अजीत डोभाल:उत्तराखंड के लोगों का डोभाल के प्रति सम्मोहन अस्वाभाविक नहीं!

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अजीत डोभाल:उत्तराखंड के लोगों का डोभाल के प्रति सम्मोहन अस्वाभाविक नहीं!

– कुमार अरुण

(वरिष्ठ पत्रकार और समीक्षक)

 

‘ऑपरेशन सिंदूर’ का एक निहितार्थ यह भी है कि देश के राजनीतिक नेतृत्व के साहस, रणनीति, तकनीकी उन्नति, वैज्ञानिक मेघा और सैन्य बलों के अदम्य साहस के बीच राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के महानायक के रूप में उभरे। आठ दशक पार उम्र में किशोरों से गतिशीलता, तीक्ष्ण दूरदृष्टि और लगातार 18 घंटे काम करना उन्हें महामानव रूप में दर्शाता है। उनकी असली ऊर्जा है उदात्त राष्ट्रप्रेम। उनकी सांसों और दिल में हरदम राष्ट्र का गौरव धड़कता है। निस्संदेह, वे राष्ट्र के असली हीरो हैं।

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वे मूल रूप से उत्तराखंड में गढ़वाल के रहने वाले हैं। पूरे गढ़वाल में लोग उन्हें एक महानायक के रूप में देखते हैं। भले ही हरदम राष्ट्रीय अभियानों में जुड़े डोभाल कभी गढ़वाल में न रहे हों, लेकिन वे लोगों के दिलों में, विचारों में, आत्मगौरव में हैं और गीतों में हैं। वे यहां के लोगों को एक महानायक के रूप में सपने में दिखते हैं। गढ़वाल का सांस्कृतिक सामाजिक स्वरूप उनसे लोगों को जोड़ता है। लोग फख्र से कहते हैं वे हमारे इलाके हैं। पूरे देश में उत्तराखंड की सामाजिक व सांस्कृतिक संस्थाएं अपने हर कार्यक्रम में उन्हें मुख्य अतिथि बनाने को उतावली रहती है। लेकिन, डोभाल सार्वजनिक जीवन व मीडिया से सुरक्षित दूरी रखते हैं। कभी भी किसी राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय मुद्दे पर शायद ही उन्हें कभी बयान देते हुए नहीं देखा गया। वैसे भी सुरक्षा से जुड़ी किसी भी संवेदनशील सूचना पर सार्वजनिक विमर्श राष्ट्रहित में नहीं है। यही वजह है कि वे नरेंद्र मोदी के खास विश्वासपात्रों में और उनका कार्यकाल देश के सबसे लंबे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों में शुमार है।

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उत्तराखंड के लोगों का डोभाल के प्रति सम्मोहन अस्वाभाविक नहीं है। एक तो पहाड़ों के लोग आम-तौर पर सहज-सरल और छल कपट से दूर रहते हैं। पहाड़ का परिवेश उन्हे मानवीय मूल्यों से जोड़ता है। उनके रिश्तों में कृत्रिमता कम होती है। हालांकि, समय के साथ स्थितियां बदल रही हैं। लेकिन, कमोबेश सभी पहाड़ों में लोगों की मनोदशा, आत्मीयता व प्रेम एक जैसा ही है। एक बात भारतीयों के मनोविज्ञान से भी जुड़ी है। डोभाल से यह अनुराग वैसा ही है, जैसे देश के लोग अमेरिका व यूरोप में भारतीय मेधा व राजनेताओं के उच्च पदों पर बैठने पर झूमते हैं। अंतरिक्ष में गई भारतीय प्रतिभाओं की सुरक्षा के लिए व्रत व हवन करते हैं। भले ही कभी वे हम से न मिल हों,दूर-दूर तक उनसे हमारा संपर्क न हो। हम कमला हैरिस की जीत के लिये हवन करते हैं, भले ही वह उप राष्ट्रपति रहते हुए कभी भारत नहीं आई। चाहे कमला की सरकार की नीतियां कभी भी भारत के पक्ष में न रही हो। लेकिन, अजीत डोभाल के साथ ऐसा नहीं है। वे वहां के लोगों की सुध लेते हैं। उनके दुख-दर्द बांटते हैं।

यूं तो उनका सार्वजनिक जीवन सुरक्षा कारणों से बेहद गोपनीय रहता है। लेकिन, जब कभी अपने गांव की कुलदेवी की पूजा में शामिल हुए तो दूर-दूर के गांवों से लोग उन्हें देखने के लिए आते हैं। वे भी दिल खोलकर लोगों से मिलते हैं। गांव के गरीब लोगों की मदद करते हैं। पुराने लोगों का हाल पूछते हैं। उनका निजी जीवन राष्ट्रीय सुरक्षा व निजी सुरक्षा के कारण इतना गोपनीय रहा, कि जिस शहर में उनके सैन्य अधिकारी पिता गुणानंद डोभाल सेवानिवृत्ति के बाद रहते थे, उस शहर के अधिकांश लोगों को भी नहीं पता कि देश का यह महानायक उनके शहर का गौरव है। वे राष्ट्रीय मिशनों व विदेश प्रवास में लगातार ही बाहर रहे। उनके पिता,माता, बहन की स्मृतियां जरूर उस शहर में विद्यमान हैं। पिता बहुत सामाजिक सरोकारों के थे। सहज-सरल लंबे चौड़ी कद काठी के सब के सुख-दुख में शामिल होते थे। उनका आशीर्वाद लेखक को कई अवसरों पर मिला। अब उनके घर में कोई और व्यक्ति रहता है। लेकिन, अभी भी लोग उसे गर्व से अजीत डोभाल का घर कहते हैं।

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अजीत डोभाल के व्यक्तिगत का सबसे बड़ा गुण यह है कि वे हर छोटे-बड़े व्यक्ति को सम्मान देते हैं। उनका भला करने की कोशिश करते हैं। वे कबीर की उस उक्ति को खारिज करते हैं, जिसमें कहा गया कि ‘बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर, पंछी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।’ अजीत डोभाल के व्यक्तित्व का एक खास गुण है कि दूर की भी जान-पहचान या परिवार में यदि कोई प्रगति की दौड़ में पिछड़ गया, तो उसे संबल देते हैं। पर्ची-खर्ची की संस्कृति में भी उन्होंने कई प्रतिभाओं को राष्ट्रीय पटल पर चमकने का मौका दिया। योग्यता के बाद भी वे लोग कभी राष्ट्र के लिए योगदान न दे पाते। एक बार जिस होटल में वे ठहरे थे, वहां के बैरे से उन्होंने हाल-चाल पूछे और कहा कि किसी तरह की मदद की जरूरत हो तो बताओ। लोगों को वह दृश्य याद होगा जब कश्मीर में अनुच्छेद 370 के समाप्त होने के बाद कश्मीर घाटी के अशांत दौर में कुछ स्थानीय आम मुस्लिमों के साथ सड़क पर ठेले पर कुछ खाते नजर आए। वो फोटो देश के तमाम अखबारों में चर्चा का विषय बना था। कोई सहज व्यक्ति ही ऐसा कर सकता है।

पिछले दिनों अजीत डोभाल के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर रहे आरसी भटनागर ने लेखक को बताया कि जब उन्होंने किसी विषय पर अजीत डोभाल को पत्र लिखा तो उनका विस्तृत जवाब आया। उन्होंने यथा संभव सहयोग का वायदा किया।1968 बैच के सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी अजीत डोभाल को ऑपरेशन के मामले में सबसे तेज कार्रवाई करने वाले खुफिया अधिकारी के रूप में जाना जाता है। मोदी सरकार में नॉर्थ ईस्ट तथा अब पाकिस्तान में जो सर्जिकल स्ट्राइक हुई है, उनका सूत्रधार डोभाल को माना जाता है। उन्हें खुफिया ऑपरेशन के मामले में भारत का सबसे सफल खुफिया अधिकारी माना जाता है। यही वजह है वे देश के पहले आईपीएस अधिकारी हैं, जिन्हें सेना के सर्वोच्च सम्मानों में से एक ‘कीर्ति चक्र’ दिया गया। उनकी हरफनमौला भूमिका के चलते आज भारतीय खुफिया तंत्र में उनका नाम सम्मान से लिया जाता है। प्रारंभिक शिक्षा अजमेर के सैनिक स्कूल में पूरी हुई। कालांतर में उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए किया, बाद में आईपीएस परीक्षा पास करने के बाद वर्ष 1968 में उन्हें केरल कैडर मिला। राष्ट्रवादी विचारधारा के रुझान वाले अजीत डोभाल इसके थिंक टैंक विवेकानंद फाउंडेशन के निदेशक भी रहे हैं।

ऐसा लगता है राष्ट्र ने अजीत डोभाल के सुरक्षा सिद्धांत का अनुसरण तय कर लिया है। ऑपरेशन सिंदूर में उसकी झलक मिलती है। ओजपूर्ण भाषण में एक बार उन्होंने कहा था ‘जिस दिन पाकिस्तान को इस बात का अहसास हो जाएगा कि भारत ने अपनी सुरक्षात्मक नीति बदलकर आक्रामक सुरक्षा नीति अपना ली है, उस दिन भारत पर अनावश्यक दबाव व हमले होने बंद हो जाएंगे। पाकिस्तान हम से ज्यादा नाजुक है। वे एक मुंबई कर सकते हैं तो हम एक बलूचिस्तान कर सकते हैं। यानी आंख के बदले आंख।’ ये सोच है भारत के ‘स्पाई मास्टर’ कहे जाने वाले अजीत डोभाल की, जो भारत में सबसे ताकतवर राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार माने जाते हैं, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली पसंद रहे हैं और सरकार बनने के बाद उनकी तुरंत नियुक्ति भी हुई।