मोदी को डिगा पाएगी राहुल की भारत जोड़ो यात्रा …!
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा सितंबर महीने में शुरू हो रही है। सितंबर के महीने में ही 1990 में आडवाणी की रथ यात्रा शुरू हुई थी। आडवाणी की यात्रा के बाद भाजपा का ग्राफ जमीन से आसमान को छूने की तरफ बढ़ा था। जिस राम मंदिर को लेकर आडवाणी ने यात्रा शुरू की थी, वह राममंदिर भी 2024 से पहले बनकर तैयार हो जाएगा। ऐसे में आडवाणी की यात्रा के करीब 32 साल बाद शुरू हो रही राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा क्या कांग्रेस के लिए उसी तरह फलदायी साबित हो सकेगी, जैसी आडवाणी की यात्रा भाजपा के लिए फलदायी साबित हुई थी। मुद्दे कितने भी तलाशे जाएं, लेकिन असल में भारत जोड़ो यात्रा का मूल उद्देश्य तो केंद्र में मोदी को अपदस्थ कर सत्ता के सिंहासन पर काबिज होना ही है।
पर जिस राम मंदिर के नाम ने भाजपा को 2 सांसदों से बढ़ाकर 300 पार करा दिया और दस साल एकतरफा राज करने का अवसर दे दिया। तो अब क्या राम मंदिर बनने के बाद भाजपा और वैश्विक नेता के बतौर खुद की और देश की अलग पहचान का असर दिखाने वाले मोदी को सत्ता से डिगाने का दम भारत जोड़ो यात्रा भर पाएगी? सिर्फ और सिर्फ ऐसे ही सवालों का उत्तर ढूंढने की कोशिश यात्रा के दरमियान भी दिखाई देने वाला है। देखा यह भी जाएगा कि भारत की जमीन से राहुल को जोड़ने में यात्रा कितनी सफल हो पाती है। क्योंकि देश-दुनिया की निगाहें राहुल की तरफ होगीं। ऐसे में आटे को लीटर में मापने जैसे बयानों के लिए कांग्रेस कितनी भी सफाई दे कि आटा से पहले लीटर में मापने वाली वस्तुओं का जिक्र हो रहा था, पर देश-दुनिया इसे कांग्रेस की नजर से देखने की सहानुभूति कतई नहीं दिखाएगी। इसके बाद हालांकि 2024 तक लंबा वक्त है, लेकिन 2023 में राज्यों में होने वाले चुनाव के परिणामों का विश्लेषण भी इस यात्रा से जोड़कर होगा, तो गुजरात-हिमाचल तो ठीक बाद ही लिटमस टेस्ट की तरह फैसला सुना देंगे। ऐसे में 2024 के पहले ही यात्रा का प्रभाव दिख जाएगा। तब जाकर 2024 में मोदी की सेहत पर असर के आकलन का सवाल पैदा होगा?
सात सितंबर को शुरू हो रही ‘भारत जोड़ो यात्रा’ में भारत के सामने मौजूद गंभीर विषयों पर देशवासियों के साथ सीधा संवाद किया जाएगा। यात्रा 150 दिनों में कन्याकुमारी से कश्मीर तक 3,500 किमी. का रास्ता तय करेगी।राहुल गांधी देश भर में लाखों लोगों के साथ बातचीत करेंगे। कांग्रेस का मानना है कि आज के समय में इस यात्रा की बेहद ही आवश्यकता थी। 2014 में प्रधानमंत्री मोदी ने सभी भारतीयों को समृद्धि का सपना दिखाया था। इसके विपरीत उन्होंने पिछले 8 सालों में महंगाई, बेरोजगारी, सामाजिक तनाव और ध्वस्त होती संस्थाओं का एक भयानक अनुभव दिया है। ऐसे में भारत जोड़ो यात्रा तीन प्रमुख समस्याओं पर केन्द्रित है।
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इनमें पहली आर्थिक असमानताएं हैं, दूसरी सामाजिक भेदभाव है और तीसरी राजनीतिक तौर पर ज़रूरत से अधिक केंद्रीकरण हैं। वहीं इस यात्रा के चार मुख्य उद्देश्य हैं। पहला- सभी भारतीयों के बीच एकता कायम करना जो महात्मा गांधी के नेतृत्व वाले हमारे स्वतंत्रता आंदोलन और संविधान में प्रतिबिंबित मूल्यों में विश्वास रखते हैं। दूसरा, आर्थिक विषमताओं, सामाजिक विभाजन और अत्यधिक राजनीतिक केंद्रीकरण से बुरी तरह प्रभावित करोड़ों भारतीयों की आवाज़ उठाना। तीसरा, वर्तमान स्थिति के संदर्भ में लोगों के साथ मुद्दों और उनके संभावित समाधानों पर चर्चा करना। चौथा, ‘अनेकता में एकता’ और ‘सर्व धर्म समभाव’ के सिद्धांतों के अनुरूप सामाजिक समरसता को मजबूत करना। सामाजिक भेदभाव में भी संदेश जो जा रहा है, वह भी अल्पसंखयक-बहुसंख्यक का है। ऐसे में पार्टी एक तरह से फिर संप्रदाय विशेष तक सिमटी नजर आएगी।
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यात्रा 7 सितंबर को कन्याकुमारी से शुरू होकर जम्मू कश्मीर तक पहुंचते-पहुंचते 12 राज्यों और 2 केंद्र शासित प्रदेशों से होकर गुजरेगी। तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर। खैर यदि यात्रा का असर अगर सकारात्मक दिखा तो शायद राहुल गांधी कांग्रेस और देश में सर्वमान्य नेता दिखने लगेंगे। ऐसे में यात्रा का सबसे बड़ा असर कांग्रेस छोड़कर जा रहे नेताओं को वापस पार्टी से जुड़ने के रूप में दिखने लगेगा। तो भारत जोड़ो यात्रा की सफलता कांग्रेस जोड़ो अभियान बनकर फलित होगी।
और असर अगर अनुकूल नहीं रहा तो शायद राहुल गांधी खुद ही राजनीति से मोहभंग हो उसी तरह अलग-थलग हो जाएंगे, जिस तरह वह फिलहाल राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से पलायन करते दिख रहे हैं। चूंकि यात्रा केंद्र सरकार के विषयों पर केंद्रित है, इसलिए राज्यों के चुनाव शायद ही यात्रा के असर के दायरे में आएं। पर तीन प्रमुख समस्याओं और चार प्रमुख उद्देश्यों पर केंद्रित यह यात्रा कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संजीवनी प्रदान करेगी, यह परिणाम तो अपेक्षित है। पर इस बात में संशय है कि राहुल की भारत जोड़ो यात्रा मोदी को डिगा पाएगी।