‘बुंदेलखंड राज्य’ जैसी उमा की ‘शराबबंदी’….

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बुंदेलखंड की जिस तेजतर्रार फायरब्रांड नेत्री साध्वी उमा भारती का जादू एक समय भाजपा ही नहीं, हर सख्श के सिर चढ़ कर बोलता था, वह नेत्री आज राजनीति के बियावान में गुम होती दिख रही है। इसकी वजह उनका अपने वचन के प्रति प्रतिबद्ध न रहना, लगातार पार्टी और लोगों का भरोसा खोना है। पिछले काफी समय से वे प्रथक बुंदेलखंड राज्य की तरह शराबबंदी को लेकर लोगों के निशाने पर हैं।

उमा ने जब झांसी लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था तब एलान किया था कि तीन साल के अंदर पृथक बुंदेलखंड राज्य बन जाएगा। बाद में वे अपने वादे से मुकर गर्इं और कहने लगीं कि अलग बुंदेलखंड राज्य की जरूरत नहीं है। अब लंबे समय से वे बोल रही हैं कि वे मप्र में शराबबंदी के लिए अभियान चलाएंगी और शराबबंदी करा कर ही दम लेंगी। उनके इस एलान को भाजपा में किसी का समर्थन नहीं मिल रहा। अभियान चलाने के लिए वे तीन बार तारीखें भी घोषित कर चुकी हैं लेकिन यह शुरू नहीं हो सका। कभी वजह कोरोना रहा कभी कुछ और। उमा खुद भी अभियान के प्रति गंभीर दिखाई नहीं पड़ी। उनकी गंभीरता सिर्फ बयानों, पत्रकार वार्ताओं तक ही सीमित है। इससे उनकी बची-खुची साख पर भी बट्टा लग रहा है।

दिग्विजय के खिलाफ वीडी के वीडियो का प्रयोग….
– कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह एक बार फिर प्रदेश की राजनीति का सबसे चर्चित चेहरा बन कर उभर रहे हैं। वजह है उनका चौतरफा मोर्चे खोलना। अवैध रेत उत्खनन को लेकर लंबे समय से उनके निशाने पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा एवं प्रदेश के खनिज मंत्री ब्रजेंद्र प्रताप सिंह हैं। पन्ना जिले में अवैध खनन को लेकर उन्होंने एक बार फिर मुख्यमंत्री को पत्र लिखा है। पन्ना ब्रजेंद्र का गृह जिला है और वीडी वहां से सांसद हैं। इस बार दोनों ने दिग्विजय पर जवाबी हमला बोला। सबसे तीखे आरोप वीडी शर्मा ने लगाए।

उन्होंने कहा कि वे नेताओं को बदनाम करने का टेंडर लेते हैं। उन्होंने कहा कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार के ही वन मंत्री उमंग सिंघार ने दिग्विजय को सबसे बड़ा शराब और खनन माफिया कहा था। खबर है कि कांग्रेस में दिग्विजय के विरोधी नेताओं ने वीडी का वीडियो केरल के एक सांसद के जरिए राहुल गांधी तक भेजा है। दिग्विजय पर प्रदेश में कांग्रेस को कमजोर करने का आरोप लगाया गया है। आरएसएस पर भी दिग्विजय हमलावर हैं। उन्होंने संघ की तुलना दीमक तक से कर डाली। इसके बाद उन्हें खुद को हिंदू साबित करने के लिए पत्रकार वार्ता करना पड़ गई। मंत्री नरोत्तम मिश्रा एवं विधायक रामेश्वर शर्मा तक से उनकी जबानी जंग जारी है।

‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ को लेकर सवाल….
– कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी द्वारा उत्तरप्रदेश में चलाए गए अभियान ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ को लेकर प्रदेश कांग्रेस खासी उत्साहित है। देश के अन्य हिस्सों के साथ इसे यहां भी चलाने की योजना पर काम चल रहा है। मकर संक्राति के अवसर पर मध्यप्रदेश महिला कांग्रेस ने इसे प्रदेश में चलाने का एलान किया है। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या मप्र में यह सफल हो सकता है? क्या प्रदेश में प्रियंका गांधी जैसा कोई आकर्षक चेहरा है, जो इसका नेतृत्व कर सके? प्रियंका की तरह मेहनत करने की हिम्मत मप्र के किसी नेता में है?

संभवत: जवाब एक ही मिलेगा, नहीं। प्रियंका ने उप्र की महिलाओं, लड़कियों में यह भरोसा पैदा किया है कि वे उनके साथ हैं और वे खुद अपने लिए लड़ सकती हैं। यह मेहनत एक दिन की नहीं, तीन साल से लगातार चल रही थी। इसी का नतीजा है कि ‘लड़की हूं, लड़ सकती हूं’ नारे ने देश का ध्यान खींचा और हजारों की तादाद में लड़किया इस नारे के साथ मैराथन में हिस्सा लेती नजर आर्इं। इसे देखकर कांग्रेस का हर नेता उत्साहित हो सकता है लेकिन मप्र या किसी अन्य प्रदेश में ऐसा अभियान चल सकता है, कह पाना कठिन है। वैसे भी महिला कांग्रेस के एलान को कोई गंभीरता से लेता दिखाई नहीं पड़ रहा।

कब तक मृतप्राय बनी रहेंगी प्रदेश की पंचायतें….
– अपने ही कुछ फैसलों के कारण प्रदेश सरकार कटघरे में है। एक निर्णय के कारण पंचायतों का संचालन संकट में है। पंचायत चुनाव स्थगित होने के बाद सरकार ने निर्णय लिया कि अब इनका संचालन सरकार द्वारा गठित प्रशासकीय समितियों के प्रधान करेंगे। निर्णय लागू होता, इससे पहले ही जारी आदेश को रद्द कर दिया गया। वजह, प्रशासकीय समितियों का गठन कमलनाथ के नेतृत्व वाली तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने किया था। समितियों में कांग्रेस समर्थक प्रधान ज्यादा हैं। लिहाजा, भाजपा के अंदर ही इसका विरोध हुआ और निर्णय पलटना पड़ गया।

पंचायतों के चुनाव लंबे समय से लंबित हैं। पंचायतों के परिसीमन का काम हालांकि नए सिरे से करने के निर्देश सरकार ने दिए हैं लेकिन ओबीसी आरक्षण का मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और बकौल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान, ओबीसी आरक्षण के बिना पंचायत चुनाव नहीं कराए जाएंगे। साफ है कि चुनाव सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर टिके हैं। तो क्या जब तक पंचायत चुनाव नहीं होते तब तक पंचायतें इसी प्रकार मृतप्राय बनी रहेंगी। उनका संचालन ही नहीं होगा। क्या यह पंचायती राज कानून के अनुरूप होगा? कांग्रेस इसे लेकर भाजपा और उसकी सरकार को घेरने की तैयारी में है।

रजा मुराद मसले पर बैकफुट पर सरकार….
– पहले प्रदेश की पंचायतों का संचालन, इसके बाद प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता रजा मुराद को स्वच्छता ब्रांड एम्बेसडर बनाने संबंधी आदेश प्रदेश सरकार में आपसी तालमेल में कमी को उजागर करते हैं। जिस तरह पंचायतों के संचालन संबंधी आदेश को रद्द किया गया था, उसी तर्ज पर रजा मुराद से संबंधित आदेश पर निर्णय हुआ। पंचायतों के संचालन संबंधी आदेश को रद्द करने में सरकार ने लगभग 36 घंटे लिए थे लेकिन रजा मुराद के आदेश को 24 घंटे के अंदर बदल दिया गया। अपना ही आदेश बदलने के पीछे कारण एक ही है ‘कांग्रेस’।

पंचायतों का आदेश इसलिए बदला गया था क्योंकि वह तत्कालीन कमलनाथ सरकार के समय का था। रजा मुराद को स्वच्छता के ब्रांड एम्बेसडर पद से इसलिए हटाया गया क्योंकि उन्होंने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के आरिफ मसूद के लिए प्रचार किया था। सवाल यह है कि क्या स्वच्छता जैसे सार्वजनिक कार्यों को दलगत राजनीति से जोड़कर देखना चाहिए या इस तरह के कुछ मसलों को राजनीति से अलग रखना चाहिए। बहरहाल, यह राजनीतिक दलों और नेताओं के सोचने का विषय है। फिलहाल आदेश जारी कर उन्हें वापस लेने से सरकार की किरकिरी हुई है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भविष्य में इस तरह के मसलों पर भी गौर करना चाहिए।