Jhuth Bole Kauva Kaate: यंग इंडियन केस आफ्टर इफेक्ट प्रियंका के हवाले होगी कांग्रेस !
नेशनल हेराल्ड मामले से जुड़े यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड आयकर चोरी केस को आयकर अपीलीय अधिकरण द्वारा सही ठहराने के बाद कानूनविदों को कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी के लिए आने वाला साल भारी बीतने की आशंका है। तो, सियासी गलियारे में 2024 के पहले कांग्रेस की कमान प्रियंका गांधी वाड्रा के हाथों में सौंपने की दबी जुबान से चर्चा भी है। 2022 के विधानसभा चुनाव में प्रियंका को बदलाव की बयार के लिए जोरशोर से आगे भी किया गया।
पहले बात यंग इंडियन केस की। यह मामला 2018 का है जब आयकर विभाग ने यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड, जिसमें तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी प्रमुख हितधारक हैं, को कंपनी की आय पर कर का भुगतान करने के लिए कहा था। हाल ही में गांधी परिवार को बड़ा झटका देते हुए आयकर अपीलीय अधिकरण ने उनके खिलाफ यंग इंडियन मामले को सही ठहराते हुए कहा है कि टैक्स ब्यौरे में निदेशक-पद की जानकारी छिपाई गई है।
आयकर विभाग ने गांधी परिवार पर टैक्स से बचने के लिए यंग इंडियन शेयर वैल्यू को छिपाने का आरोप लगाया है, साथ ही कंपनी के शेयरों के मूल्यांकन को गलत ठहराया है। इस मामले की बुनियाद तब पड़ी जब 2012 में भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने आरोप लगाया कि नेशनल हेराल्ड अखबार समूह की प्रॉपर्टी को लेकर घपलेबाजी की गई है और उन्होंने सोनिया और राहुल के खिलाफ टैक्स चोरी और धोखाधड़ी की शिकायत दर्ज कराई थी। स्वामी का आरोप है कि नेशनल हेराल्ड की कर्ताधर्ता कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड की संपत्ति को गैर क़ानूनी रूप से यंग इंडिया लिमिटेड में शामिल कर दिया गया जबकि यंग इंडिया लिमिटेड कोई जर्नल या न्यूज़ पेपर नहीं हैं।
नेशनल हेराल्ड अखबार की स्थापना पूर्व प्रधाननंत्री जवाहर लाल नेहरू ने 8 सितंबर, 1938 को लखनऊ में की। वे ही इस अखबार के पहले संपादक थे। ब्रिटिश शासनकाल में 1942 से 1945 तक नेशनल हेराल्ड पूरी तरह बंद कर दिया गया। वर्ष 1946 में इसे फिरोज गांधी द्वारा शुरू किया गया और एम चलापति राव को इसकी बागडोर सौंपी गई। दिल्ली एवम् लखनऊ से इसके हिंदी एवम उर्दू संस्करण प्रकाशित हुए। इंदिरा गाँधी जब 1977 में चुनाव हारीं तो यह फिर बंद हो गया। 2008 तक इसका दिल्ली संस्करण जारी था लेकिन फिर अनेकों तकनीकी कारणों से हेराल्ड को बंद करना पड़ा।
2008 में अखबार का मालिकाना हक एसोसिएटेड जर्नल्स के पास था। माली हालत बहुत ख़राब होने के कारण इसके कर्मचारियों को वेतन देने के लिए कांग्रेस सरकार ने एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड को नब्बे करोड़ का कर्ज दिया जिस पर कोई ब्याज नहीं लगाया गया। और तो और, इतने बड़े कर्ज के बावजूद नेशनल हेराल्ड शुरू नहीं किया गया। यह बात किसी के पल्ले नहीं पड़ी थी। एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड को यंग इण्डिया को एक मालिकाना हक़ के साथ सौंप दिया गया। नेशनल हेराल्ड की संपत्ति किसी की निजी संपत्ति नहीं हैं।
इसका दुरुपयोग अथवा निजी लाभ के लिए किया गया उपयोग पूर्णतः गैरकानूनी हैं। सुब्रमण्यम स्वामी की इस तरह की शिकायत के बाद 26 जून 2014 को पटियाला हाउस कोर्ट द्वारा भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत आपराधिक साजिश के साथ संपत्ति के दुरुपयोग, आपराधिक विश्वासघात और धोखाधड़ी के कथित अपराधों के लिए मामला दर्ज किया गया। सभी आरोपियों- गांधी परिवार, भारतीय कांग्रेस कमेटी के तत्कालीन कोषाध्यक्ष (स्व.) मोतीलाल वोरा, कांग्रेस महासचिव ऑस्कर फर्नांडीस, सुमन दुबे, सैम पित्रोदा और यंग इंडिया ने आरोपों से इनकार किया था। यंग इंडिया में गाँधी परिवार के 64% शेयर हैं शेष अन्य के। वोरा के खिलाफ कार्यवाही उनकी मृत्यु के बाद समाप्त कर दी गई।
सबसे बड़ा आरोप बिना ब्याज का कर्ज (नब्बे करोड़) दिया जाना है क्योंकि कोई भी राजनैतिक दल अपने फंड से किसी भी प्रकार के धंधे के लिये इतनी बड़ी राशि उधार में नही दे सकता। बाद में यह ऋण माफ़ भी कर दिया गया। नेशनल हेराल्ड की सात मंजिला ईमारत है, जिसे यंग इंडिया ने ले लिया और फिर उसके कुछ हिस्सों को किराये पर दे दिया जो कि गैर क़ानूनी मालिकाना हक़ है।
आरोप है कि 2009 के चुनाव में राहुल गांधी ने बताया नहीं कि उनकी सम्पत्ति में एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड के शेयर हैं जिनमे से कुछ उन्होंने अपनी बहन के नाम कर दिए। 20 फरवरी 2011 को शेयर एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड से यंग इंडिया को दिए गए जबकि यह कोई पेपर पब्लिकेशन कंपनी नहीं है, यह भी गैर क़ानूनी है। एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड के कई शेयर होल्डर मर गए उसके बाद उनके शेयर का ब्यौरा नहीं है। हेराल्ड की कुल संपत्ति सोलह हजार करोड़ की थी जिसे यंग इंडिया ने महज पचास लाख में ले लिया। बाद में एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड का ऋण भी माफ़ हो गया जिससे साफ जाहिर होता हैं कि सारी संपत्ति मुफ्त में यंग इंडिया की हो गई और उपर से नब्बे करोड़ भी उसी को मिल गए।
स्वामी की शिकायत और दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट के निर्देशों के बाद प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने सोनिया और राहुल पर प्राथमिक जांच का केस दर्ज किया था। विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) उल्लंघन की शिकायत सही पाए जाने पर दोनों पर नियमित केस दर्ज किया गया। यंग इंडियन ने आयकर कार्यवाही पर रोक लगाने के लिए उच्च न्यायालय का रुख किया। लेकिन, उच्च न्यायालय ने अपील खारिज कर दी। कंपनी ने इसके खिलाफ 249.15 करोड़ रुपये की आयकर कार्यवाही में 10 करोड़ रुपये जमा करने की प्रार्थना की।
अप्रैल 2019 में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने यंग इंडियन को आयकर अधिनियम के तहत दिए गए पंजीकरण को पूर्वव्यापी रद्द करने के खिलाफ लंबित अपील पर त्वरित सुनवाई के लिए गांधी परिवार और अन्य लोगों को आयकर अपीलीय अधिकरण स्थानांतरित करने की स्वतंत्रता दी थी। अब इस अपीलीय अधिकरण के फैसले से भी गांधी परिवार और कांग्रेस को हताशा ही हाथ लगी है।
झूठ बोले कौआ काटेः विधि विशेषज्ञों की राय में आयकर अपीलीय अधिकरण के फैसले के बाद यदि यंग इंडिया ब्याज के साथ कर और जुर्माने को जमा करता है तो इसका मतलब यह होगा कि सुब्रमण्यम स्वामी की कोर्ट में की गई शिकायत सही हैं कि गांधी परिवार और अन्य ने अवैध तरीके से संपत्ति हासिल की और बेहिसाब लाभ अर्जित किया। तब आपराधिक मामले में भी मुश्किल होनी तय है। यदि आरोपी कर, जुर्माना और ब्याज की राशि जमा करने से इनकार करता है तो आय़कर विभाग आईटी एक्ट की धारा 276-सी के अंतर्गत अभियोजन की कार्यवाही शुरु करेगा।
कानून के जानकार अधिकरण के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील से भी कोई बहुत लाभ नहीं देखते हैं क्योंकि, अधिकरण के फैसले के बाद सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई मामले के तथ्यों को लेकर नहीं होगी। दोनों हालात में सोनिया गांधी, राहुल गांधी और कांग्रेस के लिए 2024 के पहले का वक्त काफी मुश्किल सिद्ध होने वाला है। सवाल यह भी हैं कि राजनैतिक लोग हेराफेरी करके भी इतनी आसानी से जमानत पर रिहा कैसे हो जाते हैं? राजनैतिक दलों का फंड इतनी आसानी से कैसे निजी कार्यों में लगाया जा सकता हैं? इतने गंभीर आरोपों के बाद भी ऐसे मामले सालों तक चलते रहते हैं ?
क्या गांधी परिवार को नेशनल हेराल्ड मामले के हश्र का अंदाजा पिछले साल ही महसूस हो गया था जब आयकर आयुक्त का फैसला यंग इंडिया के विरूद्ध आ गया था? क्या इसी कारण प्रियंका गांधी वाड्रा को उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में इतने आक्रामक अंदाज में रणनीतिक ढंग से आगे किया गया था, कि 2024 के पहले उन्हें उत्तराधिकारी का दर्जा हासिल हो सके? विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रियंका गांधी के उत्तर प्रदेश के सीएम पद की दावेदारी को लोग भूले नहीं होंगे। हालांकि बाद में वे मुकर गई थीं। तब इस बारे में पूछे जाने पर कांग्रेस के प्रवक्ता, वरिष्ठ नेता राशिद अल्वी ने एक टीवी चैनल पर इंटरव्यू में कहा था कि प्रियंका गांधी मुख्यमंत्री पद की नहीं बल्कि प्रधानमंत्री पद की दावेदार हैं। शायद गलती से उनके मुंह से अंदरखाने की यह बात निकल गई थी।
और ये भी गजबः पेट्रोल-डीजल की रोजाना बढ़ रही कीमतों के बीच बिहार के शिवहर में एक कर्मचारी को अपनी ड्यूटी बाइक की बजाय घोड़े से निभाना भारी पड़ गया। दरअसल, कुछ दिन पहले उत्कर्ष सिंह नाम के एक यूजर ने अपने ट्विटर अकाउंट से एक वीडियो शेयर किया था। इस वीडियो में एक शख्स को घोड़े पर बैठकर बिजली का बिल बांटते देखा जा सकता है। इस कर्मचारी ने घोड़े पर बैठकर बिजली का बिल बांटने के बारे में इसलिए सोचा क्योंकि पेट्रोल महंगा हो गया था। इस वीडियो को शेयर करते हुए उत्कर्ष सिंह ने लिखा, “पेट्रोल महंगा हुआ तो घोड़े पर सवार होकर बिजली बिल वसूल रहे बिहार के शिवहर में विद्युत विभाग के कर्मी अभिजीत तिवारी।”
लेकिन अब उत्कर्ष सिंह ने इस वीडियो को रिट्वीट करते हुए बताया कि घोड़े पर बैठकर बिजली बिल वसूलना पड़ा महंगा, बिजली विभाग ने अभिजीत तिवारी का कॉन्ट्रैक्ट रद्द किया। दरअसल, अभिजीत तिवारी नाम का ये कर्मचारी बिजली विभाग में कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रहा था, लेकिन जब विभाग को उसके घोड़े पर बैठकर बिल बांटने की बात पता चली तो विभाग ने उसका कॉन्ट्रैक्ट ही रद्द कर दिया।