यहां “जय जगदीश” के जयकारे से गूंजती है धरा-गगन …

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“जगन्नाथ का भात, जगत पसारे हाथ” के जयकारों के साथ भगवान जगदीश स्वामी की रथयात्रा की चर्चा हो, तो कोई भी आस्थावान हिंदू यह दावा कर सकता है कि पुरी और जगन्नाथ की चर्चा हो रही है। पर जिस आषाढ़ मास की दूज पर जगन्नाथ पुरी में रथ यात्रा शुरू होती है, उसी दिन मध्यप्रदेश के विदिशा जिले के मनोरा गांव में भी अपने भक्त की आस्था के वशीभूत हो पिछले तीन सौ साल से भगवान जगदीश स्वामी थोडे़ समय के लिए पुरी छोड़कर आ जाते हैं। इसकी घोषणा पुरी में पुजारी संकेत पाकर करते हैं और वहां रथ यात्रा रोक दी जाती है। ठीक उसी समय सुबह के समय मनोरा गांव के मंदिर के पुजारी को भी संकेत मिल जाते हैं और यहां हजारों की संख्या में जुटे श्रद्धालु “जय जगदीश-जय जगदीश” के जयकारे लगाते रहते हैं। भाई बलदाऊ और बहिन सुभद्रा के साथ जगदीश स्वामी का श्रंगार होता है और आरती होती है। उसके बाद फिर रथ पर सवार होने से पहले आरती होती है। भाई-बहिन सहित रथ पर सवार होने पर फिर पूजा-अर्चना के बाद जगदीश स्वामी का नगर भ्रमण शुरू हो जाता है। तब हर सड़क पर श्रद्धालु झूमते और जयकारे लगाते नजर आते हैं। यह संख्या लाखों तक पहुंच जाती है। और स्थानीय लोगों को तो लगता है कि करोड़ों लोग भगवान जगदीश स्वामी के दर्शन के लिए जुटते हैं। नजारा इससे कम भी नजर नहीं आता।
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इस साल हम भी मनोरा गांव की इस जगदीश स्वामी की यात्रा के साक्षी बने। अग्रज देवदत्त दुबे जी के सहज आमंत्रण पर हम 30 जून की रात्रि में भोपाल से मनोरा गांव के लिए निकल पड़े। पहले सोचा था कि रात्रि विश्राम विदिशा कर सुबह मनोरा गांव पहुंच दर्शन लाभ लेंगे। पर जगदीश स्वामी की इच्छा कि हमने रात्रि में ही मनोरा गांव पहुंचने का मन बना लिया। और फिर जब पूरे रास्ते श्रद्धालुओं को नंगे पांव पैदल जाते देखा, तो समझ में आ गया कि जगदीश स्वामी के प्रति आस्था का यह सैलाब निराधार नहीं है। मनोरा गांव के चारों तरफ से जब यह नजारा दिखा तो जगदीश स्वामी के दर्शन कर यह संतुष्टि भी हुई कि पुरी से पहले ही जगन्नाथ स्वामी ने मनोरा गांव बुलाकर मुझे धन्य कर दिया। ऐसे हजारों श्रद्धालु भी दिखे, जो जमीन पर लेटकर जगदीश स्वामी का नाम लेकर मंदिर तक पहुंचते हैं। सुबह जब मंदिर से निकलकर जगदीश स्वामी रथ पर सवार होते हैं, तब तक मनोरा गांव में हर तरफ श्रद्धालुओं के सिर ही सिर नजर आते हैं। पानी बरसता रहा और श्रद्धालु झूमते रहे।
मंदिर के पुजारी के निवास से पीछे की तरफ नजर गई, तो दो समाधियां नजर आईं। जानकारी मिली कि यह समाधियां भगवान के भक्त और मनोरा के तरफदार मानिकचंद और देवी पद्मावती की हैं। यह मंदिर इन्हीं की आस्था का प्रतीक है। तीन सौ साल पहले तरफदार दंपत्ति भगवान के दर्शन की आकांक्षा में दंडवत करते हुए जगन्नाथपुरी चल पड़े थे। दुर्गम रास्तों के कारण दोनों के शरीर लहुलुहान हो गए, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। इस पर भगवान स्वयं प्रकट हुए और उनको मनोरा में ही हर वर्ष दर्शन देने आने का वचन दे दिया। अपने भक्त को दिए इसी वचन को निभाने हर साल आषाढ़ सुदी दूज को रथयात्रा के दिन भगवान जगदीश मनोरा पधारते हैं और रथ में सवार होकर भक्तों को दर्शन देने निकलते हैं। मनोरा सात-आठ सौ घरों की बस्ती है, लेकिन रथयात्रा के दिन यहां दर्शनार्थियों का ऐसा सैलाब उमड़ता है कि करीब 6-7 लाख लोग जगदीश स्वामी के दर्शन के लिए पहुंचते हैं। गांव में हर समाज के लोग न सिर्फ भगवान का भक्तिभाव से स्वागत करते हैं बल्कि दूरदराज से आने वाले मेहमानों का भी दिल से स्वागत करते हैं। छोटे गांव में शिव मंदिर है, जहां जगदीश स्वामी एक घंटे रुककर मान-सम्मान का भाव प्रकट करते हैं।
निश्चित तौर पर विदिशा जिले के मनोरा में तीन सौ साल पुराना भगवान जगदीश का यह मंदिर आस्था का संगम है। इस प्राचीन मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा के श्रीविग्रह विराजमान हैं। जिन्हें पुरी से ही कांवड़ में रखकर लाया गया था और पुरी के पुजारियों ने ही इनकी प्राण प्रतिष्ठा करवाई थी। यहां पहुंचकर ही अनुभूति होती है कि देवभूमि भारत आस्था और श्रद्धा की भूमि है और इसके प्रत्यक्ष प्रमाण भी मौजूद हैं।