EC Appointment : अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त बनाने की जल्दबाजी पर सरकार फंसी!

SC में दायर एक याचिका पर केंद्र से सवाल-जवाब, एक फाइल भी मांगी! 

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EC Appointment : अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त बनाने की जल्दबाजी पर सरकार फंसी!

   New Delhi : केंद्र सरकार चुनाव आयुक्त के रूप में अरुण गोयल की नियुक्ति पर फंस गई लगती है। इसे लेकर विवाद हो गया। इस नियुक्ति को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार पर बड़ी तल्ख टिप्पणी भी की। सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति की फाइल देखकर केंद्र से कुछ सवाल किए। कोर्ट ने पूछा कि जब 15 मई से पद खाली था तो फिर अचानक 24 घंटे से भी कम समय में नाम भेजे जाने से लेकर उसे मंजूरी देने की सारी प्रक्रिया कैसे पूरी कर दी गई। 15 मई से 18 नवंबर के बीच आखिर क्या हुआ?

कोर्ट ने पूछा कि कानून मंत्री ने 4 नाम भेजे। इसमें एक सवाल यह भी है कि यही 4 नाम क्यों भेजे गए। फिर उसमें से सबसे जूनियर अधिकारी को कैसे चुना गया! रिटायर होने जा रहे अधिकारी ने इस पद पर आने से पहले VRS लिया। सरकार का पक्ष रख रहे अटॉर्नी जनरल ने कहा कि प्रक्रिया में कुछ गलत नहीं हुआ। पहले भी 12 से 24 घंटे में नियुक्ति हुई हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जानना चाहा कि अरुण गोयल की चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त करते समय कोई अनुचित कदम तो नहीं उठाए गए!  उन्होंने VRS लिया और अगले ही दिन चुनाव आयुक्त नियुक्त करने की जल्दबाजी क्यों की गई! मई में CEC सुशील चंद्रा के सेवानिवृत्त होने के बाद निर्वाचन आयोग में जगह खाली थी। केंद्र सरकार ने उनकी जगह 19 नवंबर को अरुण गोयल की नियुक्त कर दी। फरवरी 2025 में मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार सेवानिवृत्त होने वाले हैं। उसके बाद अरुण गोयल ही मुख्य निर्वाचन आयुक्त होंगे। गोयल 1985 बैच के पंजाब कैडर के आईएएस अधिकारी हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की फाइल मांगते हुए केंद्र सरकार से कहा है नियुक्ति कानूनन सही है, तो घबराने की जरूरत नहीं है। इसे केवल रिकॉर्ड के लिए रखा जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने एक बयान में कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त को इतना मजबूत होना चाहिए कि अगर कल प्रधानमंत्री के ऊपर भी किसी गलती का आरोप लगता है, तो वह अपना दायित्व निभा सके। प्रयास एक ऐसी प्रणाली को स्थापित करना है, जिसमें ‘सर्वश्रेष्ठ व्यक्ति’ को CEC के रूप में चुना जा सके।

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यह सुनवाई कोर्ट ने भविष्य में कॉलेजियम सिस्टम के तहत CEC और EC की नियुक्ति की प्रक्रिया पर 23 अक्टूबर 2018 को दायर की गई एक याचिका पर की गई है। इस याचिका में आरोप लगाया गया है कि केंद्र एकतरफा चुनाव आयोग के सदस्यों की नियुक्ति करती है। कोर्ट ने कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (सेवा की शर्तें) अधिनियम, 1991 के तहत CEC का कार्यकाल 6 साल का है। लेकिन, किसी भी CEC ने 2004 से अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया। अदालत ने कहा कि सरकार जो कर रही है वह यही है।     कोर्ट ने कहा कि चाहे वह यूपीए की सरकार हो या मौजूदा सरकार दोनों की यही प्रवृत्ति रही। अदालत ने कहा कि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से संबंधित संविधान के अनुच्छेद 324 में ऐसी नियुक्तियों के लिए प्रक्रिया प्रदान करने के लिए एक कानून बनाने की परिकल्पना की गई थी। लेकिन, सरकार ने अभी तक ऐसा नहीं किया है।

कोर्ट ने कहा कि हम सिर्फ प्रक्रिया को समझना चाह रहे हैं कि जो लोग चुने जा रहे वह CEC के पद पर 6 साल क्यों नहीं रह पाते! इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि नाम लिए जाते समय वरिष्ठता, रिटायरमेंट, उम्र आदि को देखा जाता है। इसकी पूरी व्यवस्था है। यह यूं ही नहीं किया जाता! सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति के लिए परामर्श प्रक्रिया में देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) को शामिल करने से निर्वाचन आयोग की स्वतंत्रता सुनिश्चित होगी। कोर्ट ने कहा कि केंद्र में कोई भी सत्तारूढ़ दल सत्ता में बने रहना पसंद करता है और मौजूदा व्यवस्था के तहत पद पर एक ‘यस मैन’ नियुक्त कर सकता है।

सुप्रीम कोर्ट कुछ याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है जिसमें निर्वाचन आयुक्तों (EC) और मुख्य निर्वाचन आयुक्त (CEC) की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली का अनुरोध किया गया है। केंद्र ने दलील दी कि 1991 के अधिनियम ने सुनिश्चित किया है कि निर्वाचन आयोग अपने सदस्यों के वेतन और कार्यकाल के मामले में स्वतंत्र रहता है और ऐसा कोई बिंदु नहीं है, जो अदालत के हस्तक्षेप को वांछित करता हो।