मुस्लिमों के कल्याण और रक्षा के लिए असली राष्ट्रीय नेता कौन ?

महाराष्ट्र , झारखण्ड , बिहार , उत्तर प्रदेश बंगाल सहित दक्षिण और पूर्वी प्रदेशों में मुस्लिमों के नाम पर राजनीति

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मुस्लिमों के कल्याण और रक्षा के लिए असली राष्ट्रीय नेता कौन ?

अलोक मेहता

भारत की आज़ादी से पहले मुस्लिमों के शीर्ष नेता , शिक्षाविद सर सैयद अहमद खान ने 1883 में पंजाब की एक बड़ी सभा में कहा था – ” आप जिस हिन्दू शब्द का प्रयोग करते हैं , मेरी दृष्टि से केवल धर्म का नाम नहीं है | हिंदुस्तान का हर निवासी अपने को हिन्दू कह सकता है | मुझे तो इस बात का दुःख है कि कई लोग मुझे हिन्दू नहीं समझते , जबकि मैं भी हिंदुस्तान का वासी हूँ | ”

इसी तरह 27 जनवरी 1883 को पटना की एक बड़ी सभा में कहा – ” हम दोनों , भारत की हवा में सांस लेते हैं और गंगा जमुना का पवित्र जल पीते हैं | हम भारत की जमीन की उपज से अपनी भूख मिटाते हैं | मुसलमानों ने बहुत से हिन्दू तौर तरीके अपनाए और हिन्दुओं ने बहुत से आचार ग्रहण किए | हम इतने घुल मिल गए कि हमने एक नई भाषा उर्दू विकसित की, जो न मुसलमानों की भाषा थी और न ही हिन्दुओं की | इसलिए यदि हम जीवन के उस हिस्से को छोड़ दें जो ईश्वर यानी धर्म का है , तो निसन्देह यह मानना पड़ेगा कि हमारा देश एक है , कौम एक है और देश की भलाई तथा हमारी एकता , परस्पर सहानुभूति और प्रेम पर निर्भर है | अनबन , झगड़े और फूट हमें समाप्त कर देंगें | ”

वर्तमान दौर में राहुल गाँधी की कांग्रेस पार्टी और उनके गठबंधन के नेता मुस्लिमों के लिए इस तरह की बातें क्यों नहीं कर सकते ? वे मुस्लिमों की अलग पहचान , आरक्षण , मदरसों , वक्फ , हिजाब सहित कट्टरपंथी बातों का समर्थन कर रहे हैं | उनको पाखंडी कहकर विरोध करने वाले ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन के प्रमुख नेता असदुद्दीन ओवैसी भी केवल मुस्लिमों को बचाने और हकों के लिए लड़ने की बातें कर रहे हैं | सबसे खतरनाक तथ्य यह है कि कांग्रेस के शीर्ष नेता राहुल गाँधी और उनकी बहन पार्टी महासचिव प्रियंका गाँधी केरल में जमात ए इस्लाम पार्टी का समर्थन लेते हैं , जो दुनिया में कट्टर इस्लामी राज कायम करने , शरीयत कानून लागू करने के लक्ष्य पर काम कर रही है | कांग्रेस दक्षिण में जमात और मुस्लिम लीग , जम्मू कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस की बैसाखी का उपयोग कर रही है | इतिहास इस बात का भी गवाह है कि कांग्रेस की गलतियों के कारण सर सैयद अहमद खान जैसे नेता मुस्लिमों के लिए अलग देश की मांग करने वाले समूह के साथ हो गए और मोहम्मद अली जिन्ना उत्तरधिकारी बन गया , जिससे पाकिस्तान बन गया | इसलिए वर्षों से समाज , मीडिया और राजनीति में यह सवाल उठता है कि मुस्लिमों के हितों की रक्षा करने वाला असली मुस्लिम नेता कौन है और जिस पर सही मायने में मुस्लिम समुदाय अपनी प्रगति के लिए स्वीकारे और आधुनिक विकसित भारत में सबकी भागेदारी हो ?

यह भी याद रखा जाना चाहिए कि 1903 में ब्रिटिश लार्ड कर्ज़न ने हिंदू मुस्लिम एकता और सद्भावना तोड़ने के लिए बंगाल के विभाजन की योजना पर अमल शुरु किया था | तब उसके विरुद्ध सम्पूर्ण भारतीय समाज में तीखी प्रतिक्रया के साथ सभाओं और सम्मेलनों के आयोजन हुए | 1905 में स्वयं लियाकत हुसैन ने सुरेन्द्रनाथ बनर्जी को पत्र लिखकर बंग विभाजन के विरुद्ध बहिष्कार को एकमात्र उपाय बताया था | लेकिन वर्तमान दौर में कांग्रेस के पास ऐसा मान्य मुस्लिम नेता तक नहीं है और पिछले दशकों में जिन मुस्लिम नेताओं ने बढ़ने की कोशिश की , पार्टी नेतृत्व ने उनके पर काटने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी | आज जो शरद पवार मुस्लिमों के रक्षक होने का दावा करते हैं , इंदिरा गाँधी काल में महाराष्ट्र में अब्दुल रहमान अंतुले के सबसे प्रबल विरोधी बन गए थे | इंदिरा गाँधी से लेकर राजीव सोनिया और राहुल गांधी के सबसे अधिक वफादार रहे अहमद पटेल को कभी राष्ट्रपति , उप राष्ट्रपति या पार्टी अध्यक्ष बनाने की पहल तक नहीं की | दशकों तक साथ निभाने वाले गुलाम नबी आज़ाद तो राहुल गाँधी और उनकी सलाहकार मंडली के रवैये से तंग आकर कांग्रेस छोड़कर चले गए | सलमान खुर्शीद बड़े वकील और कांग्रेस के लिए अनुकूल स्थिति में दो चुनाव जीते और मंत्री आदि रहे , लेकिन पिछले दो तीन चुनावों में तो अपने निर्वाचन क्षेत्र फर्रुखाबाद में पराजित होकर तीसरे चौथे स्थान पर रहे | हाँ बड़ी जोड़ तोड़ के बाद दिल्ली के इंडिया इस्लामिक कल्चरल सेंटर के चुनाव में अवश्य अध्यक्ष बन गए |

महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव में कांग्रेस शरद पवार और उनकी राष्ट्रवादी पार्टी की कृपा पर निर्भर हैं | शरद पवार आपराधिक पृस्ठभूमि वाले स्थानीय नेताओं के अलावा कुख्यात माफिया के साथ संबंधों और मुंबई दंगों से जुड़े आरोपों से घिरे रहे हैं | दूसरी तरफ कांग्रेस ही नहीं अन्य पार्टियों के साथ जुड़ने टूटने की प्रवृत्ति तथा अब उद्धव ठाकरे की विभाजित शिव सेना और उसके कट्टरपंथी विचारों के कारण क्या मुस्लिम समुदाय उन पर पूरा भरोसा कर सकेगा ? शरद पवार नरसिंहा राव के सत्ता काल से प्रधान मंत्री बनने का सपना देखते रहे , लेकिन महाराष्ट्र में ही उनका आधार कमजोर होता गया , तब बिहार , उत्तर प्रदेश , बंगाल जैसे राज्यों में वे मुस्लिम समाज का व्यापक समर्थन कहाँ पा सकते हैं | अब तो उनके सबसे बड़े पारिवारिक सेनापति अजित पवार और नवाब मलिक असली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के झंडे , चुनाव चिन्ह और भाजपा व शिंदे की असली शिव सेना के साथ मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं | मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह दशकों से मुस्लिम , पिछड़ों , दलितों के नाम पर राजनीति करते रहे लेकिन मुस्लिम बहुल भोपाल जैसे क्षेत्र से चुनाव में बुरी तरह हारे और इस बार तो अपने गृह नगर राजगढ़ में भी पराजित हो गए | वह विवादास्पद स्थानीय मुस्लिम नेताओं के संरक्षक बनने के साथ कागजी बाबाओं को अपनी सरकार में मंत्री स्तर वाले पद और सुविधाएं देते रहे | ऐसे में उनके बल पर राहुल गाँधी मुस्लिमों का कितना विश्वास अर्जित कर सकेंगे | बंगाल में अधीर रंजन चौधरी को लोक सभा में नेता पद तक दिया गया , लेकिन वह इस बार खुद चुनाव हार गए | बंगाल असम के मुस्लिमों के लिए कांग्रेस का कोई प्रमुख नेता नहीं बचा | दूसरी तरफ असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी हैदराबाद तेलंगाना , आंध्र के दो चार इलाकों में थोड़ा प्रभाव रखती है | अन्य राज्यों के मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में इक्का दुक्का सीटें जीत पाती हैं |

यही कारण है कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा राष्ट्रीय अथवा राज्यों के चुनावों में सभी धर्मों , वर्गों , जातियों , दलितों , आदिवासियों के लिए शिक्षा , स्वास्थ्य , अनाज , मकान , पानी , बिजली , खेती के लिए अनुदान आदि की योजनाओं के समान लाभ देने के प्रयासों से लोक सभा और कई विधान सभाओं के चुनावों में विजयी होती गई है | यही नहीं संघ भाजपा के शीर्ष नेता और उनके पुराने प्रचारक इंद्रेश कुमार तो मुस्लिम राष्ट्रीय मोर्चा बनाकर ईद दिवाली के अवसरों पर वही तर्क देते हैं जो सर सैयद अहमद खान देते थे कि हिंदुस्तान में रहने वालों की धार्मिक पूजा अर्चना भिन्न हो सकती है लेकिन सभी नागरिक हिन्दू भारतीय हैं |