Jhuth Bole Kaha Kaate: मदरसों में सब ठीक, तो फिर बवाल क्यों

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उत्तर प्रदेश में गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के सर्वे को लेकर मुस्लिम संगठनों और नेताओं में खलबली है। योगी सरकार के इस फ़ैसले के खिलाफ 24 सितंबर को दारूल उलूम देवबंद ने बैठक बुलाई है। तीन दिन पहले जमीयत उलेमा-ए-हिंद की हंगामी बैठक में विरोध जताते हुए कहा गया कि मदरसे साम्प्रदायिक लोगों की आंख में खटकते हैं। यह सब तब है, जब देवबंद और असम सहित अन्य स्थानों से कई आतंकियों की गिरफ़्तारी मदरसों से हुई है और असम में संदिग्ध मदरसों पर बुलडोजर चल रहे।

Jhuth Bole Kaha Kaate: मदरसों में सब ठीक, तो फिर बवाल क्यों

असदुद्दीन ओवैसी जैसे नेता योगी सरकार के फैसले को मुसलमानों को परेशान करने वाला तथा मिनी एनआरसी करार दे रहे हैं। जबकि, उप्र के अल्पसंख्यक राज्य मंत्री दानिश अंसारी का कहना है कि मदरसों का सर्वे मार्डन एजुकेशन के लिये बेहद अहम कदम है। सर्वे से मदरसों का पूरा डाटा सरकार के पास होगा, जिससे भविष्य में बनायी जाने वाली योजनाओं को लागू करने में आसानी होगी।

सर्वे में हर गैर मान्यता प्राप्त मदरसे को 11 सवालों के जवाब देने हैं। पहला, मदरसे का पूरा नाम। दूसरा मदरसे का संचालन कौन सी संस्था करती है? तीसरा, मदरसा कब बना था? चौथा, मदरसा जहां बना है, वो संपत्ति निजी है, या किराए पर ली गई है? पांचवा, मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों को मूलभूत सुविधाएं मिल रही हैं, या नहीं? छठा, मदरसे में पढ़ने वाले बच्चों की संख्या कितनी है? सातवां, मदरसे में शिक्षकों की कुल संख्या कितनी है? आठवां, मदरसे में किस तरह का पाठ्यक्रम रखा गया है? 9वां, इन मदरसों की फंडिंग कहां से हो रही है। 10वां, मदरसे में जो बच्चे पढ़ने आ रहे हैं, वो केवल मदरसे में ही पढ़ते हैं, या फिर किसी और स्कूल से भी पढ़ाई करते हैं। 11वां, क्या मदरसे का संबंध किसी एनजीओ या किसी अन्य संस्था है?

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दरअसल, भारत-नेपाल सीमा से लगे सीमावर्ती जिलों और पश्चिमी उप्र में जिस तेजी से अवैध मदरसे खुले हैं वह लंबे समय से उत्तर प्रदेश सरकार की परेशानी का कारण रहे हैं। गोरखपुर का सांसद रहते भी योगी आदित्यनाथ भारत-नेपाल सीमावर्ती जिलों में खुलने वाले अवैध मदरसों को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। बीते अगस्त माह में यूपी एटीएस ने स्वतंत्रता दिवस से पहले जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी हबीबुल इस्लाम उर्फ सैफुल्लाह को कानपुर से गिरफ्तार किया था। जांच में सैफुल्लाह का लिंक इटावा के मदरसा अरबिया कुरानियां से मिला, जहां से उसने मार्च 2020 तक हिफ्ज की पढ़ाई की थी। सहारनपुर से आतंकी नदीम की गिरफ्तारी हुई थी, उसी की निशानदेही पर सैफुल्लाह पकड़ा गया।

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पुलिस जांच में सामने आया कि सैफुल्लाह आईएसआई के इशारे पर मदरसे में रहकर यूपी-उत्तराखंड का नया मॉड्यूल तैयार कर बड़ी घटना को अंजाम देने की साजिश रच रहा था। सहारनपुर का दारुल उलूम देवबंद इस्लामिक दीनी तालीम के लिये दुनिया भर में विख्यात है। दारुल उलूम इस्लामिक शिक्षा का बड़ा केंद्र है। इसके अलावा भी कई मदरसे यहां दीनी तालीम देते हैं, लेकिन बीते एक दशक में देवबंद के मदरसे आतंकी तैयार करने वाले केंद्र के रूप में कुख्यात हो चुके हैं।

झूठ बोले कौआ काटेः

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान का मानना है कि मदरसे नफरत की जड़ हैं। आरिफ मोहम्मद खान के अनुसार, ‘सवाल यह है कि क्या हमारे बच्चों को ईशनिंदा करने वालों का सर कलम करना पढ़ाया जा रहा है। मुस्लिम कानून कुरान से नहीं आया है, वह किसी इंसान ने लिखा है जिसमें सर कलम करने का कानून है और यह कानून बच्चों को मदरसा में पढ़ाया जा रहा है। मदरसों में क्या सिखाया जा रहा है इसकी जांच होनी चाहिए।’ उन्होंने ये प्रतिक्रिया राजस्थान के उदयपुर में कन्हैया लाल की बर्बरता से की गई हत्या पर दी थी।

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पिछले दिनों, एक मीडिया कार्यक्रम में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि मदरसा शब्द अब विलुप्त होना चाहिए और स्कूलों में सभी के लिए सामान्य शिक्षा पर जोर दिया जाना चाहिए। उन्होंने असम के सभी मदरसों को भंग करने और उन्हें सामान्य स्कूलों में बदलने के अपनी सरकार के फैसले को सही बताया। यह भी कहा कि हाईकोर्ट ने सरकार के फैसले को उचित ठहराया है।

सीएम बिस्वा सरमा ने कहा कि जब तक मदरसा शब्द रहेगा, तब तक बच्चे डॉक्टर और इंजीनियर बनने के बारे में नहीं सोच पाएंगे। उन्होंने कहा कि अपने बच्चों को कुरान पढ़ाएं, लेकिन घर पर। असम सरकार का साफ कहना है कि सरकारी पैसे से बच्चों को कुरान नहीं पढ़ाई जा सकती और अगर सरकारी खर्चे पर कुरान पढ़ाई जा सकती है तो फिर गीता या बाइबल क्यों नहीं पढ़ाई जा सकती।

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असम में कई अवैध मदरसों पर बुलडोजर चल गए। इन मदरसों के संबंध वहां गिरफ्तार किए गए, कई संदिग्ध आतंकियों से थे। ये आतंकी, मस्जिदों एवं मदरसों में इमाम या मौलवी के तौर पर काम कर रहे थे। आईबी के इनपुट के अनुसार आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा, हिज्बुल मुजाहिदीन और इंडियन मुजाहिदीन की पश्चिमी उप्र में गहरी पैठ बनी हुई है। इनके कई स्लीपिंग मॉड्यूल मेरठ, देवबंद, शामली, गाजियाबाद, बागपत, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर, अमरोहा, संभल और रामपुर में सक्रिय हैं। अब तक कई आईएसआई एजेंट और आतंकवादी इन जिलों से गिरफ्तार किए जा चुके हैं।

बोले तो, प्रतिबंधित स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी सिमी की शुरुआत 25 अप्रैल 1977 को अलीगढ़ से हुई। इसने देश भर के मदरसों में पैठ बनाई और दीनी तालीम की आड़ में आतंक का पाठ पढ़ाना शुरू किया। धीरे-धीरे एक प्रकार से सिमी के लिए मदरसों का रोल रिक्रूटमेंट सेल की तरह से हो गया।

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के मुताबिक देश में 24 हजार मदरसे हैं। इनमें से 4 हजार 878 मदरसे गैर मान्यता प्राप्त हैं। जबकि, गैर सरकारी आंकड़े के अनुसार जमीयत उलेमा-ए-हिंद ही देश भर में 20 हजार से ज्यादा मदरसे संचालित कर रहा है। इसी प्रकार, सरकारी आंकड़ों में उत्तर प्रदेश में कुल 16,461 मदरसे हैं, जिनमें से 558 मदरसों को सरकारी सहायता मिलती है। हालांकि गैर सरकारी आंकड़ों के अनुसार, प्रदेश में 40 हजार से ज्यादा गैर मान्यता प्राप्त मदरसे संचालित हो रहे हैं।

केवल देवबंद में 100 से ज्यादा मदरसे संचालित हो रहे हैं, जिनमें कई गैर मान्यता प्राप्त हैं। सरकार के पास इसका कोई रिकॉर्ड मौजूद नहीं है कि अवैध तरीके से चल रहे मदरसों की फंडिंग कौन कर रहा है? मदरसों में कौन सा पाठ्यक्रम संचालित किया जा रहा है? मदरसों में बच्चों के साथ होने वाले बुरे सुलूक की शिकायतें भी आती रही हैं।

करीब एक साल पहले अलीगढ़ के एक मदरसे का वीडियो वायरल हुआ था। इस वीडियो में मदरसे के बच्चों को चेन से बांधकर रखा गया था। ये वीडियो एक ऐसे मदरसे का था, जो गैर मान्यता प्राप्त था और अवैध तरीके से बनाया गया था। हाल ही में एक टीवी चैनल की टीम ने आजमगढ़ के सरकारी सहायता प्राप्त मदरसा इस्लामिया जमीअतुल कुरैश के औचक निरीक्षण में पाया कि एक बड़े से हॉल में 6 कक्षाएं एक साथ चल रही थी। कक्षाओं को पर्दे लगा कर अलग किया गया था। हिंदी, इंगलिश पोयम की कौन कहे कोई बच्चा न मुख्यमंत्री का नाम बता पाया, न ही कोई राज्यपाल का।

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उप्र के अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री दानिश आजाद अंसारी का कहना है कि योगी सरकार मदरसों का कायाकल्प करने पर जोर दे रही है। बच्चों को आधुनिक शिक्षा मिल सके इसके लिए मदरसा बोर्ड एक ऐप भी लॉन्च करेगा। अंसारी के अनुसार, सरकार चाहती है कि मदरसों के बच्चे भी देश भक्ति से भरे हों इसलिए उन्हें महापुरुषों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की जीवन गाथाएं भी पढ़ाई जाएंगी। अल्पसंख्यक कल्याण राज्य मंत्री ने कहा कि सरकार मदरसों में दीनी तालीम देने वाले 5339 पदों को खत्म करेगी। प्रदेश सरकार ने इस साल से राज्य के मदरसों में राष्ट्रगान भी अनिवार्य कर दिया है। जबकि, 2017 में ही उप्र के मदरसों में एनसीईआरटी की किताबें पढ़ाए जाने का फैसला योगी सरकार ने ले लिया था। हालांकि, देवबंदी उलेमाओं ने इसका विरोध किया था।

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जमीयत उलेमा-ए-हिंद की हालिया  बैठक में दारुल उलूम देवबंद, नदवतुल उलेमा लखनऊ और मजाहिर उलूम सहारनपुर समेत उत्तर प्रदेश के दो सौ से अधिक मदरसों के संचालक एवं प्रतिनिधियों ने भाग लिया। जमीयत के मुखिया मौलाना महमूद मदनी ने आरोप लगाया कि मदरसों के लोगों को देश की व्यवस्था का पालन न करने वाला बताना वास्तव में द्वेष पर आधारित है, इसका उचित और प्रभावी जवाब देना आवश्यक है।


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झूठ बोले कौआ काटे, उप्र में योगी आदित्यनाथ सरकार मदरसों के सुदृढ़ीकरण के साथ अवैध तरीके से संचालित हो रहे मदरसों पर नकेल कसने की तैयारी में है। सरकार का मानना है कि देश की सुरक्षा के लिये भी मदरसों के संचालकों और उनके फंडिंग तंत्र पर निगाह रखना जरूरी है। इसलिए, किसी को हायतौबा मचाने की जरूरत नहीं होनी चाहिए।

और ये भी गजबः

सरकारी खर्चे पर धार्मिक शिक्षा देने का काम, लगभग सभी सरकारें करती हैं। भारत का 75 वर्षों का इतिहास धार्मिक तुष्टिकरण के ऐसी ही उदाहरणों से भरा पड़ा है। संविधान के अनुच्छेद 30 के अनुसार, भारत के अल्पसंख्यकों को ये अधिकार है कि वो अपने खुद के भाषाई और शैक्षिक संस्थानों की स्थापना कर सकते हैं और सरकार से अनुदान भी मांग सकते हैं। हालांकि, ऐसा नहीं है कि मदरसों में सिर्फ धार्मिक शिक्षा दी जाती है, इनमें गणित और विज्ञान जैसे आधुनिक विषय भी पढ़ाए जाते हैं। लेकिन मूल रूप से इनका उद्देश्य बच्चों को धर्म के रास्ते पर ले जाना ही होता है।

यह तुष्टिकरण नीति ही है कि जब, जम्मू कश्मीर में वैष्णो देवी यूनिवर्सिटी को 7 करोड़ रुपए के अनुदान का आधा ही जारी हो पाता है, तब राजौरी की बाबा गुलाम शाह बादशाह यूनिवर्सिटी और कश्मीर के अवं​तीपुरा में स्थित इस्लामिक यूनिवर्सिटी के लिए बीस बीस करोड़ रुपये का अनुदान जारी हो जाता है। यही नहीं, इन दोनों विश्वविद्यालयों को 25-25 करोड़ रुपये का अतिरिक्त अनुदान भी मिल जाता है।

राष्ट्रीय सांख्यिकीय कार्यालय के आंकड़ों के मुताबिक भारत के सिर्फ 48 प्रतिशत मुस्लिम छात्र ही 12वीं कक्षा तक की पढ़ाई कर पाते हैं, जबकि 12वीं कक्षा से आगे की पढ़ाई सिर्फ 14 प्रतिशत मुस्लिम छात्रों को ही नसीब हो पाती है।

जबकि, पीएचडी की पढ़ाई करने वाले छात्रों द्वारा की गई थीसिस का डिजिटाइजेशन करने वाली संस्था शोध गंगा के आंकड़ों के मुताबिक मदरसों में पढ़ने वाले सिर्फ 2 प्रतिशत छात्र ही भविष्य में उच्च शिक्षा हासिल करना चाहते हैं। दूसरी ओर, 42 प्रतिशत छात्रों का उद्देश्य भविष्य में धर्म का प्रचार करना होता है। 16 प्रतिशत छात्र शिक्षक के रूप में धर्म की शिक्षा देना चाहते हैं। 8 प्रतिशत छात्र इस्लाम की सेवा करना चाहते हैं, जबकि 30 प्रतिशत का उद्देश्य मदरसों से शिक्षा हासिल करने के बाद सामाजिक कार्य करना होता है, और 2 प्रतिशत छात्र भविष्य में धर्म गुरू बनना चाहते हैं।

अर्थात, मदरसों से पढ़ने के बाद विज्ञान का या टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में सफल होने की इच्छा नाम मात्र के छात्रों की होती है। स्पष्ट है कि इसके लिए छात्र नहीं, बल्कि वो व्यवस्था दोषी है जो धर्म की आड़ में छात्रों को आधुनिक शिक्षा से वंचित कर देती है।