उमा भारती के लिए ऐसे बयान नई बात नहीं…!

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श्रीप्रकाश दीक्षित की विशेष रिपोर्ट

शराबबंदी के लिए लट्ठमलट्ठ की धमकी देने वाली पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने आला अफसरों की जमात को चप्पल उठाने की औकात वाला बता बेहद घटिया और फूहड़ किस्म की बयानबाजी की है. कुछ साल पहले बलात्कारियों को उलटा लटका चमड़ी निकल जाने तक पीटने और फिर घावों पर नमक मिर्च रगड़ने की सजा की माँग कर उन्होने तालिबानी इंसाफ की ही वकालत की थी.वो यहाँ तक कह गईं की जब मैं मुख्यमंत्री थी तब बलात्कारियों को ऐसी ही सजा दिलवाती थी.इंडियन एक्सप्रेस ने इस पर उमा भारती के समय डीजीपी रहे एसके दास से बातचीत की तो उन्होने इंकार करते हुए कहा की ऐसा होना तो दूर कोई ऐसा सोच भी नहीं सकता.श्री दास ने यह भी कहा की यदि कोई पुलिस अफसर ऐसा करता तो मैं उसे तुरंत बर्खास्त/मुअत्तल कर देता.
अब नौकरशाही पर चप्पल वाले कटाक्ष पर आते हैं. नौकरशाही के अवमूल्यन के लिए सत्ताधीश ही दोषी हैं.चाहे अर्जुनसिंह हों,दिग्विजयसिंह हों या शिवराज सभी ट्रांसफर पोस्टिंग मे काबिलियत के बजाए जीहजूरियों को तवज्जो देते रहे हैं.पुनर्वास का पुरस्कार भी इस खेल का हिस्सा बन चुका है.17 साल पहले भाजपा उमा भारती के नेत्रृत्व मे भारी बहुमत से सत्ता मे आई तब शायद उन्होने इसे निजी जीत मान नेताओं और पार्टी की भी उपेक्षा शुरू कर दी.तब मौका आते ही उन्हे हटाने मे देर नहीं की गई.कहते हैं यह मौका भी लाया गया था और बाबूलाल गौर को हटाने पर उन्हें दुबारा मौका नहीं दिया गया.तब उमा भारती आडवाणीजी आदि वरिष्ठ नेताओं को कोसती हुईं पार्टी छोड़ गईं थीं.
शराबबंदी पर भी बयानबाजी बेमतलब है.वे जब मुख्यमंत्री बनीं तब यह फैसला क्यों नहीं लिया,किसने उन्हें रोका था..?अपराध बढ़ने के और भी बहुत से कारण हैं.पुलिस को उसके मूल काम की बजाए ढेर सारी बेगारों मे लगा दिया गया है और 25 हजार पद खाली पड़े हैं.उन्हें इस पर ध्यान आकर्षित करना था.कोरोना संकट के इस दौर मे शराबबंदी का बड़ा फैसला लेना मुमकिन नहीं लगता है.