मणिपुर : पुराने आश्वासनों को ही दोहराया जाता है

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अजय कुमार चतुर्वेदी की विशेष रिपोर्ट

नई दिल्ली: पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में धीरे धीरे चुनावी रंग चढ़ रहा है। हालांकि अभी राजनीतिक पार्टियों उम्मीदवारों के नाम फाइनल करने में जुटी हैं। वैसे तो समय के अनुसार राजनीतिक दल चुनावी मुद्दे बदलते रहते हैं, लेकिन मणिपुर में सशस्त्र बल कानून 1956 को हटाने का का आश्वासन लगभग हर पार्टियों पिछले तीन दशकों से देती आ रही हैं। इस बार भी यही आश्वासन फिर दिया जा रहा है।

नगा विधायकों के बिना मजबूत सरकार नहीं बनती

मणिपुर में अगर शांतिपूर्ण तरीके से सरकार चलाने के लिए नगा विधायकों का सहयोग लेना जरूरी माना गया है। भाजपा ने नगा पीपुल्स पार्टी के कुछ विधायकों को सरकार में शामिल करके बिना किसी बाधा के पांच साल सरकार चला ली। इस दौरान नगा पार्टी द्वारा न कोई हाईवे पर जाम लगाया गया और ना ही धरना प्रदर्शन हुए। मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्र में राज्य की 20 विधानसभा सीटें है। इनमें नगा और कुकी मतदाताओं की संख्या अधिक है। हर चुनाव में 8-10 नगा विधायक चुन कर आते हैं। राज्य की शेष 40 सीटै मैदानी क्षेत्र में है।

प्रधानमंत्री मोदी बहुत लोकप्रिय हैं

मणिपुर में स्थानीय नेताओं और दलों से ज्यादा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत लोकप्रिय हैं। बताया जाता है कि कई स्थानीय नेता भाजपा का टिकट लेने के लिए काफी जोर लगा रहे हैं। मणिपुर में मेघालय के मुख्यमंत्री कोनार्ड संगमा के नेतृत्व वाली नेशनल पीपुल्स पार्टी भी चुनाव मैदान में हैं। कांग्रेस और भाजपा को सभी 60 सीटों के लिए प्रत्याशियों की घोषणा करनी है। अगर भाजपा का नगा पार्टी और नेशनल पीपुल्स पार्टी के साथ गठबंधन हो जाता है, तब भाजपा 40-45 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। कांग्रेस के साथ फिलहाल किसी दल के गठबंधन की संभावना कम ही दिखती है। मणिपुर में फरवरी 27 को मतदान होना है।