Artemis-1 : आज शाम मून मिशन की लॉन्चिंग, इंसान को फिर चांद पर भेजने की टेस्टिंग  

6 बजकर 3 मिनट पर रवाना होगा इंसान रहित टेस्ट फ्लाइट

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Artemis-1 : आज शाम मून मिशन की लॉन्चिंग, इंसान को फिर चांद पर भेजने की टेस्टिंग  

Washington : मून मिशन ‘आर्टेमिस’ के जरिए अमेरिकी एजेंसी ‘नासा’ इंसानों को फिर चांद पर भेजने की तैयारी कर रही है। इस दिशा में पहला कदम 29 अगस्त (सोमवार) को उठाया जाएगा। मिशन की पहली टेस्ट फ्लाइट आर्टेमिस-1 (Artemis-1) शाम 6.3 मिनट पर लॉन्च होगी। NASA के मुताबिक, नया स्पेस लॉन्च सिस्टम (SLS) मेगा रॉकेट और ओरियन क्रू कैप्सूल चंद्रमा पर पहुंचेंगे।

क्रू-कैप्सूल में एस्ट्रोनॉट्स रहते हैं, पर इस बार यह खाली रहेगा। ये मिशन 6 हफ्तों का है, जिसके बाद 10 अक्टूबर को कैप्सूल धरती पर वापस आ जाएगा। आर्टेमिस-1 एक मानवरहित मिशन है। पहली फ्लाइट के साथ वैज्ञानिकों का लक्ष्य यह जानना है कि अंतरिक्ष यात्रियों के लिए चांद पर सही हालात हैं या नहीं। साथ ही क्या एस्ट्रोनॉट्स चांद पर जाने के बाद पृथ्वी पर सुरक्षित लौट सकेंगे या नहीं।

आर्टेमिस मिशन

आर्टेमिस-1 का रॉकेट ‘हेवी लिफ्ट’ है और इसमें अब तक के रॉकेट्स के मुकाबले सबसे शक्तिशाली इंजन लगे हैं। यह चंद्रमा तक जाएगा, कुछ छोटे सैटेलाइट्स को उसके ऑर्बिट (कक्षा) में छोड़ेगा और फिर खुद ऑर्बिट में ही स्थापित हो जाएगा। कुछ सालों बाद आर्टेमिस-2 को लॉन्च करने की प्लानिंग है। इसमें कुछ एस्ट्रोनॉट्स भी जाएंगे, लेकिन वे चांद पर कदम नहीं रखेंगे। वे सिर्फ चांद के ऑर्बिट में घूमकर वापस आ जाएंगे। हालांकि इसका टाइम पीरियड ज्यादा होगा। इसके बाद फाइनल मिशन आर्टेमिस-3 को रवाना किया जाएगा। इसमें जाने वाले अंतरिक्ष यात्री चांद की सतह पर उतरेंगे। यह मिशन को 2050 के आसपास लॉन्च किया जाएगा। पहली बार महिलाएं भी ह्यूमन मून मिशन का हिस्सा बनेंगी। बर्न्स के मुताबिक, पर्सन ऑफ कलर (श्वेत से अलग नस्ल का व्यक्ति) भी क्रू मेंबर होगा। सभी लोग चंद्रमा के साउथ पोल में जाकर पानी और बर्फ की खोज करेंगे।

अब अमेरिका आर्टेमिस मिशन के जरिए रूस या चीन को मात नहीं देना चाहता। नासा का उद्देश्य पृथ्वी के बाहर स्थित चीजों को अच्छी तरह एक्सप्लोर करना है। चांद पर जाकर वैज्ञानिक वहां की बर्फ और मिट्टी से ईंधन, खाना और इमारतें बनाने की कोशिश करना चाहते हैं। अपोलो मिशन की परिकल्पना अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जे एफ केनेडी ने सोवियत संघ को मात देने के लिए की थी। उनका लक्ष्य सिर्फ अंतरिक्ष यात्रा नहीं था, बल्कि साइंस एंड टेक्नोलॉजी की फील्ड में अमेरिका को दुनिया में पहले स्थान पर स्थापित करना था। हालांकि, अब करीब 50 साल बाद माहौल अलग है।