Unique Personality : स्टॉकहोम के उस कैफ़े में दुनिया के नए अनुभव से मुलाकात!

हमीदुल्लाह सिर्फ भाषाएं ही नहीं जानते, उनमें संस्कार और ज्ञान भी बसा

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Unique Personality

Unique Personality : स्टॉकहोम के उस कैफ़े में दुनिया के नए अनुभव से मुलाकात!

USA से चित्रा रंगनाथन शर्मा की रिपोर्ट

Stockholm : आज मैं अपने काम से USA से स्वीडन पहुंची। यात्रा की थकान और जेटलेग के कारण रात को सो नहीं सकी। ऐसे में ठीक से खाना भी नहीं खाया गया। लेकिन, रात को जब भूख लगी तो एयरपोर्ट के टर्मिनल लाउंज के कैफ़े में चली आई। यहां Sky Cafe चलाने वाले एक व्यक्ति से मुलाकात हुई।

इनका नाम है हमीदुल्लाह फरजानी और उम्र है 30 साल। इनके माता-पिता अफगानी हैं, लेकिन की पैदाइश इटली में हुई। शुरुआती पढ़ाई नार्वे में हुई उसके बाद पाकिस्तान और नार्वे में। फिर कॉलेज की पढ़ाई के लिए ये फ्रांस की आ गए और वहां की यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की। यह तो हुआ इनका परिचय।

इनकी खासियत यह है कि इन्हें 15 भाषाएं आती है। अपने कैफ़े में जिस देश का गेस्ट देखते हैं, उसके देश की भाषा में बात करते हैं। भाषा ज्ञान भी कामचलाऊ नहीं, बल्कि इन्हें पारंगत माना जा सकता है। मैं हिंदुस्तानी हूं और उनसे हिंदी में ही बात कर रही थी, फिर भी उन्होंने मुझे हिंदी और उर्दू का फर्क समझाया।

प्रेमचंद और अल्लामा इकबाल के बारे में बात की। बताया कि हिंदी में शब्द और उर्दू में अल्फ़ाज़ होते हैं। हिंदी में पति और उर्दू में शौहर होता है। हिंदी में आकाश और उर्दू में आसमान, हिंदी में राज और उर्दू में हुक़ूमत। बड़ी देर तक वे इस तरह के शब्द बोलते रहे। उसके बाद कहा कि हिन्दी में जीभ और पेट ही से बोला जाता है। लेकिन, उर्दू में जीभ, पेट, गला, नाक से उच्चारण निकलते हैं!

मूलतः मैं अमेरिकी नागरिक हूं और अपने काम के सिलसिले में मैं दुनियाभर में घूमती रहती हूं। कई लोगों से मिलना जुलना होता है, पर हमीदुल्लाह से मिलना अपने आप में अनूठा अनुभव था। कहा जा सकता है कि ये वो शख्सियत हैं, जिनसे मिलकर मुझे क्या किसी को भी बहुत ही अच्छा लगेगा।

किसी नए देश में किसी अपने से मिलने जैसा। उनके जैसा भाषा प्रेमी मिल जाए तो फिर क्या बात है। वे दिन में Senior homes में वृद्धों के साथ भाषाओं के जरिए अपना 5 घंटे का समय बिताते हैं। उनसे बात करते हैं और उनकी मदद भी करते हैं। वे रात की शिफ्ट में एयरपोर्ट पर अपना कैफ़े चलाते हैं। आश्चर्य इस बात का कि दुनिया में आज भी ऐसे व्यक्ति दुनिया में हैं, जिन्हें उनका जुनून ही उनके मुकाम तक पहुंचाता है।

अब मैं अपने बारे में बता दूं। मैं USA में वैज्ञानिक हूँ और काम के सिलसिले में इन दिनों स्वीडन आई हूँ। यहाँ देर रात पहुँचने की वजह से एयरपोर्ट स्थित होटल में ठहर गई। जेटलेग की वजह से ठीक से सो नहीं सकी। जब भूख लगी तो एयरपोर्ट के Sky Cafe में खाना खाने चली गई। देर रात तक इस एकमात्र Cafe के खुले रहने से प्रवासियों को बहुत सुविधा होती है।

हमीदुल्लाह English literature में BS करने के बाद MS Marketing & Communications हैं। उनके पास इटली की नागरिकता है। उन्होंने मुझे अपना पासपोर्ट भी दिखाया। वे दिनभर सेवा और देर रात तक काम करते हैं। उनकी कोई सेविंग नहीं है और न वे ऐसा करना चाहते हैं। मुझसे बोले ‘रोटी कपड़ा मकान ही सब कुछ नहीं होता!’ इस सोच से तो मैं अचंभित और प्रेरित हो गई। वे उतना कमाते हैं जिससे पत्नी और दो बेटियों का काम चल सके।

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ये मेरे लिए जीवन का एक नया अनुभव था। मुझे हमीदुल्लाह से मिलकर और उनकी बातें सुनकर लगा कि ये उन लोगों में हैं, जिनका जीवन सभी को सिखाने के लिए आतुर है। यही कारण है कि हर समय आपके सामने कुछ ऐसा आता है, जो आपके सोच की विचारधारा को बदल देता है! यदि बदल नहीं पाता, तो इस दिशा में सोचने को तो विवश कर ही देता है।    सवाल यह है, कि हम उससे कितना सीख सकते हैं और सीख पाते हैं।

मन का हो, तो ही सीखते हैं या उस सीख में रुचि लेते हैं। हमारी जिज्ञासा को हमेशा दबाकर या बांधकर चलते हैं। अगर उसे उन्मुक्त कर दें, तो शायद बहुत कुछ सीख सकते हैं। जो मिले उसे अच्छे-बुरे, फायदा-नुकसान और सही-गलत में बांटकर समय बर्बाद करते हैं। कई बार सफर में इतने अच्छे लोग जब मिल जाते हैं, तो थोड़ा मंथन भी हो जाता है कि अपने जीवन में ऐसा कुछ खास क्यों नहीं है, जो दूसरों के जीवन में है।

किसी अजनबी की बात मान लेना आसान नहीं होता। लेकिन, इस व्यक्ति से बात करने के बाद समझ में आया कि कुछ लोगों का जीवन कितना सुलझा हुआ और पारदर्शी होता है। इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं। हमीदुल्लाह से मिलने के बाद उसकी इंसानियत में तो मैं बहुत पीछे हो गई। लगा कि आगे बढ़ने और लोगों के दिलों में बसे रहने के लिए अभी बहुत कुछ करना है।

आखिर क्या कारण है कि लोग अपनी निजी पूंजी छोड़कर समाजसेवा में युवा अवस्था से लग जाते हैं! आखिर ऐसे लोगों में कुछ तो बात है कि उन्हें ऊंच नीच वाली सोच नहीं आती। उन्होंने मुझसे करीब आधे घंटे सिर्फ हिन्दी में बातचीत की। रात के एक बजे और ज्यादा यात्री और टर्मिनल के इस कैफे में गेस्ट नहीं थे, वर्ना शायद इतनी बात नहीं हो पाती।