UP Election 2022 : वरुण और मेनका गांधी को भाजपा ने हाशिए पर क्यों पटक दिया

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UP Election 2022 : वरुण और मेनका गांधी को भाजपा ने हाशिए पर क्यों पटक दिया

UP Election 2022 : वरुण और मेनका गांधी को भाजपा ने हाशिए पर क्यों पटक दिया

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सबसे उपेक्षित भाजपा नेता हैं मेनका गांधी और वरुण गांधी। ये दोनों माँ-बेटे कहने को सांसद हैं, पर इन दिनों भाजपा की आंखों में खटक रहे हैं। जब भाजपा के सारे नेता उत्तर प्रदेश में फिर से भाजपा सरकार बनाने के लिए जी-जान लगा रहे हैं, मेनका और वरुण को हाशिए पर डाल दिया गया! इसलिए कि भाजपा को वरुण गांधी की मुखरता रास नहीं आ रही। किसान आंदोलन और लखीमपुर खीरी मामले पर भी वरुण गांधी ने भाजपा सरकार को निशाने पर रखा था। तभी से लगने लगा था कि उनकी ये खरी-खरी राजनीतिक मुसीबत का कारण बनेगा और ये हुआ भी।

बीजेपी ने अपनी 80 सदस्यीय राष्ट्रीय कार्यकारिणी से पीलीभीत के सांसद वरुण गांधी और सुल्तानपुर की सांसद मेनका गांधी को अलग कर दिया था। इसका कारण उसका तात्कालिक कारण लखीमपुर खीरी हिंसा को लेकर वरुण का विद्रोही रवैया बताया गया था। 17 साल से पार्टी से जुड़े वरुण गांधी ने कहा कि उन्होंने पिछले 5 साल से एक भी राष्ट्रीय कार्यसमिति में हिस्सा नहीं लिया। उन्हें तो लगता है कि वे इसमें है ही नहीं। उन्होंने उत्तर प्रदेश की योगी और दिल्ली की मोदी सरकार के खिलाफ दोनों ने मोर्चा खोल रखा है। मेनका और वरुण ने ट्विटर पर भी दोनों सरकारों पर जमकर हमले किए। यही कारण है कि कार्यसमिति से न सिर्फ वरुण की, उनकी मां मेनका की भी छुट्टी कर दी गई थी।

UP Election 2022 : वरुण और मेनका गांधी को भाजपा ने हाशिए पर क्यों पटक दिया

भाजपा नेतृत्व से उनकी दूरी बनने की भी अलग कहानी है। 2014 के चुनाव से पहले जब बीजेपी की कमान राजनाथ सिंह के हाथ में थी, तो वरुण पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव हुआ करते थे। जब अमित शाह ने यह जिम्मेदारी संभाली, तो वरुण को किनारे कर दिया गया। 2014 में वरुण से जब अमेठी और रायबरेली में प्रचार करने के लिए कहा गया तो उन्होंने मना कर दिया।

इसके बाद से पार्टी में उनका रुतबा कम हो गया। नरेंद्र मोदी की पहली सरकार में मेनका गांधी को मंत्रिमंडल में जगह भी मिली। लेकिन, 2019 के चुनाव से पहले वरुण ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी दादी इंदिरा गांधी से बेहतर प्रशासक बताने की कोशिश भी की! लेकिन, फिर भी उनकी मां को कैबिनेट में शामिल नहीं किया गया। पिछले साल जुलाई में जब मोदी ने कैबिनेट का मंत्रिपरिषद का विस्तार करने वाले थे, तो लगा था कि इस बार वरुण की एंट्री तय है। ट्विटर पर उनके सुर भी बदले हुए थे, लेकिन उन्हें नहीं लिया गया।

गन्ना किसानों का समर्थन, सरकार का विरोध
इससे पहले वरुण गांधी उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों के लिए भी सरकार से अपील कर चुके हैं। तीन कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे किसानों और सरकार के बीच के गतिरोध पर भी वे कई बार टिप्पणी कर चुके हैं। मुजफ्फरनगर में हुई किसान महापंचायत का एक वीडियो शेयर करते हुए उन्होंने ट्विटर पर लिखा था ‘आज मुजफ्फरनगर में विरोध प्रदर्शन के लिए लाखों किसान इकट्ठा हुए हैं। वे हमारे अपने ही हैं. हमें उनके साथ सम्मानजनक तरीके से फिर से बातचीत करनी चाहिए और उनकी पीड़ा समझनी चाहिए। हमें उनके विचार जानने चाहिए और किसी समझौते तक पहुँचने के लिए उनके साथ मिलकर काम करना चाहिए!’

UP Election 2022 : वरुण और मेनका गांधी को भाजपा ने हाशिए पर क्यों पटक दिया

उत्तर प्रदेश में चुनाव में से पहले बीजेपी के लिए किसान आंदोलन की पृष्ठभूमि में अपने ही सांसद का उनके समर्थन में सामने आना असाधारण बात थी। सबसे बड़ी बात यह कि वरुण गांधी जिस इलाके और लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, वह गन्ना बेल्ट होने के साथ ही किसान प्रधान है। गन्ना पश्चिमी उत्तर प्रदेश में खूब होता है और गन्ना किसानों में एकजुटता भी है।

किसानों की समस्याएं गिनाकर वरुण गांधी ने मुख्यमंत्री योगी को पत्र भी लिखा था। वह भी ऐसे समय में जब बीजेपी खुद को किसानों की हितैषी बताते हुए ‘सब कुछ ठीक है’ वाली बातें कर रही है, वरुण गांधी ने सरकार को आईना दिखा दिया। वरुण ने लिखा था ‘मेरे क्षेत्र और उत्तर प्रदेश में गन्ना एक प्रमुख फसल है। गन्ना किसानों ने मुझे अवगत कराया कि गन्ने की लागत बहुत ज्यादा बढ़ गई है। जबकि, पिछले चार सत्रों में गन्ने के रेट में मात्र 10 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गई। आपने गन्ने का भुगतान पिछली सरकारों के सापेक्ष ज्यादा करवाया, जो सराहनीय है परंतु आज भी गन्ने का इस सत्र का कुछ भुगतान बकाया है।’

बीजेपी सांसद ने अनुरोध करते हुए लिखा कि गन्ना किसानों की आर्थिक समस्याओं, गन्ने की बढ़ती लागत और महंगाई दर को देखते हुए सरकार गन्ना किसानों की मांग के अनुसार आगामी गन्ना सत्र (2021-22) में गन्ने का रेट बढ़ाकर कम से कम 400 रुपए प्रति क्विंटल घोषित करे और तत्काल सारा बकाया गन्ना भुगतान करवाना सुनिश्चित करें।

कांग्रेस में जाने की चर्चा
पहले ये समझा गया कि वरुण गांधी कांग्रेस में शामिल होंगे। बात यहां तक बढ़ी कि प्रियंका गांधी उनकी कांग्रेस में एंट्री करवाएंगी। क्योंकि, वरुण गांधी को प्रियंका गांधी का सबसे करीबी माना जाता है। उनका रवैया उनके प्रति पहले से नरम बताया जाता है। लेकिन, सवाल है कि अकेले प्रियंका के प्रभाव से उनकी उस घर में वापसी हो सकती है, जिससे कभी उनकी मां को वंचित रखा गया था। अगर ऐसा होता, तो यह भारतीय राजनीति का एक दिलचस्प मोड़ होता! पर ऐसा हुआ नहीं। समझा गया कि प्रियंका और वरुण मिलकर भी सोनिया और मेनका की दशकों पुरानी नाराजगी को दूर कर सकते हैं! पर, ऐसा नहीं हुआ। इस बीच वरुण की ममता बैनर्जी से भी बात हुई, पर अभी तक कोई निष्कर्ष सामने नहीं आया।

UP Election 2022 : वरुण और मेनका गांधी को भाजपा ने हाशिए पर क्यों पटक दिया

वरुण गांधी सार्वजनिक रूप से भी कह चुके हैं कि अगर उनके नाम के साथ ‘गांधी’ जुड़ा नहीं होता, तो वे 29 साल की उम्र में सांसद नहीं बनते। ये सही है कि राजनीति उनके खून में है। इसलिए उन्हें यह भी पता है कि अब उत्तर प्रदेश में सिर्फ ‘गांधी’ नाम से चुनाव जीतना बच्चों का खेल नहीं रह गया। अगर ऐसा होता तो उनके बड़े भाई राहुल गांधी की अमेठी में स्मृति ईरानी से हार नहीं होती।

मुजफ्फरनगर में हजारों की संख्या में जुटे किसानों ने महापंचायत की थी। किसान आंदोलन को ज्यादा तवज्जो न देने वाली बीजेपी उस भीड़ में खामी ढूंढ रही थी और बैठे-बिठाए कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने गलत तस्वीर शेयर करके उसे मौका दे दिया। पर कुछ ही देर में वरुण गांधी ने 5 सेकेंड का वीडियो शेयर कर बीजेपी के लिए असहज स्थिति पैदा कर दी थी। वरुण गांधी ने वीडियो शेयर करने के साथ लिखा था ‘लाखों किसान मुजफ्फरनगर के प्रदर्शन में इकट्ठा हुए। वे हमारा ही खून और अपने लोग हैं।

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हमें एक सम्मानजनक तरीके से उनके साथ फिर से संवाद शुरू करना चाहिए: उनका दर्द महसूस कीजिए, उनका नजरिए जानिए और आम सहमति बनाने के लिए उनके साथ बात कीजिए।’ वरुण गांधी के उस वीडियो ट्वीट को विपक्ष ने भी हाथों हाथ लिया। किसान नेताओं ने इसकी खूब चर्चा की। सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने ‘यूपी में कांग्रेस का अगला सीएम कैंडिडेट’ तक कहना शुरू कर दिया। ट्विटर पर ट्रेंड चले और बीजेपी के आईटी सेल को इसकी काट नहीं मिल पाई। शायद यही सब कारण है कि बीजेपी ने इन दोनों नेताओं को हाशिए पर रखे।

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Hemant pal
हेमंत पाल

चार दशक से हिंदी पत्रकारिता से जुड़े हेमंत पाल ने देश के सभी प्रतिष्ठित अख़बारों और पत्रिकाओं में कई विषयों पर अपनी लेखनी चलाई। लेकिन, राजनीति और फिल्म पर लेखन उनके प्रिय विषय हैं। दो दशक से ज्यादा समय तक 'नईदुनिया' में पत्रकारिता की, लम्बे समय तक 'चुनाव डेस्क' के प्रभारी रहे। वे 'जनसत्ता' (मुंबई) में भी रहे और सभी संस्करणों के लिए फिल्म/टीवी पेज के प्रभारी के रूप में काम किया। फ़िलहाल 'सुबह सवेरे' इंदौर संस्करण के स्थानीय संपादक हैं।

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