होंने आरोप लगाया कि संगठन लोगों का ब्रेनवॉश कर रहा है, उन्हें साधु बना रहा है और उनके परिवारों से उनका संपर्क सीमित कर रहा है।

इस घटनाक्रम पर प्रतिक्रिया देते हुए ईशा योग केंद्र ने कहा कि जो कुछ हो रहा था, वह केवल एक जांच थी। फाउंडेशन की ओर से बयान जारी करते हुए कहा गया कि अदालत के आदेश के मुताबिक, एसपी सहित पुलिस सामान्य जांच के लिए ईशा योग केंद्र में आई है। वे निवासियों और स्वयंसेवकों से पूछताछ कर रहे हैं, उनकी जीवनशैली को समझ रहे हैं। यह समझ रहे हैं कि वे कैसे आते हैं और कैसे रहते हैं।

अदालत ने ईशा फाउंडेशन के संस्थापक धर्मगुरु जग्गी वासुदेव के जीवन में स्पष्ट विरोधाभासों पर सवाल उठाया। जस्टिस एसएम सुब्रमण्यम और वी शिवगनम ने पूछा कि सद्गुरु, जैसा कि जग्गी अपने अनुयायियों के बीच जाने जाते हैं, जिनकी अपनी बेटी विवाहित है और अच्छी तरह से बसी हुई है। वे अन्य युवतियों को अपने सिर मुंडवाने, सांसारिक जीवन का त्याग करने और अपने योग केंद्रों में संन्यासी की तरह रहने के लिए क्यों प्रोत्साहित कर रहे हैं।

 

डॉ कामराज की बेटियों ने कहा

जब कामराज की याचिका में कहा गया कि उनकी दो बेटियों को कोयंबटूर के वेल्लियांगिरी की तलहटी में स्थित संगठन के योग केंद्र में उनकी इच्छा के खिलाफ रखा गया है, तो अदालत में मौजूद दोनों महिलाओं ने कहा कि वे अपनी इच्छा से वहां रह रही हैं और उन्होंने किसी भी तरह की मजबूरी या हिरासत से इनकार किया। हालांकि, कामराज की बेटियों ने जोर देकर कहा कि ईशा में उनका रहना स्वैच्छिक था। लेकिन, जस्टिस सुब्रमण्यम और शिवगनम पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थे। जस्टिस शिवगनम ने कार्यवाही के दौरान टिप्पणी की, कि हम जानना चाहते हैं कि एक व्यक्ति जिसने अपनी बेटी की शादी कर दी और उसे जीवन में अच्छी तरह से स्थापित किया। वह दूसरों की बेटियों को सिर मुंडवाने और एकांतवासी की तरह जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित क्यों कर रहा है. यही संदेह है।

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पॉक्सो मामले का भी याचिका में जिक्र

याचिका में फाउंडेशन में काम करने वाले एक डॉक्टर के खिलाफ पॉक्सो मामले के बारे में भी बताया गया। वहीं आदेश में कहा गया कि याचिकाकर्ता ने व्यक्तिगत रूप से प्रस्तुत किया है कि हाल ही में एक डॉक्टर के खिलाफ पोक्सो के तहत आपराधिक मामला दर्ज किया गया है, जो उसी संस्थान में काम कर रहा है। उक्त व्यक्ति के खिलाफ आरोप यह है कि उसने आदिवासी सरकारी स्कूल में पढ़ने वाली 12 लड़कियों के साथ छेड़छाड़ की।

बेटियों के बयानों और ईशा फाउंडेशन के पेश किए गए बचाव के बावजूद, अदालत ने मामले को एक कदम आगे बढ़ाते हुए अतिरिक्त लोक अभियोजक ई राज थिलक को 4 अक्टूबर तक एक व्यापक स्थिति रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। इस रिपोर्ट में फाउंडेशन के खिलाफ लंबित सभी आपराधिक मामलों को शामिल किए जाने की उम्मीद है।