Amla Navami: प्रकृति के बीच जाकर प्रकृति को समझना और प्रकृति का सम्मान करने का पर्व

155

Amla Navami: प्रकृति के बीच जाकर प्रकृति को समझना और प्रकृति का सम्मान करने का पर्व

  बेर भाजी आँवला, उठो देव साँवला

डॉ. विकास शर्मा
आँवला नवमी के दिन जंगल जाना और आँवले के पेड़ के नीचे पिकनिक मानना, इसे किस नजरिये से देखते हैं आप?
एक बात बताऊँ, अगर आप ध्यान से समझें तो सभी भारतीय त्यौहार उत्तम स्वास्थ्य का संदेश देते नजर आते हैं। मेरे हिसाब से कहूं तो आमला नौमी व्यस्त जीवन शैली और जिम्मेदारियों से बँधे लोगों के लिए कुछ पल अपने परिवार और मित्रों के साथ घूमने का एक शानदार अवसर है। इसके अलावा एक सामान्य इंसान का प्रकृति के बीच जाकर प्रकृति को समझना और प्रकृति का सम्मान करने की समझ विकसित करने का भी एक माध्यम है।
शारीरिक और मानसिक थकान से निपटने के में ऐसे त्योहार टॉप अप बाउचर की तरह काम करते हैं। लेकिन इन सब बातों का महत्व शायद कांक्रीट के जंगल मे रहने वाले और खुशियाँ मनाने के लिये मॉल पर जाने की जिद करने वाले आधुनिक महामानव समझ पायेंगे, इसकी उम्मीद कम ही बची है।
patanjali amla benefit mobilehome
हालाकि इन सबके बीच उम्मीद की किरण के रूप में एक सकारात्मकता भी दिखाई देती है, कि लोग अब अपने घर, बगीचे और आसपास खाली जगह पर फलदार पेड़ लगाने लगे हैं। मैं बचपन से इन त्योहारों और परंपराओं का हिस्सा रहा हूँ। कभी जंगल तो कभी खेत मे आंवला नौमी मनाई है। अब तो घर पर लगाया गया आँवले का पेड़ इतना बड़ा हो गया है कि इससे फल और छाँव दोनो मिलने लगी है। अबकी बार यहीं मनाइ  आँवला नौमी।
465796248 27495538763393856 5969631555341744785 n
आँवला एक मध्यम आकार का फलदार वृक्ष है जिसके पेड़ मध्यप्रदेश के जंगलों में आसानी से मिल जाते हैं। किंतु आजकल महत्व को देखते हुए इन्हें खेतो व बगीचों में भी लगाया जा रहा है। गुरूदेव डॉ. दीपक आचार्य जी के साथ पिछले 20 वर्षों से मैं जिन वनवासियों के साथ कार्य कर रहा हूँ, उनके लिए यह वनोपज के रूप में आय का प्रमुख जरिया है।
आँवले से स्वादिष्ट व्यंजन भी बनाये जाते हैं। आंवले की चटपटी चटनी का स्वाद कैसे भूल सकते हैं। ये मिल जाये तो फिर किसी सब्जी या दाल की आवश्यकता महसूस नही होती। बस रोटियों पर लगाइये, रोल कीजिये और फिर शुरू हो जाइये। आँवले का अचार तो मुँह का स्वाद बनाने के लिए जाना ही जाता है। और मुरब्बा भी किसी से कोई कम नही है।
आँवले की सुपारी और किसा हुआ बुरादा भी भारतीय रसोई की पहचान है। आँवले के जूस को लोग जूस के बजाए दवा की तरह ही पीना पसंद करते हैं। यूँ तो आँवला एक फल से कहीं अधिक सर्वोत्तम औषधियों में शामिल है। लेकिन इसके धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व भी कम नही है। अभी देव उठनी ग्यारस आने वाली है, जिसमे हम चूने और गेरू की रंगोली बनाकर बेर भाजी आँवला, उठो देव साँवला लिखेंगे। प्रकृतिवाद के नजरिये से इसका अर्थ निकालने की कोशिश करूँ तो, जब प्रकृति में विभिन्न प्रकार की भाजियों का सेवन करना श्रेष्ठकर हो जाता है, बेर प्रजाति के जंगली फल मनुष्य सहित जंगली जीव जंतुओं का पोषण करने को तैयार रहते हैं और हमारी वसुंधरा गुणकारी आँवले के फलों से सज जाती तब भगवान विष्णु जाग जाते हैं। इसके बाद से ही कुवारों का भविष्य तय किया जाने लगता है।
आंवला या अक्षय नवमी का त्यौहार पवित्र कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि में आता है। मान्यता है कि आँवले के पौधे का जन्म ब्रम्हा जी के आँसुओं से हुआ है। इस दिन महिलाएं आंवले के पेड़ की पूजा करती हैं। पेड़ के तने में लाल चूड़ियां, बांध कर और कुमकुम, सिंदूर लगाकर भोग लगाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस पूजन के करने से पुत्र प्राप्ति और रक्षण प्राप्त होता है। मान्यता है कि इस दिन ही भगवान श्रीकृष्ण बृंदावन से मथुरा गए थे और कंस के विरुद्ध जनमत तैयार किया था। अगले दिन दशमी को कंसवध हुआ था। पुराणों के अनुसार त्रेता युग का प्रारंभ इसी दिन हुआ था। मुझे आज भी ध्यान है कि कुछ वर्ष पहले तक सभी घरों में सूखे हुए आँवले काले नमक और कालीमिर्च के पाउडर के साथ मुखवास के रूप में रखे जाते थे।
आँवले को सर्वाधिक पहचान अगर किसी शब्द से मिली है तो वह है त्रिफला चूर्ण। आँवले से हर्रा और बहेड़ा के साथ मिलाकर त्रिफला चूर्ण तैयार किया जाता है जो आयुर्वेद की सबसे पुरानी, सहज और भरोसेमंद औषधि है। इतिहास के पन्नों से जानकारी मिलती है कि च्यवनक ऋषि ने जिस च्यवनप्राश का निर्माण और सेवन करके पुनः वृद्धवस्था से यौवन प्राप्त किया था, उसका एक प्रमुख घटक आँवला भी है। पेट संबंधी विकारों में यह रामवाण औषधि मानी जाती है। पाचन के अलावा त्रिफला चूर्ण का प्रयोग मधुमेह में भी लाभकारी है। आँवले के जूस के बारे में कहा जाता है कि सुबह खाली पेट इसे ग्रहण करने से मधुमेह में लाभ मिलता है साथ ही एंटीऑक्सीडेंट्स और विटामिन सी की उपस्थिति के कारण यह त्वचा के लिए भी बहुत फायदेमंद होता है और इम्म्युनिटी बढ़ाकर सर्दी खाँसी जैसे रोगों से भी बचाता है। पीलिया रोग में किसे हुये आँवले का सेवन करने की सलाह दी जाती है। इसे एक अच्छा लिवर टॉनिक माना जाता है। इससे ज्वाइंडिश में भूख न लगने का एहसास कम होता है और मुँह का स्वाद भी सुधर जाता है।
आँवला बालों के लिये भी लाभकारी होता है। पुराने समय मे जब हाथो से मेहन्दी पीसना और लगाना प्रचलन में था तब बालों में लगाई जाने वाली मेहंदी में हीना, रीठा और शिकाकाई के फार्मूले में आँवले का भी समावेश किया जाता था। इसमें मौजूद विटामिन सी डैंड्रफ रोकने का कार्य करता है। दिन में एक ताजा या सूखा आँवला खाना न्यूरॉन्स की कार्यकुशलता को बढ़ाता है। आआँवले की लकड़ी जल शोधन के लिए भी उत्तम मानी गई है। जलस्रोतों के आसपास आँवले के पेड़ लगाने से उस जलस्रोत का जल उत्तम औषधि तुल्य यो जाता है।
आँवले में एन्टीमाइक्रोबियल प्रभाव भी पाया जाता है, इसीलिये यह दस्त लगने से लेकर पानी की कमी को पूरा करने में भी माहिर है। हमारी पतालकोट की यात्राओं में जहाँ जंगलों और पहाड़ों के बीच दूर दूर तक पानी का नामो निशान नही होता है, और प्यास के मारे मुँह सूखने लगता है तब ऐसे में यही आँवला प्यास भी बुझाता है और डीहाइड्रेशन के खतरे को भी कम करता है। बड़े और हाइब्रिड आंवले की तुलना में छोटे आकार के जंगली आँवले अधिक औषधीय महत्व रखते हैं किंतु समय पर जो मिल जाये वो अच्छा है। कई शोध पत्रों को खँगालने पर यह स्पष्ट जानकारी मिलती है कि आँवले का प्रयोग कैंसर से लेकर मधुमेह, त्वचा रोग, हृदय रोग, पेट संबंधी विकार, आँखों की रोशनी तथा खून की कमी को दूर करने में भी कारगर है। इसमें पाये जाने वाले रसायन जैसे गैलिक एसिड, एलेजिक एसिड, पायरोगेलोल, गैलिक एसिड, गेरानीन, एलिओकारपुसिन तथा विटामिन बी1, बी 2 में कैंसर से लड़ने की क्षमता पाई जाती है।
डॉ. विकास शर्मा
वनस्पति शास्त्र विभाग
शासकीय महाविद्यालय चौरई