आइये जानते है शंकराचार्य के चयन की प्रक्रिया क्या है ?

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शंकराचार्य

आइये जानते है शंकराचार्य के चयन की प्रक्रिया क्या है ?

शंकराचार्य आम तौर पर अद्वैत परम्परा के मठों के मुखिया के लिये प्रयोग की जाने वाली उपाधि है। शंकराचार्य हिन्दू धर्म में सर्वोच्च धर्म गुरु का पद है जो कि बौद्ध धर्म में दलाईलामा एवं ईसाई धर्म में पोप के समकक्ष है। इस पद की परम्परा आदि गुरु शंकराचार्य ने आरम्भ की। यह उपाधि आदि शंकराचार्य, जो कि एक हिन्दू दार्शनिक एवं धर्मगुरु थे एवं जिन्हें हिन्दुत्व के सबसे महान प्रतिनिधियों में से एक के तौर पर जाना जाता है, के नाम पर है।

ईसा से पूर्व आठवीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने भारत की चारों दिशाओं में एक-एक यानी चार मठों की स्थापना की थी. इन चारों मठों में उत्तर के बद्रिकाश्रम का ज्योर्तिमठ, दक्षिण का शृंगेरी मठ, पूर्व में जगन्नाथपुरी का गोवर्धन मठ और पश्चिम में द्वारका का शारदा मठ शामिल है. मठ के प्रमुख को मठाधीश कहा जाता है. मठाधीश को ही शंकराचार्य की उपाधी दी जाती है.

शंकराचार्य बनने के नियम और प्रक्रिया

आदि शंकराचार्य द्वारा रचित ग्रंथ मठाम्नाय में चारों मठों की व्यवस्था के नियम, सिद्धांत और शंकराचार्य की उपाधि ग्रहण करने के नियम लिखे हैं. मठाम्नाय को महानुशासन भी कहते हैं. इस ग्रंथ में 73 श्लोक हैं.

मठाम्नाय के अनुसार, शंकराचार्य की उपाधि ग्रहण करने के लिए पात्र का संन्यासी और ब्राह्मण होना आवश्यक है. इसके अलावा संन्यासी दंड धारण करने वाला होना चाहिए. इंद्रियों पर उसका नियंत्रण होना चाहिए और तन-मन से वह पवित्र हो. संन्यासी का वाग्मी होना आवश्यक है यानी वह चारों वेद और छह वेदांगों का वह परम विद्वान हो और शास्त्रार्थ में निपुण हो.

इन समस्त नियमों को धारण करने वाले संन्यासी को वेदांत के विद्वानों के साथ शास्त्रार्थ करना पड़ता है. इसके बाद सनातन धर्म के 13 अखाड़ों के प्रमुख, आचार्य महामंडलेश्वर और संतों की सभा शंकराचार्य के नाम पर सहमति जताती है, जिस पर काशी विद्वत परिषद की मुहर लगाई जाती है. इस प्रकार संन्यासी शंकराचार्य बन जाता है. इसके बाद शंकराचार्य दसनामी संप्रदाय में से किसी एक संप्रदाय पद्धति की साधना करता है.

मठ में होता क्या है

मठ सनातन धर्म में धर्म-आध्यात्म की शिक्षा के सबसे बड़े संस्थान कहे जाते हैं. इनमें गुरु-शिष्य परंपरा का निर्वहन होता है और शिक्षा भी इसी परंपरा से दी जाती है. इसके अलावा मठों द्वारा विभिन्न सामाजिक कार्य भी किए जाते हैं.

चारों मठ-उनके मठाधीश और नाम के बाद लगने वाला विशेषण

ज्योतिर्मठ: उत्तराखंड में बद्रीनाथ स्थित ज्योतिर्मठ के अंतर्गत दीक्षा ग्रहण करने वाले संन्यासियों के नाम के बाद ‘गिरि’, ‘पर्वत’ और ‘सागर’ संप्रदाय नाम विशेषण लगाया जाता है. ज्योतिर्मठ का महावाक्य ‘अयमात्मा ब्रह्म’ है. इस मठ के पहले मठाधीश त्रोटकाचार्य थे. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती इसके 44वें मठाधीश बनाए गए थे. अथर्ववेद को इस मठ के अंतर्गत रखा गया है.

श्रृंगेरी मठ

दक्षिण भारत के चिकमंगलूरु स्थित शृंगेरी मठ के अंतर्गत दीक्षित होने वाले संन्यासियों के नाम के बाद ‘सरस्वती’, ‘भारती’ और ‘पुरी’ विशेषण लगाए जाते हैं. शृंगेरी मठ का महावाक्य ‘अहं ब्रह्मास्मि’ है. इस मठ के अन्तर्गत यजुर्वेद को रखा गया है. मठ के पहले मठाधीश आचार्य सुरेश्वराचार्य थे. वर्तमान में स्वामी भारती कृष्णतीर्थ इसके शंकराचार्य हैं जो 36वें मठाधीश हैं.

गोवर्धन मठ

भारत के पूर्व में गोवर्धन मठ है जो ओडिशा के जगन्नाथ पुरी में है. इस मठ के अंतर्गत दीक्षित होने वाले संन्यासियों के नाम के बाद ‘वन’ और ‘आरण्य’ विशेषण लगाए जाते हैं. मठ का महावाक्य ‘प्रज्ञानं ब्रह्म’ है और ‘ऋग्वेद’ को इसके अंतर्गत रखा गया है. गोवर्धन मठ के पहले मठाधीश आदि शंकराचार्य के प्रथम शिष्य पद्मपाद चार्य थे. वर्तमान में निश्चलानन्द सरस्वती इस मठ शंकराचार्य हैं जोकि 145वें मठाधीश हैं.

शारदा मठ

पश्चिम में गुजरात के द्वारका में शारदा मठ है. इसके अंतर्गत दीक्षा ग्रहण करने वाले संन्यासियों के नाम के बाद ‘तीर्थ’ और ‘आश्रम’ विशेषण लगाए जाते हैं. इस मठ का महावाक्य ‘तत्त्वमसि’ है और ‘सामवेद’ को इसके अंतर्गत रखा गया है. शारदा मठ के पहले मठाधीश हस्तामलक (पृथ्वीधर) थे. वह आदि शंकराचार्य के चार प्रमुख शिष्यों में से एक थे. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को इस मठ का 79वें शंकराचार्य बनाया गया था.

शंकराचार्य की हैसियत

शंकराचार्य की हैसियत सनातन धर्म के सबसे बड़े गुरु की होती है. बौद्ध धर्म में दलाईलामा और ईसाई धर्म में पोप इसके समकक्ष माने जाते हैं. आदि गुरु शंकराचार्य के नाम पर इस पद की परंपरा शुरू हुई थी. आदि गुरु को जगद्गुरु की उपाधि प्राप्त है, जिसका इस्तेमाल पहले केवल भगवान श्रीकृष्ण के लिए ही किया जाता था. समस्त हिंदू धर्म इन चारों मठों के दायरे में आता है. विधान यह है कि हिंदुओं को इन्हीं मठों की परंपरा से आए किसी संत को अपना गुरु बनाना चाहिए.

भारत में संतों को सियासत से सीधा लेना देना नहीं होता है लेकिन चाणक्य जैसे आचार्यों ने सिद्ध किया है कि अगर शासन को संत की सलाह मिले तो वह ज्यादा जनहितैषी काम कर सकता है. हालांकि, अपवाद स्वरूप संन्यासी का जीवन जीने वाले और यूपी के गोरखपुर स्थित गोरखनाथ मठ के महंत योगी आदित्यनाथ प्रदेश के शासन के शीर्ष पद पर यानी मुख्यमंत्री है. भारत चूंकि धर्म-अध्यात्म और योग का देश माना जाता है और इसके संतों-तपस्वियों के कारण यह ऐसा बना तो लोगों में संत समाज के प्रति अगाध श्रद्धा देखी जाती है. इसलिए संत समाज के शीर्ष पदों पर आसीन संतों के प्रति लोगों के मन में सम्मान बना रहता है. शंकराचार्य के किसी आह्वान पर लोग अमल करने में जुट जाते हैं.

दो मठों के शंकराचार्य थे स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती

रविवार को शंकरायचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का निधन हो गया. उन्होंने मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर में 99 वर्ष की उम्र में अंतिम सांस ली. स्वरूपानंद सरस्वती भारत के चार मठों में से दो के शंकराचार्य थे. वह ज्योर्तिमठ के 44वें और शारदा मठ 79वें शंकराचार्य थे. उनके निधन के बाद अब इन मठों के मठाधीश चुने जाएंगे.