पूरब से पश्चिम तक राष्ट्रवाद की धारा के बदलते रंग रूप

भारत ही नहीं रूस , चीन , अमेरिका , ब्रिटेन , जर्मनी जैसे देशों में अपने स्वर्णिम काल की तमन्ना

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भारत में पिछले वर्षों के दौरान राष्ट्रवाद के मुद्दे पर राजनीति गर्माती रही है | समाजवादी धर्मनिरपेक्ष नीतियों के नाम पर जनता का समर्थन पाने वाले राजनैतिक संगठन इस राष्ट्रवाद को दक्षिणपंथी और कट्टरतावादी करार देते रहे हैं | लेकिन उनका वामपंथ यानी कम्युनिस्ट मार्क्सवादी  सिद्धांतों वाले भारतीय राज्य या दुनिया के कितने देश हैं ? दक्षिणपंथी कही जाने वाली उदार अर्थव्यवस्था चीन और रूस में भी दिख रही है |

गरीबों – मजदूरों किसानों के नाम पर बिगुल बजाने वाले चीन और रूस अपने देश के साथ अन्य देशों में घुसकर शोषण करने में अग्रणी हैं | इसी तरह विश्व राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले देश अपने पुराने स्वर्णिम काल की वापसी के लिए हर संभव प्रयास करने लगे हैं | यूक्रेन पर रूस का आक्रमण तीस साल पहले रहे सोवियत संघ के स्वरुप को वापस लाने की हिंसक कोशिश है | दूसरी तरफ भारत का राष्ट्रवाद असली लोकतान्त्रिक शक्ति से अधिक प्रभावशाली हो रहा है और दुनिया भारत से सहयोग संबंधों के लिए लालायित हो रही है |

रूस ने यूक्रेन पर हमले का बहाना यह बताया कि यूक्रेन के नात्सी ( हिटलरी ) शासन को सबक सिखाना है | जबकि यूक्रेन ही नहीं यूरोप और अमेरिका रुसी राष्ट्रपति पुतिन को हिटलर की तरह विस्तारवादी तानाशाह करार दे रहे हैं | मजेदार बात यह है कि रूस , अमेरिका और चीन साम्राज्यवादी चरित्र की तरह विश्व के अधिकांश देशों पर अपना प्रभुत्व कायम करने के लिए निरंतर तैयारी और हमले भी करते रहे हैं | वहीँ जो कम्युनिज्म बीजिंग से लेकर प्राग तक फैला हुआ था , अब नक़्शे पर बदले रंग के साथ ख़त्म सा हो गया है |

लेकिन इसी विचार और भौगौलिक  आर्थिक भूख के लिए रूस और चीन पचास वर्षों के बाद इकठ्ठा हो रहे हैं | अन्यथा सत्तर के दशक में तो खुश्रेव और माओ त्से तुंग के बीच क्रांन्तिकारी  नेता  की  होड़ के कारण टकराव  और दूरियां बहुत बढ़ गई थी | चीन सोवियत प्रभुत्व स्वीकारने को तैयार नहीं था | अब मिलकर दुनिया में मनमानी  और दादागिरी के लिए हाथ  मिला रहे हैं | यह मोड़ विश्व राजनीति के लिए खतरनाक है , क्योंकि शी जिन पिंग और पुतिन जनता और पार्टी से कागजी समर्थन लेकर लगभग अनंत काल तक सत्ता में रहने का इंतजाम कर चुके हैं |

 इन दो देशों में लोकतंत्र की छाया तक नहीं दिखती | लेकिन सत्ता और सेना के बल पर सामान्य लोगों को कठिनाइयां झेलने का अभ्यस्त कर दिया है | तभी तो सम्पूर्ण विश्व को कोरोना महामारी से पीड़ित करने वाले चीन और उसके साथी रूस में मरने वाले हजारों लोगों की चीख पुकार कहीं नहीं सुनाई दी और अब यूक्रेन के हमले से दुनिया भर के आर्थिक प्रतिबंधों की रूस को परवाह नहीं है | मानव अधिकारों और अन्य जुल्मों पर संयुक्त राष्ट्र सहित अंदर बाहर की आवाज को चीन नहीं सुनता | सामान्य जनता इस हाल में भी खुश दिखती है |

उन्हें अपने राष्ट्र के प्रभुत्व और अस्तित्व पर अहंकार बना रहता है | दूसरी तरफ अमेरिका में दशकों से लोकतान्त्रिक व्यवस्था और चुनावों के बाद भी दुनिया पर अपने आर्थिक दबदबे के लिए जनता रोनाल्ड रेगन से लेकर डोनाल्ड ट्रम्प और अब बाइडन को भी सत्ता में बैठाकर प्रसन्न रहती है | रेगन और ट्रम्प का सामान्य जनता से कभी कोई जुड़ाव नहीं रहा | केवल सत्ता और पूंजी के विस्तार तथा दुनिया को तेवर दिखाते रहने के लिए उन्हें स्वीकारा जाता रहा | सारी बदनामी के बाद भी ट्रम्प अगले चुनाव में राष्ट्रपति पद की दावेदारी के मूड में हैं | पत्रकार से नेता बने बोरिस जानसन कभी यूरोपियन यूनियन से अलग नहीं होने के पक्षधर थे , लेकिन जनता ने उन्हें ब्रिटेन के अलग अस्तित्व के लिए चुना और आर्थक संबंधों में यूरोप से अलग रहते हुए दादागिरी के लिए अमेरिका और नाटो के साथ रहना पसंद करते हैं |

इस पृष्ठभूमि में भारत में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के राष्ट्रवाद पर किसीको क्यों तकलीफ होनी चाहिए |आख़िरकार वे तो वर्षों तक जमीनी काम करते हुए शिखर पर पहुंचे और अब भी विधान सभा , नगर पालिका , ग्राम पंचायत तक सक्रिय रहते हुए लोकतंत्र की जड़ें मजबूत करने के प्रयास कर रहे हैं | आज़ादी के बाद हुए प्रधान मंत्रियों में केवल मनमोहन सिंह ऐसे नेता रहे , जिनका आम मतदाता से कोई मतलब नहीं रहा | एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर तो उनके सबसे करीबी सहयोगी ने भी निरूपित किया | उनके पास आर्थिक नीतियों का ज्ञान था और सही मायने में बिड़ला टाटा अम्बानी अडानी जैसे सम्पन्नतम उद्योगपति उनके सत्ताकाल में फले |

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श्रेय मोदीजी को मिल रहा है | दिलचस्प बात यह है कि मोदी की नीतियां प्रगतिशील कही जाने वाली समाजवादी नीतियों से अधिक प्रभावित दिखने लगी हैं , क्योंकि वह गरीबों को  मुफ्त अनाज , शौचालय , छोटा सा मकान , किसानों को खाद – बीज पानी बिजली के साथ छह हजार रूपये देकर अपना प्रभाव क्षेत्र उत्तर से पश्चिम , पूर्वोत्तर तथा दक्षिण के राज्यों तक बड़ा रहे हैं | ऊपर से राष्ट्रवाद की मलाई चढ़ा देने से बहुत बड़ा वर्ग उनसे जुड़ता गया है | लेकिन इस बात की तारीफ की जानी चाहिए कि नेहरू , इंदिरा  , राजीव से लेकर नरेंद्र मोदी तक भारी बहुमत वाली किसी सरकार ने किसी पडोसी देश को आंतकित करने का प्रयास नहीं किया , न ही विश्व राजनीति में किसी एक गुट से जुड़ने का प्रयास किया | तभी तो राष्ट्रवादी होते हुए अमेरिका , रूस , यूरोप , अफ्रीका ही नहीं कड़ी के इस्लामिक देश भी भारत से संबंधों और सहयोग की अपेक्षा करने लगे हैं | यूक्रेन संकट में उसके राजदूत की प्रार्थना इसका सबसे बड़ा सबूत है |

( लेखक आई टी वी नेटवर्क – इंडिया न्यूज़ और आज समाज दैनिक के सम्पादकीय निदेशक हैं )

Author profile
ALOK MEHTA
आलोक मेहता

आलोक मेहता एक भारतीय पत्रकार, टीवी प्रसारक और लेखक हैं। 2009 में, उन्हें भारत सरकार से पद्म श्री का नागरिक सम्मान मिला। मेहताजी के काम ने हमेशा सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया है।

7  सितम्बर 1952  को मध्यप्रदेश के उज्जैन में जन्में आलोक मेहता का पत्रकारिता में सक्रिय रहने का यह पांचवां दशक है। नई दूनिया, हिंदुस्तान समाचार, साप्ताहिक हिंदुस्तान, दिनमान में राजनितिक संवाददाता के रूप में कार्य करने के बाद  वौइस् ऑफ़ जर्मनी, कोलोन में रहे। भारत लौटकर  नवभारत टाइम्स, , दैनिक भास्कर, दैनिक हिंदुस्तान, आउटलुक साप्ताहिक व नै दुनिया में संपादक रहे ।

भारत सरकार के राष्ट्रीय एकता परिषद् के सदस्य, एडिटर गिल्ड ऑफ़ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष व महासचिव, रेडियो तथा टीवी चैनलों पर नियमित कार्यक्रमों का प्रसारण किया। लगभग 40 देशों की यात्रायें, अनेक प्रधानमंत्रियों, राष्ट्राध्यक्षों व नेताओं से भेंटवार्ताएं की ।

प्रमुख पुस्तकों में"Naman Narmada- Obeisance to Narmada [2], Social Reforms In India , कलम के सेनापति [3], "पत्रकारिता की लक्ष्मण रेखा" (2000), [4] Indian Journalism Keeping it clean [5], सफर सुहाना दुनिया का [6], चिड़िया फिर नहीं चहकी (कहानी संग्रह), Bird did not Sing Yet Again (छोटी कहानियों का संग्रह), भारत के राष्ट्रपति (राजेंद्र प्रसाद से प्रतिभा पाटिल तक), नामी चेहरे यादगार मुलाकातें ( Interviews of Prominent personalities), तब और अब, [7] स्मृतियाँ ही स्मृतियाँ (TRAVELOGUES OF INDIA AND EUROPE), [8]चरित्र और चेहरे, आस्था का आँगन, सिंहासन का न्याय, आधुनिक भारत : परम्परा और भविष्य इनकी बहुचर्चित पुस्तकें हैं | उनके पुरस्कारों में पदम श्री, विक्रम विश्वविद्यालय द्वारा डी.लिट, भारतेन्दु हरिश्चंद्र पुरस्कार, गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार, पत्रकारिता भूषण पुरस्कार, हल्दीघाटी सम्मान,  राष्ट्रीय सद्भावना पुरस्कार, राष्ट्रीय तुलसी पुरस्कार, इंदिरा प्रियदर्शनी पुरस्कार आदि शामिल हैं ।