Politico Web:सिंधिया आपको CM बनें दिखें तो चौंकिएगा नहीं
नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के लगातार सुर्खियों में बने रहने के कारण, उनके न चाहने पर भी प्रदेश भाजपा नेताओं की नींद जरूर उड़ने लगी है। कोई भी नेता यह बात सार्वजनिक तौर पर कह तो नहीं रहा है पर ज्योतिरादित्य सिंधिया का लगातार बढ़ता ग्राफ दूसरों की पलकों पर भारी जरूर पड़ रहा है।
मध्य प्रदेश भाजपा से जुड़े नेताओं के पिछले डेढ़ साल के करियर ग्राफ पर सरसरी निगाह डाली जाए तो सिंधिया ही एक नाम है जो लगातार नई ऊंचाइयां हासिल करता जा रहा है बाकी नाम यदि अपने ग्राफ को समानांतर भी बनाए रखने में सफल हो गए तो इसे ही बड़ी उपलब्धि माना जाना चाहिए। वहीं दूसरी ओर अनेक नेताओं का ग्राफ तो निरंतर नीचे जा रहा है।
कोई 3 महीने पहले मोदी की सरकार में महत्वपूर्ण मंत्री पद प्राप्त करना और फिर भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में स्थान पा जाना भाजपा के कुछ नेताओं को आसानी से हजम नहीं हो पा रहा है।
ज्योतिरादित्य सिंधिया के माध्यम से भाजपा के बारे में वह सारी चर्चाएं मिथक साबित हो गईं जिनके बारे में कहा जाता है कि आम तौर पर भाजपा में उन्हीं लोगों को प्रश्रय मिलता है या बड़ा पद मिलता है जो संघ की पृष्ठभूमि से पार्टी में आते हैं।
मार्च 2020 में कांग्रेस छोड़कर आए ज्योतिरादित्य सिंधिया का ग्राफ बीजेपी में रॉकेट की तेजी से निरंतर ऊपर जा रहा है। सिंधिया को बीजेपी में आए अभी 2 साल भी नहीं हुए हैं, लेकिन पार्टी ने उन्हें सरकार से लेकर संगठन तक में बड़ी जिम्मेदारी सौंप दी है।
ऐसे में सवाल उठता है कि संघ का उनके पास कोई बैकग्राउंड भी नहीं फिर भी इतनी तेजी से उनका ग्राफ क्यों बढ़ता जा रहा है। मध्य प्रदेश भाजपा के एक नेता का कहना है कि भारतीय जनता पार्टी के आधार स्तंभों में से एक रहीं राजमाता विजयाराजे सिंधिया का पौत्र होने का उन्हें सीधा लाभ मिल रहा है।
हो सकता है पहले की भाजपा में ऐसा चलता हो पर 2014 के बाद भाजपा में जो आमूलचूल परिवर्तन हुआ है और Performance को पूरी तवज्जो मिल रही है।
वैसे देखा जाए तो ज्योतिरादित्य सिंधिया को मोदी-2 में जो भी कुछ मिल रहा है वह अनायास नहीं है। उसके लिए उन्होंने बड़े sacrifice भी किए हैं। पहले कांग्रेस की कमलनाथ सरकार गिरा कर शिवराज सिंह चौहान को मध्यप्रदेश का चौथी बार मुख्यमंत्री बनवाया।
चाहते तो जब लोहा गर्म था तभी वे मुख्यमंत्री की कुर्सी भी मांग सकते थे पर उन्होंने राजनीतिक परिपक्वता दिखाते हुए धैर्य के साथ पहले खुद को भाजपा की रीति नीति में ढाला और सर्व स्वीकार्यता के लिए जरूरी जमीन तैयार की।
अपनी टीम की मदद से शिवराज सिंह चौहान को विधानसभा में आवश्यक बहुमत भी दिलवाया। इसके एवज में उन्हें बहुप्रतीक्षित राज्यसभा की टिकट मिली, फिर केंद्रीय कैबिनेट में जगह मिली और मनपसंद नागरिक उड्डयन मंत्रालय मिला जिसमें उनके पिताश्री माधवराव सिंधिया 1991 से 1993 तक अपना योगदान दे चुके थे, इसलिए मंत्रालय से उनका एक Emotional attachment भी माना जा सकता है।
इस मंत्रालय का कार्यभार संभालते ही उन्होंने वैमानिक गति से ही सहज काम करना चालू कर दिया।
मध्यप्रदेश में लंबे समय से लंबित पड़े हवाईमार्गों पर बाधित पड़ी वायु सेवा को चालू करवाया। उन्होंने मध्यप्रदेश ही नहीं, पूर्वोत्तर, पश्चिमी भारत और दक्षिण भारत के भी अनेक छोटे शहरों को भारतीय वायु मानचित्र में स्थान दिलाया।
सिंधिया राजघराने से जुड़े होने के कारण शुरूआती दौर में उनका “महाराजापन” आम कार्यकर्ता को काफी खटकता था। भाजपा से जुड़ते ही उन्होंने महाराज का चोला उतार फेंका और सामान्य जनमानस के बीच उनका “बेटा” बन कर पहुंच गए।
सिंधिया का नया रूप लोगों का बहुत भाया जिसमें वे लोगों के साथ सहजता से मिलते थे और बात करते थे, गांव की बुजुर्ग महिला के पैर छूते थे, बुजुर्गों से आशीर्वाद लेते थे, युवा लड़के-लड़कियों से उनके करियर के बारे में बात करते थे, कार्यकर्ताओं के घर जाते थे और परिजनों के बारे में पूछते थे, लोगों से हंस कर बात करते थे, कभी कभी हंसी ठिठोली भी कर लिया करते थे।
सिंधिया की मध्य प्रदेश में बढ़ती हैसियत का एक पैमाना यह भी है कि मध्य प्रदेश सरकार के मंत्रिमंडल में सिंधिया समर्थक मंत्रियों को बेहतर विभाग दिए गए हैं। दूसरी तरफ संगठन की बात करें तो मध्यप्रदेश में 402 की कार्यसमिति में 68 सदस्य सिंधिया खेमे के शामिल किए गए हैं।
ग्वालियर अंचल के 8 में से 6 जिलों का प्रभार सिंधिया समर्थक मंत्रियों को दिया गया है और स्वयं सिंधिया भी राष्ट्रीय कार्यसमिति के स्थाई सदस्य मनोनीत किए जा चुके हैं। भाजपा के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री शिव प्रकाश तथा प्रदेश प्रभारी मुरलीधर राव ने भी पार्टी और सरकार को संकेत दे दिए हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया की बात को तवज्जो दी जानी चाहिए।
भाजपा की राजनीतिक कार्यशैली को समझने वाले पत्रकारों का मानना है कि ज्योतिरादित्य को महत्व देकर पार्टी आने वाले पांच राज्यों के चुनावों पर अपनी निगाह बनाए हुए हैं । पार्टी चाहती है कि विपक्षी दलों को छोड़ने के मूड में बैठे उतावले नेताओं को संकेत दिया जाए कि भाजपा में आने पर उनको यथोचित मान सम्मान व पद दिया जाएगा।
इसका एक उदाहरण असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्व शर्मा भी है जिन्होंने भाजपा में आने के बाद 5 साल धैर्य के साथ प्रतीक्षा की और अब जाकर असम के मुख्यमंत्री पद मिला वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया को मात्र 18 महीने के अंदर एक के बाद एक 4 पदोन्नतियां प्राप्त हुईं जिससे fence sitters को लुभाने के लिए पार्टी ने स्पष्ट संदेश दे दिया है।
वैसे अंदर की खबर तो यही है कि भाजपा के टार्गेट पर राजस्थान और छत्तीसगढ़ के वे नेता हैं जिन्हें उनकी पुरानी पार्टी में मनचाही मुराद नहीं मिल पा रही है। दोनों ही प्रदेशों के संबद्ध नेताओं के साथ सिंधिया के प्रगाढ़ संबंध रहे हैं। सिंधिया के माध्यम से भाजपा राजस्थान या/और छत्तीसगढ़ में तोड़फोड़ कर कुछ भी राजनीतिक फायदे उठा पाती है तो उसका सिंधिया पर दांव खेलने सही सिद्ध हो जाएगा।
सिंधिया ने भी भारतीय जनता पार्टी में आने के बाद खुद को गुटबाजी से अलग रखकर सर्वमान्य नेता की जो छवि बनाई है, वह भी भाजपा के लिए दीर्घकाल में बहुत ही फायदेमंद साबित होगी। सिंधिया ने भी एक मंझे हुए खिलाड़ी की तरह बैटिंग करते हुए हर गुट की पिच पर बेहतरीन प्रदर्शन किया।
नागरिक उड्डयन मंत्री बनने के बाद पहली बार इंदौर आगमन पर सिंधिया का जिस तरह से सभी गुटों ने समवेत सुर में भावभीना स्वागत किया वह इंदौर के इतिहास में अप्रतिम था। सिंधिया का प्रयास भी यही है कि वे प्रदेश के हर क्षेत्र का दौरा कर के वहां के हालात खुद अपनी आंखों से देखें और कार्यकर्ताओं से सीधा व जीवंत संपर्क बनाएं।
क्षेत्रीय नेताओं के घर जाकर परिजनों से मिलें, घर का खाना खाएं। उनका यह investment आने वाले समय में मनमाफिक फल देगा। वे भाजपा के किसी गुट में नहीं है पर हर गुट उन्हें अपने साथ मानता है। सिंधिया की यही पूंजीगत रणनीति प्रदेश के स्वनामधन्य नेताओं की आंखों से नींद उड़ा रही है।
जिनके पास सत्ता है वे उसके जाने की आशंका से बेचैन हैं और बाकी जो छींका टूटने का इंतजार कर रहे हैं, वे हाथ से मलाई फिसलती देखकर कुछ न कर सकने की स्थिति में होने से बेहद बेचैन हो रहे हैं।
नोट कर लीजिए, नवंबर 2023 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले या बाद में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर ज्योतिरादित्य सिंधिया आपको दिखें तो चौंकिएगा नहीं।