Changes : कहीं, कुछ तो बदला है, सरकार की कोशिशों से!

- इस तरह महिलाओं ने लिखी कामयाबी की नई इबारत

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Indore : न परिवेश समर्थन करता था और न अच्छी पढ़ाई मिली, इसके बावजूद गांव की गलियों से निकली महिलाएं कामयाबी की इबारत लिख रही हैं। सामाजिक बंधन होने के बाद भी आगे बढ़ने के जज्बे ने माया और और सपना ने आजीविका मिशन से जुड़कर स्वावलंबी बनने की दिशा बनाई।

पहले जानिए माया के किस्मत बदलने की कहानी। वे बताती हैं, कि उनका जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण वे ज्यादा पढ़ाई नहीं कर पाई। शादी के बाद वे अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए रोज मजदूरी करने जाती थी। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब थी, छोटी-छोटी आवश्यकताओं के लिए भी वे बहुत परेशान होती थी। उन्होंने बताया कि एक दिन उनके गाँव में आजीविका मिशन के समूह बनाने के लिए अन्य गाँव से टीम आई थी। इसके बाद उनके गांव की महिलाओं ने मिलकर एकता आजीविका स्व-सहायता समूह गठित किया। इस समूह की अध्यक्ष माया को बनाया गया।

इस प्रकार ‘माया समूह’ से जुड़कर सिलाई का कार्य करने लगी। इससे हुए मुनाफे से उन्होंने एक दुकान खोली और दुकान में साड़ी और कटलरी का सामान बेचने लगी। उन्होंने बताया कि सरकार के निर्देश पर उनके समूह का बैंक लिंकेज भी कराया गया। बैंक से प्राप्त ऋण से उन्होंने मुर्गी पालन फार्म तैयार किया और इसके बाद पशुपालन विभाग से उन्हे 450 मुर्गी के बच्चे मिले। उनकी देखरेख भी माया द्वारा की जाती है। मुर्गी पालन व दुकान के संचालन से माया की आर्थिक स्थिति में कई गुना ज्यादा सुधार आया। उन्हें साड़ी की दुकान, मुर्गी पालन और मनहारी दुकान से हर महीने लगभग 21 हजार रूपए का मुनाफा हो रहा है। वे पहले घर से बाहर नहीं जाती थी, अब वे पंचायत, बैंक, जनपद और अन्य मिटिंग में भी जाती हैं। घर वाले भी मना नहीं करते।

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सपना का जीवन बदला
इंदौर जिले के केलोद गांव की सपना राठौर भरे-पूरे परिवार के साथ रहती है। सपना बताती है कि आजीविका मिशन से जुड़ने से पहले उनका पूरा परिवार मजदूरी पर निर्भर था। कभी काम मिलता, कभी नही मिलता। कोरोना के बाद से उनकी स्थिति बहुत खराब हो गई। गांव में और बाहर भी कहीं कोई काम नहीं मिल रहा था। जो बचत बुरे समय के लिए कि गई थी, वो भी खत्म हो गई। बच्चों के पालन पोषण की समस्या भी होने लगी थी। उन्होंने गाय पालन के लिए 15 हजार का कर्ज श्याम आजीविका स्व सहायता समूह से जुड़ने के बाद प्राप्त हुआ। गाय खरीदी। यह गाय रोज 8 लीटर दूध देती है, जिससे उन्हें रोज 400 रूपए की आमदनी होने लगी। इस तरह वे महिने का 12 हजार कमा लेती है। आज इस योजना के मायध्म से सपना के परिवार का पालन अच्छे से हो रहा है। उनका परिवार भी आत्मनिर्भर हो गया।