अब अपने कौल पर टिके रहें टिकैत

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लौट फिरकर उत्तर प्रदेश पर बार-बार आना पड़ता है .मुझे लगता है कि जब तक विधानसभा के चुनाव नहीं हो जाते उत्तर प्रदेश से मुक्ति नहीं मिलेगी. उत्तर प्रदेश की मुक्ति के लिए भी ये चुनाव महत्वपूर्ण हैं .उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों को लेकर भाकियू के प्रमुख प्रवक्ता राकेश टिकैत के नए तेवरों ने सियासत को फिर से गर्म कर दिया है. टिकैत ने उत्तर प्रदेश में भाजपा को वोट न देने की अपील करना शुरू कर दी है .नेताओं का मानना है की राकेश टिकैत नेतागीरी यानि राजनीति कर रहे हैं .

राकेश टिकैत भाकियू का प्रमुख चेहरा हैं ,वे जो कहते हैं उसका एक बड़े वर्ग पर असर होता है. राकेश टिकैत ने पिछले दिनों एक टीवी चैनल पर बहस के लिए बनाये गए मंदिर के मोंटाज पर आपत्ति कर इस बात के संकेत दिए थे कि वे भाजपा को कटघरे में खड़ा करने से नहीं चूकेंगे,और वे नहीं चूके. टिकैत ने कहा कि पूजा-पाठी दिखने वाले भाजपा के लोग बलि खानदान वाले लगते हैं. उन्हने चेतावनी दी कि इस बार पश्चिम उत्तर प्रदेश को ग्राउंड बनाकर हिंदू, मुस्लिम और जिन्ना के मुद्दे पर चुनावी मैच नहीं खेलने दिया जाएगा. दरअसल टिकैत पिछले एक महीने में चुनाव में एक बिरादरी को बदनाम करने की कथित साजिश से नाखुश हैं . उन्होंने कहा कि भाजपा को हिन्दुत्व का सर्टिफिकेट देने का अधिकार नहीं है. जनता सोच समझकर वोट करें.

पिछले दिनों मै एक टीवी चैनल पर टिकैत के साथ था ,मैंने उन्हें सलाह दी थी कि वे परोक्ष रूप से राजनीति करने के बजाय सीधे -सीध चुनाव की राजनीति में हिस्सा लें तो किसानों का भला हो सकता है ,क्योंकि कोई भी राजनीतिक दल खांटी के किसानों को संसद या विधानसभाओं में भेजने से परहेज करता है. हर राजनीतिक दल ने किसानों के नाम पर कुछ एजेंटों को चेहरा बना रखा है.मेरा मानना है कि किसान यदि राजनीति में सीधी भागीदारी करेंगे तो फिर कोई भी सरकार हो किसानों के हितों की अनदेखी नहीं कर पाएगी.

आपको याद होगा कि पिछले दिनों संयुक्त किसान मोर्चा ने मेरठ में एक प्रेस कॉन्फ्रेंसमें एक पत्र भी जारी कर खुले तौर पर भाजपा को सबक सिखाने की बात की है . भाकियू कि एक और नेता योगेंद्र यादव का आरोप है कि 9 दिसंबर को सरकार ने किसानों से वादे किए थे, लेकिन अब तक एक भी वादा सरकार ने पूरा नहीं किया. ऐसे में उन्होंने जनता से चुनाव में भाजपा को सबक सिखाने की अपील की है.टिकैत भी लगभग यही बात कह रहे हैं .

भाकियू कि इस तरह से तेवर बदलने से भाजपा की परेशानी बढ़ी है. भाकियू इन चुनावों में यदि भाजपा को सचमुच सबक सिखाने में कामयाब होती है तो किसान आंदोलन को और बल मिल सकता है.भाकियू ने बंगाल विधानसभा चुनावों में भी भाजपा कि खिलाफ काम किया था हालांकि बंगाल में भाकियू का कोई ख़ास जनाधार नहीं था .संयोग से बंगाल में भाजपा को पराजय का सामना करना पड़ा था ,अब भाकियू कि उत्तर प्रदेश में सक्रिय होने से भाजपा कि होश फाख्ता हो रहे हैं क्योंकि यूपी में तो भाकियू का जनाधार है .यहां ये संगठन सचमुच भाजपा का नुक्सान कर सकता है.

पिछले विधानसभा चुनाव में प्रदेश में भाजपा किसानों कि समर्थन से ही सत्ता तक पहुंची थी.अब वही किसान भाजपा कि खिलाफ हैं. भाजपा की मुखालफत को लेकर किसान नेताओं कि पास इस समय भाजपा की वादा खिलाफी कि सिवाय कोई दूसरा बड़ा आरोप नहीं है.मुश्किल ये है कि राकेश टिकैत दुसरे किसान नेताओं की तरह खुलकर राजनीतिक रुख अख्तियार नहीं कर पा रहे हैं . वे बार-बार कहते हैं कि वे किसी पार्टी के खिलाफ नहीं है बल्कि वह सरकार के खिलाफ हैं। टिकैत ने कहा है कि अगला आंदोलन बेरोजगारी को लेकर होगा। टिकैत ने कहा कि जब हम बर्तन खरीदने जाते हैं तो ठोंक-बजाकर खरीदते हैं, सरकार भी चुननी है तो ठोंक-बजाकर फैसला कर लें।

टिकैत कि लिए ये मौक़ा है जब वे खुलकर खेलें.ढुलमुल रवैया अपनाने से उनका और किसान आंदोलन दोनों का नुक्सान होगा .भाकियू गैर राजनीतिक संगठन भी बना रहे हैं और किसान नेता चुनाव की राजनीति भी कर लें इसके लिए रास्ता खोजना टिकैत और उनके जैसे दूसरे किसान नेताओं की जिम्मेदारी है . बहुत से किसान नेता पंजाब विधान सभा का चुनाव लड़ रहे हैं .उत्तर प्रदेश में भी ये प्रयोग होना चाहिए .यहां दोहरी सदस्य्ता का मुद्दा तो है नहीं. जनता दल की तरह ? कोई किसी भी दल में रहकर भी किसानों कि संगठन कि साथ जुड़ा रह सकता है .

आप मानें या न माने लेकिन एक साल से ज्यादा लंबा आंदोलन चलकर भाकियू ने केंद्र में सत्ता रूढ़ भाजपा कि अलावा डबल इंजिन की राज्य सरकारों को अपने पाले में तो खींच लिया है. इसलिए इस लड़ाई का रंग बदला हुआ है .भाजपा लाख चाहकर भी राम जी को इस चुनाव में इस्तेमाल नहीं कर पा रही है . भाजपा ने केंचुआ को कठपुतली बनाकर अपने ढंग से चुनाव प्रचार कि लिए बागडबंदी कराई लेकिन उसका भी कोई ख़ास लाभ उसे मिलता दिखाई नहीं दे रहा है .चुनाव प्रचार का जो भी तरीका सामने है उसमें सब अपने-अपने तरीके से जुटे हैं .स्वरकोकिला लता मंगेशकर कि निधन पर राजकीय शोक की घोषणा करने वाली सरकार ने सब कुछ स्थगित किया लेकिन अपनी वर्चुअल चुनाव रैली स्थगित नहीं की .ये एक तरह का दबाब है जो भाकियू ने पैदा किया है और इससे बाहर निकले बिना भाजपा आसानी से चुनाव नहीं जीत सकती .

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पांच राज्यों कि विधानसभा चुनावों में सभी राजनीतिक दल उत्तर प्रदेश पर ही केंद्रित हैं ,लेकिन कांग्रेस को पंजाब में भी ध्यान देना पड़ रहा है. पंजाब में भी किसान आंदोलन एक मुद्दा है. यहाँ कांग्रेस की सरकार ने किसानों को अपने साथ बनाये रखने की कुछ कोशिश की है यहां भाजपा मुकाबले से बाहर हैं .यहां ‘ आप ‘ और कांग्रेस के बीच जंग है. कांग्रेस पंजाब में अपने आप से भी लड़ रही है ,किन्तु राहुल गांधी ने पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर पार्टी में आत्मविश्वास भरने की कोशिश तो की है .यहां किसान नेताओं का क्या स्टेण्ड रहेगा ये कहना अभी कठिन है लेकिन पंजाब में भाकियू उतनी आक्रामक नहीं है जितनी की पंजाब में .भाकियू की आक्रामकता बनाये रखना ही किसान नेताओं कि लिए सल चुनौती है इसलिए टिकैत समेत सभी नेताओं को अपने-अपने कौल पर टिके रहना चाहिए .