Analysis Election Before 2024:मुस्लिम मतदाता और मुफ्त का प्रलोभन होंगे मुद्दा

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Analysis Election Before 2024:मुस्लिम मतदाता और मुफ्त का प्रलोभन होंगे मुद्दा

 देश भर के हालिया चुनावों पर नजर डाली जाये तो साफ तौर पर एक बात ठोस तरीके से उभर कर सामने आती है। दिल्ली,पंजाब,हिमाचल,पश्चिम बंगाल और कर्नाटक विधानसभा के चुनाव में दो तत्वों ने ही नतीजे तय किये हैं। पहला, मतदाता को अधिकतम मुफ्त में कौन,क्या,कितना दे रहा है और मुस्लिम मतदाता किसके साथ जा रहा है। चूंकि मुस्लिम मतदाता खुले तौर पर भाजपा के खिलाफ रहता है और जिस राज्य में जो भी राजनीतिक दल भाजपा के सामने मजबूत नजर आता है, वह खुल्लम-खुल्ला उसके पक्ष में थोक में मतदान करता है। दिल्ली,पंजाब में आम आदमी पार्टी,बंगाल में तृणमुल कांग्रेस पार्टी,हिमाचल में कांग्रेस और अब कर्नाटक में भी कांग्रेस। मुस्लिम मतदाता उप्र,बिहार के चुनाव में कांग्रेस के साथ नहीं जाता, क्योंकि वह जानता है कि उन प्रदेशों में कांग्रेस शून्य है। याने उसे अपना मत फिजूल खर्च न करने की समझ भी है। तब सवाल यह है कि इस वर्ष होने वाले पांच राज्यों के चुनाव में कहां,क्या स्थिति बनेगी?

Analysis Election Before 2024:मुस्लिम मतदाता और मुफ्त का प्रलोभन होंगे मुद्दा

     मिजोरम में मुस्लिम वर्चस्व नहीं है। तेलंगाना की के.चंद्रशेखर राव(केसीआर) के नेतृत्व वाली सरकार ने मुस्लिम मतदाताओं के लिये खजाना खोल रखा है। 119 सदस्यीय सदन में उनके गठबंधन को 103 और अकेले उनके दल को 88 सीटें प्राप्त हैं। करीब साढ़े तीन करोड़ की कुल आबादी में मुस्लिम मतदाता करीब 13 प्रतिशत है और राज्य की 50 से अधिक सीटों का समीकरण वे बना,बिगाड़ सकते हैं। केसीआर की मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति का अंदाज आप इससे लगा सकते हैं कि उनके कार्यकाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तीन बार राज्य के दौरे पर गये, लेकिन केसीआर एक बार भी उन्हें लेने विमानतल पर नहीं गये, न शिष्टाचार भेंट की। वहां इस वर्ष के चुनाव में केसीआर के सामने कोई बड़ी चुनौती फिलहाल तो नहीं है, बावजूद इसके कि वहां मुस्लिमों के बड़े नेता ओवैसी की एआईएमआईएम(आल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमिन) भी सक्रिय है।

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    उत्तर भारत के शेष तीन राज्यों में मप्र,छत्तीसगढ़ और राजस्थान आते हैं, जहां मुस्लिम मत निर्णायक तो नहीं हैं, किंतु उनकी अनदेखी भी नहीं की जा सकती। इन तीनों राज्यों में वे समान रूप से कांग्रेस को ही जायेंगे,क्योंकि यहां ऐसा कोई दूसरा दल नहीं है, जो कांग्रेस के मुकाबले ज्यादा मजबूत हो और भाजपा को टक्कर दे रहा हो। इन प्रदेशों में मुस्लिम मत बंटेगा तो नहीं , लेकिन वह कितना अधिक तादाद में मतदान स्थल तक पहुंच पाता है,इस पर उन सीटों का भविष्य तय करेगा, जहां वे संतुलन बनाने-बिगाड़ने की स्थिति में हैं। ऐसे में यहां कांग्रेस पूरी तरह से उन  घोषणाओं का सहारा लेगी, जो अल्पसंख्यक,पिछड़े,दलित वर्ग व किसानों को आकर्षित कर सके। जहां तक मप्र की बात है तो घोषणाओं और सुविधाओं का पिटारा खोलने में तो अभी शिवराज सरकार चार कदम आगे ही है। वे भांजियों-बहनों के बाद भांजों तक भी पहुंच बना चुके हैं। उन्होंने विभिन्न वर्गों की पंचायतों के जरिये भी उन वर्गों को साधना प्रारंभ कर दिया है, जो एकमुश्त वोट बैंक की श्रेणी में आता है।

     कमोबेश यही खेल छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी चल रहा है। चुनावी वर्ष के मद्देनजर वहां की कांग्रेसी सरकारें जादू का पिटारा खोल चुकी है। राजनीति के इस चुनावी खेल में अब न कोई नैतिक है, न अनैतिक, न कोई आदर्श आचार संहिता है, न मर्यादापूर्ण आचरण। अब तो एक ही लक्ष्य है-सत्ता प्राप्त करना। आप-हम जिसे हथकंडे कहें ,रास्ता मानें या तिकड़म,सबके हाथों में एक ही हथियार है। सबने आवश्यक विजय के लिये सीधे ब्रह्मास्त्र चलाने की नीति अपना ली है। बाजी पहले भी मतदाता के हाथ में थी, अब भी है। अब वह तौल-मोल कर ही मतदान करने लगा है। विधानसभाओं तक में यही अस्त्र कारगर साबित होने लगा है। यही परंपरा लोकसभा चुनाव के लिये भी जारी रही तो नतीजे अनपेक्षित भले न मिलें, सकरात्मक नहीं होंगे।


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     वैसे भारतीय लोकतंत्र में मुफ्तखोरी का जो स्वरूप अब सामने आया है, वह न तो नया है, न ही हैरत में डालने वाला। तरीके और आकार-प्रकार बदल गया। पहले राजनीतिक दल और उनके नेता भी थोड़ा संभल कर खेलते थे। इसलिये वे मतदान पूर्व की एक-दो रात पहले नीचली-पिछड़ी बस्तियों में शराब-मुर्गों की व्यवस्था करवा देते थे। उन मोहल्लों से वोट डलवाने की जवाबदारी जिन पर होती थी,उन्हें कुछ रुपये बोनस के तौर पर अलग से दे दिये जाते थे। अब केवल इतना बदला है कि यह सीधे मतदाता के हाथ में जाने लगा है।दारू-मुर्गे की जगह लेपटॅप,साइकिल,गैस की टंकी,कनेक्शन,मोबाइल और साल-छह महीने का डाटा,रेफ्रिजरेटर,घरेलू सामान,स्कूल-कॉलेज तक की मुफ्त शिक्षा ,राशन के साथ महिलाओं-युवतियों,बेरोजगारों को सीधे-सीधे उनके खाते में नकद रकम जमा करने के वादे किये जाते हैं। सरकारें इन्हें चुनाव पूर्व शुरू कर देती है तो विरोधी दल घोषणा-पत्रों में इसे शामिल कर वैधानिक साज-श्रृंगार कर देते हैं।


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      कोई दल इससे अछूता नहीं। राजनीति जैसे एक उत्पाद हो गया । इसकी मार्केटिंग की जा रही है। जो जितना कारोबारी बनकर पेश आयेगा,उपभोक्ता उसी के शो रूम से माल खरीदेगा। लोकतंत्र का मंदिर अब भव्य माल हो गया और जन प्रतिनिधि इसके कॉरपोरेट कारोबारी,सेल्समैन,प्रमोटर।

(क्रमश:)

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रमण रावल

 

संपादक - वीकेंड पोस्ट

स्थानीय संपादक - पीपुल्स समाचार,इंदौर                               

संपादक - चौथासंसार, इंदौर

प्रधान संपादक - भास्कर टीवी(बीटीवी), इंदौर

शहर संपादक - नईदुनिया, इंदौर

समाचार संपादक - दैनिक भास्कर, इंदौर

कार्यकारी संपादक  - चौथा संसार, इंदौर

उप संपादक - नवभारत, इंदौर

साहित्य संपादक - चौथासंसार, इंदौर                                                             

समाचार संपादक - प्रभातकिरण, इंदौर      

                                                 

1979 से 1981 तक साप्ताहिक अखबार युग प्रभात,स्पूतनिक और दैनिक अखबार इंदौर समाचार में उप संपादक और नगर प्रतिनिधि के दायित्व का निर्वाह किया ।

शिक्षा - वाणिज्य स्नातक (1976), विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन

उल्लेखनीय-

० 1990 में  दैनिक नवभारत के लिये इंदौर के 50 से अधिक उद्योगपतियों , कारोबारियों से साक्षात्कार लेकर उनके उत्थान की दास्तान का प्रकाशन । इंदौर के इतिहास में पहली बार कॉर्पोरेट प्रोफाइल दिया गया।

० अनेक विख्यात हस्तियों का साक्षात्कार-बाबा आमटे,अटल बिहारी वाजपेयी,चंद्रशेखर,चौधरी चरणसिंह,संत लोंगोवाल,हरिवंश राय बच्चन,गुलाम अली,श्रीराम लागू,सदाशिवराव अमरापुरकर,सुनील दत्त,जगदगुरु शंकाराचार्य,दिग्विजयसिंह,कैलाश जोशी,वीरेंद्र कुमार सखलेचा,सुब्रमण्यम स्वामी, लोकमान्य टिळक के प्रपोत्र दीपक टिळक।

० 1984 के आम चुनाव का कवरेज करने उ.प्र. का दौरा,जहां अमेठी,रायबरेली,इलाहाबाद के राजनीतिक समीकरण का जायजा लिया।

० अमिताभ बच्चन से साक्षात्कार, 1985।

० 2011 से नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने की संभावना वाले अनेक लेखों का विभिन्न अखबारों में प्रकाशन, जिसके संकलन की किताब मोदी युग का विमोचन जुलाई 2014 में किया गया। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी को भी किताब भेंट की गयी। 2019 में केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के एक माह के भीतर किताब युग-युग मोदी का प्रकाशन 23 जून 2019 को।

सम्मान- मध्यप्रदेश शासन के जनसंपर्क विभाग द्वारा स्थापित राहुल बारपुते आंचलिक पत्रकारिता सम्मान-2016 से सम्मानित।

विशेष-  भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा 18 से 20 अगस्त तक मॉरीशस में आयोजित 11वें विश्व हिंदी सम्मेलन में सरकारी प्रतिनिधिमंडल में बतौर सदस्य शरीक।

मनोनयन- म.प्र. शासन के जनसंपर्क विभाग की राज्य स्तरीय पत्रकार अधिमान्यता समिति के दो बार सदस्य मनोनीत।

किताबें-इंदौर के सितारे(2014),इंदौर के सितारे भाग-2(2015),इंदौर के सितारे भाग 3(2018), मोदी युग(2014), अंगदान(2016) , युग-युग मोदी(2019) सहित 8 किताबें प्रकाशित ।

भाषा-हिंदी,मराठी,गुजराती,सामान्य अंग्रेजी।

रुचि-मानवीय,सामाजिक,राजनीतिक मुद्दों पर लेखन,साक्षात्कार ।

संप्रति- 2014 से बतौर स्वतंत्र पत्रकार भास्कर, नईदुनिया,प्रभातकिरण,अग्निबाण, चौथा संसार,दबंग दुनिया,पीपुल्स समाचार,आचरण , लोकमत समाचार , राज एक्सप्रेस, वेबदुनिया , मीडियावाला डॉट इन  आदि में लेखन।