सावन में भी जेठ के महीने की तरह तप रहा पेंशनर्स का मन …

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सावन में भी जेठ के महीने की तरह तप रहा पेंशनर्स का मन ...
सावन के महीने में जहां झमाझम बारिश से कहीं डैम छलक रहे हैं और कहीं डैम के गेट खुल रहे हैं, तो कहीं बाढ़ जैसे नजारे हैं। पर मध्यप्रदेश के पेंशनर्स के मन जेठ में आसमान से बरस रही आग की तरह तप रहे हैं। एक तो उम्र अहसास करा रही है कि अब तुम्हारे हाथ में पेंशन के अलावा कुछ नहीं है। तो दूसरी तरफ सरकार भी प्रदेश के पांच लाख पेंशनर्स के साथ कर्मचारियों की तुलना में सौतेला व्यवहार कर रही है। सरकार के इसी सौतेलेपन ने पेंशनर्स की नींद उड़ा रखी है और चैन छीन लिया है। सौतेलेपन की मुख्य वजह है मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद लगा मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ राज्य पुनर्गठन अधिनियम सन् 2000 की धारा 49(6) का बेफिजूल का अड़ंगा।
पेंशनर्स इस धारा और शासकीय कर्मचारियों की तुलना में पेंशनर्स के साथ हो रहे आर्थिक भेदभाव को लेकर तनाव में हैं। पेंशनर्स  उच्च न्यायालय की शरण में भी गए और न्यायालय ने हाल ही में इस मामले पर संज्ञान लेते हुए मध्यप्रदेश शासन सहित संबंधित पक्षों से जवाब मांगा है। सरकार ने एक दिन पहले ही पेंशनर्स को 5 फीसदी महंगाई भत्ता देने का आदेश जारी किया, जिसको लेकर पहले से ही पेंशनर्स के मन में आक्रोश था। वजह यही थी कि छत्तीसगढ़ सरकार ने 5 फीसदी महंगाई भत्ते पर हरी झंडी दी और धारा 49 के फेर में मध्यप्रदेश सरकार ने भी वही 5 फीसदी डीए पेंशनर्स को देने का आदेश जारी कर दिया। पेंशनर्स भेदभावपूर्ण रवैये से त्रस्त होकर पहले ही 14 अगस्त 2022 को गांधी जी की प्रतिमा के सामने पूरे प्रदेश में एक घंटे का प्रदर्शन करने का ऐलान कर चुके थे। साथ ही सरकार के 5 फीसदी डीए का आदेश देने पर पेंशनर्स यह भी जाहिर कर चुके थे कि ऐसे आदेश की होली जलाएंगे।

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पेंशनर्स के विरोध की सीमा है और उनके आर्थिक हित भी सीमित हैं, ऐसे में उनकी सरकार से यही अपेक्षा रहती है कि उनकी दारुण पुकार पर सरकार गौर कर आर्थिक हितों की पूर्ति कर दे। पर सरकार के फैसलों से नाखुश पेंशनर्स के मन में यह धारणा घर करती जा रही है कि सरकार बुजुर्ग पेंशनर्स के प्रति बिलकुल भी हमदर्द नहीं है और लगातार आर्थिक हितों पर कुठाराघात कर रही है। इससे प्रदेश के पेंशनर्स में तीव्र असंतोष है। पेंशनर्स का यह मानना है कि मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ पुनर्गठन अधिनियम के अनुसार छत्तीसगढ़ सरकार की सहमति की आवश्यकता नहीं है। ऐसे में छत्तीसगढ़ सरकार ने 17 प्रतिशत के बजाय 5 प्रतिशत की सहमति दी और मध्यप्रदेश सरकार ने भी उसी पर अमल कर एक बार फिर पेंशनर्स को निराश कर दिया।

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इसकी प्रतिक्रिया में पेंशनर्स ने विरोध दर्ज कराने का मन बना लिया है। प्रदेश सरकार के भेदभाव पूर्ण महंगाई राहत आदेश के विरोध में पेंशनर्स राजधानी में प्रदर्शन करेंगे। 4 अगस्त 2022 को सभी पेंशनर्स विंध्याचल भवन के सामने एकत्रित होकर मध्यप्रदेश शासन वित्त विभाग के परिपत्र क्रमांक एफ 9-3/ 2019 /नियम/ चार, दिनांक 2 अगस्त 2022 द्वारा प्रदेश के पेंशनर्स को 34 प्रतिशत के स्थान पर 22% महंगाई राहत के भेदभाव पूर्ण आदेश जारी करने के विरोध में प्रदर्शन करेंगे। पेंशनर्स की पीड़ा है कि पिछले 21 वर्षों से प्रदेश के पेंशनर्स को समय पर महंगाई राहत देने के संबंध में मध्यप्रदेश शासन द्वारा कोई सार्थक पहल नहीं की गई। राज्य पुनर्गठन अधिनियम 2000 की धारा 49(6) को मध्यप्रदेश एवं छग आपसी सहमति का आधार बनाकर पेंशनर्स को बरसों से वित्तीय अधिकारों व लाभ से वंचित कर प्रताड़ित किया जा रहा है। नियमित कर्मचारियों को 34% एवं पेंशनर्स को 22% महंगाई राहत के भेदभावपूर्ण आदेश के विरोध में सभी पेंशनर्स 04 अगस्त 2022 को विंध्याचल भवन के सामने एकत्रित होकर वित्त विभाग व्दारा जारी परिपत्र दिनांक 2 अगस्त 2022 का विरोध कर प्रदर्शन कर अपना दर्द बयां करेंगे।

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मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से पेंशनर्स को बड़ी आस है, तो बार-बार उनके हाथ लग रही निराशा से वह हताश भी हैं। अब पेंशनर्स के विरोध प्रदर्शन की एक सीमा भी है। पूरा जीवन सरकार को समर्पित करने के बाद उनकी उम्मीद यही है कि उन पर आर्थिक कुठाराघात करने वाली धारा 49(6) की बेड़ियों से उन्हें आजादी मिले, तभी स्वतंत्रता दिवस का पर्व उन्हें यह अहसास दिलाएगा कि उन्हें भी आर्थिक आजादी मिल गई है। तब शायद अपने-अपने घर तिरंगा फहराकर प्रदेश के पांच लाख बुजुर्ग पेंशनर्स शिवराज का मन से शुक्रिया भी अदा करेंगे। और सावन के महीने में उनका मन जेठ की आग में जलने को मजबूर नहीं होगा। बिडंबनाओं और मजबूरियों ने बुजुर्ग पेंशनर्स को पहले ही जकड़ रखा है, ऐसे में सरकार और शिवराज का धारा 49 से मुक्ति दिलाकर प्रदेश के पांच लाख पेंशनर्स को साढ़े सात लाख कर्मचारियों के समान महंगाई भत्ता की दर देना हमेशा-हमेशा के लिए उनका दिल जीत लेगा। इसके लिए शिवराज को उतनी ही दृढ़ इच्छाशक्ति से फैसला लेना होगा, जिसका लोहा वह सैकड़ों जनहितैषी फैसले लेकर पहले ही मनवा चुके हैं।